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________________ सूत्र ४३४-४३८ तस्स णं पासायवडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, जाव सीहासणं सपरिवारं । - जंबु ० वक्ख० ४, सु० ७५ तिर्यक लोक कूट वर्णन दो 'कूडा बहुसमतुल्ला४३६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति, आयाम विक्खंभुच्चत्त-संठाण- परिणाहेणं, १ चुल्लहिमवंतकूडे चेव, वेसमणकूडे चैव । पं तं जहाहिमवंत व २ समगडे चे - २ ० २, मु० ६७ उ०- गोयमा ! चुल्ल हिमवंतकूडस्स दक्खिणेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्र कोईयत्ता अष्णं जंबुद्दीवं दी दीवं दक्खिणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता इत्थ णं चल्लहिमवंत गिरिकुमारस्स देवस्स स्सहिमवंता णामं रायहाणी पण्णत्ता । बारस जोयणसहस्साई आयाम विक्खंभेणं । एवं विजयरावाणी भाणिया चुल्लहिमयं तकूटरस णामहेऊ क्षुद्र हिमवान कूट के नाम का हेतु ४३५. ५० से भंते! एवं बुच्चह - "बुल्लहिमवंतकूडे ४२५. प्र० - हे भगवन्! क्षुद्र हिमवान् फूट क्षुद्र हिमवान् कूट – केण णं चुल्लहिमवंतकूडे ?” क्यों कहा जाता हैं ? । - उ०- गोपमा ! बलहादेवे महिडीए- जाव-परियस से एएणणं गोयमा ! एवं बुवद्द "बुल्ल हिमवतेकडे, चुल्लहिमवं तकूडे । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ७५ भरडाईणं बताया णिसो४३८. एवं अवसेसाण वि कूडाणं वत्तव्वया यव्वा । चुल्ल हिमवंता रायहाणी क्षुद्र हिमवन्ता राजधानी ४३७. ५० कहि गं भते ! चुल्लहिमयतगिरिकुमारस्य देवस्स ४३७. प्र०-हे भगवन् ! चुल्लहिमवंता णामं रायहाणी पण्णत्ता ? वह सुखद स्पर्श वाला, शोभायमान रूप वाला, प्रसन्नता प्रदान करने वाला है— यावत् — सुन्दर है । आयाम-विपरिक्लेव यासाय देवयाओ सीहासणपरिवारो अट्टो अ देवाण व देवी य राजहागीओ गेयस्याओ । नवरदेवा १ हिमवंत २ र ३ हेमलय, ४ देसमणकूडेसु, सेसेसु देवियाओ । गणितानुयोग इस प्रासादावतंसक के अन्दर अतिसमरमणीय भूभाग कहा गया है यावत् सपरिवार सिहासन है..... २७३ उ०- हे गौतम! क्षुद्र हिमवान् नाम का महधिक देवयावत् रहता है। इस कारण है गौतम ! क्षुद्र हिमवान् कूटक्षुद्र हिमवान कूट कहा जाता है । — दो कूट अधिक सम एवं तुल्य हैं ४३६. जम्बूद्वीप द्वीप में मंदरपर्वत के दक्षिण में क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं, ये अधिक सम एवं तुल्य हैं इनमें एक-दूसरे से विशेषता एवं नानापन नहीं है, लम्बाई-चौड़ाई ऊँचाई, आकार एवं परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा – (१) बुद्ध हिमवानकूट (२) श्रकूट। - जंबु० वक्ख० ४, सु० ७५ समान कहना चाहिए । हिमा-गिरिकुमार देव की क्षुद्र हिमवन्ता नाम की राजधानी कहाँ कही गई है ? उ०- हे गौतम! शुत्र हिमवा कूट के दक्षिण में तिरछे अस्य द्वीप समुद्र सांपने पर अन्य जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिण में बारह हजार योजन पर्यन्त अवगाहन करने पर क्षुद्र हिमबन्त गिरि कुमार देव की "हिमवना" नाम की राजधानी कही गई है । यह बारह हजार योजन की लम्बी-चौड़ी है । शेष सारा वर्णन (विजय देव की ) विजया राजधानी के भरतकूट आदि कूटों के कथन का निर्देश४३८. इसी प्रकार शेष कूटों का कथन भी जानना चाहिए । कूटों की लम्बाई चौड़ाई, परिधि, प्रासार, देवता, सिहासन परिवार नाम हेतु देव देवियाँ तथा राजधानियाँ जानना चाहिए । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ७५ कूटों पर देवियाँ हैं । विशेष – इन चार कूटों पर देवता हैं- (१) क्षुद्रहिमवान कूट, (२) भरतकूट, (३) हैमवतकूट और (४) वंश्रमणकूट । शेष
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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