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________________ सूत्र ४३०-४३१ तिर्यक् लोक : कूट वर्णन गणितानुयोग २६६ णो इण? सम? । नहीं, ऐसी नहीं है। गंधमायणस्स णं इत्तो इट्ठतराए चेव-जाव-गंधे पण्णत्ते। गंधमादन पर्वत की गंध उनसे भी अधिक इष्ट है-इष्टतर -यावत्-मनोज्ञ गंध कही गई है। से एएण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ-गधमायणे इस कारण गौतम ! यह गंधमादन (अपनी गंध से मतवाला वक्खारपटवए गंधमायणे वक्खारपब्वए । बना देने वाल) वक्षस्कार पर्वत गंधमादन वक्षस्कार पर्वत कहलाता है। गंधमायणे अ इत्थ देवे महिड्ढोए-जाव-पलिओवमट्ठिइए यहाँ गंधमादन नामक महधिक-यावत्-पल्योपम की परिवसइ, अबुतरं च णं गोयमा ! सासए णामधिज्जे स्थिति वाला देव रहता है। इसके अतिरिक्त गौतम ! यह नाम इति। -जंबु• वक्ख० ४, सु० ८६ शाश्वत कहा गया है। जंबुद्दीवे सव्वकूड संखा जम्बूद्वीप में सर्वकूट संख्या४३१. ५०-१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया वासहरकूडा ४३१. प्र०-(१) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप में वर्षधर पर्वतों के पण्णता? कूट (शिखर) कितने कहे गये हैं ? २. केवइया वक्खारकूडा? (२) वक्षस्कार पर्वतों के कूट कितने कहे गये हैं ? ३. केवइया वेअद्धकडा? (३) (दीर्घ) वैताढ्यपर्वतों के कूट कितने कहे गये हैं ? ४. केवइया मंदरकूडा पण्णत्ता ? (४) मंदर (मेरु) पर्वत के कूट कितने कहे गये हैं ? उ०-१. गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे छप्पण्ण वासहरकूडा उ०-(१) हे गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप में वर्षधर पर्वतों के पण्णता। छप्पन कूट कहे गये हैं। २. छण्णउई वक्खारकूड़ा। (२) वक्षस्कार पर्वतों के छिनवे कूट है। ३. तिणि छलुत्तरा वेअद्धकूडसया । (३) (दीर्घ) वैताढ्यपर्वतों क तीन सौ छ कूट है । - (क्रमशः) इस आगमोक्त प्रमाण के अनुसार (१) त्रिकूटादि चारों पर्वतों की समान प्रमाणता स्वतः सिद्ध हैं। इसी प्रकार सीतोदा महानदी के दक्षिणी किनारे पर । (१) अंकावर्त, (२) पक्ष्मावती, (३) आशीविष, (४) सूखाबह है. तथा सीतोदा महानदी के उत्तरी किनारे पर (१) चन्द्रपर्वत, (२) सूर्यपर्वत, (३) नागपर्वत, (४) देव पर्वत हैं । ये आठों पर्वत सीतामहानदी के दक्षिणी तथा उत्तरी किनारे स्थित पूर्वोक्त आठों पर्वतों के समान प्रमाण वाले हैं। (१)........सीतोदाए दाहिणिल्लं उत्तरिल्लं च....... (२).......दाहिणिल्ले........उत्तरिल्ले वि एमेव भाणियब्वे जहा सीयाए........ -जब्बु० वक्ख० सु० १०२ आगमोक्त इन दो सूचनाओं के अनुसार सीतोदा महानदी के दक्षिणी और उत्तरी किनारों पर स्थित आठों पर्वतों का प्रमाण सीता महानदी के दक्षिणी तथा उत्तरी किनारों पर स्थित आठों पर्वतों के समान हैं। "षट्पञ्चाशद्वर्षधरकूटानि-तथाहि, क्षुद्रहिमवत्-शिखरिणोः प्रत्येकमेकादश, (११+११) महाहिमव दु क्मिणोः प्रत्येकमष्टी, (८+८) निषध-नीलवतो: प्रत्येक नव, २२ सर्वसङ ख्यया ५६ "वक्षस्कारकूटानि षण्णनवतिः, (६६) तद्यथासरल वक्षस्कारेषु षोडशसु, प्रत्येकं चतुष्टयभावात् ६४ (१६४४) गजदन्ताकृतिवक्षस्कारेषु गन्धमादन-सौमनसयोः सप्त, १४ (७+७) माल्यवद्विद्य त्प्रभयो नव, १८ इति उभय मिलने यथोवतसङ्खया", ६६ "त्रीणि षडुत्तराणि वैताढ्यकूटशतानितत्र भरतरावतयोविजयानां च वैताढ्येषु चतुस्त्रिशति प्रत्येक नवसम्भवादुक्तसङ्खख्यानयनम्"।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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