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________________ सूत्र ४२६-४२८ तिर्यक् लोक: वक्षस्कार पर्वत पव्वए, उ०- गोयमा ! सोमणसे णं वक्खारपव्वए बहवे देवा य देवीओ य सोमा सुमणा, सोमणसे य इत्थ देवे महिहिडीएजाय पतिओमट्टिए परिवस । सोमणक्यारपव्ययरस णामहेऊ सौमनस वक्षस्कार पर्वत के नाम का हेतु - ४२६. प० -से केण े णं भंते ! एवं वच्चइ - सोमणसवक्खार ४२६. प्र० - भगवन् ! सौमनस वक्षस्कार पर्वत सौमनस वक्षस्कार सोमणसवक्खारपव्वए ? पर्वत क्यों कहा जाता है ? से तेण ेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ- सोमणसे वक्खारपव्वए सोमण से वक्खारपव्वए । अनुत्तरं च षं गोयमा !-जाब-ि - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६७ विज्जुप्यभवक्सारपव्ययरस ठाणप्पमाण उ०- गोपमा सिस्स बाहरपव्ययरस उत्तरे, मंदर पवयस्स दाहिणः पचत्थिमेणं देवकुराए पस्चरियमेगं यहस्स विजयस्स पुरयमेगं एत्थ णं जंबुद्दीचे दीवे महाविदेहे वासे विक्रय बनणार पण । गरि सम्ब । उत्तर- दाहिणाए एवं जहा मालयन्ते सब अच्छे-जाय देवाय विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत का स्थान और प्रमाण ४२७. १० – कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे विज्जुप्प ४२७. प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष णामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते ? में विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत कहां कहा गया है ? गणितानुयोग 3 २६७ से एएणदृणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - विज्जुप्प में वक्खारपव्वए विज्जुप्पने वक्खारपव्वए । अबुत्तरं च णं गोयमा ! - जाव- णिच्चे । - जंबु० वक्ख० ४, सु० १०१ उ०- सौमनस वक्षस्कार पर्वत पर बहुत से सौम्य और शुद्ध मन वाले देव देवियाँ हैं और यहां सोमनस नामक महधिकयावत्-- पल्योपम की स्थिति वाला देव निवास करता है । इस कारण गौतम ! सौमनस वक्षस्कार पर्वत सौमनस वक्षस्कार पर्वत कहा जाता है । इसके अतिरिक्त गौतम ! ( यह नाम ) - यावत् — नित्य है । उ० – गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधिलावइस्स उ० वह उत्तर-दक्षिण में लम्बा है इत्यादि वर्णन माल्यवन्त के समान समझना चाहिए विशेष यह है कि यह पर्वत सर्वतपनीय— जंबु० वक्ख० ४, सु० १०१ स्वर्णमय है, स्वच्छ है - यावत् - वहाँ देवगण विचरण करते हैं । विज्जुप्पभवक्खा र पव्वयस्स णामहेऊ -गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत से उत्तर में, मंदर पर्वत से दक्षिण-पश्चिम में, देवकुरु के पश्चिम और पद्मविजय के पूर्व में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष में विशुभ नामक वक्षस्कार पर्वत कहा गया है । विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के नाम का हेतु४२८.५० - सेकेणट्टणं भंते ! एवं बुच्चइ - विज्जुप्पमे वक्खार ४२८. प्र० - भगवन् ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत को विद्युत्प्रभ पव्वए विज्जुप्पने वक्खारपध्वए ? वक्षस्कार पर्वत क्यों कहते हैं ? उ०- गोवमा विलुप्यमेवचारव्यए बिज्जुमिव सओ समंता ओभासे उज्जवे पास विजुत्य मे इत्थ देवे महिड्दिए-जाव - पलिओवमट्ठिइए परिवसइ । उ०- गौतम ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत बिजली की तरह सब दिशा विदिशाओं में अवभासित, उद्योतित और प्रभासित होता रहता हैं और यहाँ विद्युत्प्रभ नामक महधिक - यावत्पल्योपम की स्थिति वाला देव निवास करता है । इस कारण गौतम ! यह विद्यलभ वक्षस्कार पर्वत विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत कहलाता है। इसके अतिरिक्त गौतम ! यह नाम - यावत् नित्य है । गंधमायणवक्खारपव्वयस्स ठाणप्पमाणं गंधमादन वक्षस्कार पर्वत का स्थान और प्रमाण ४२६. ५० - कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे गंधमायणे णामं ४२६. प्र० - भगवन् ! महाविदेह वर्ष में गंधमादन नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ कहा गया है ? वक्खारपन्च पण्णत्ते ? उ०- गौतम ! नीलवन्त वर्षधर पर्वत से दक्षिण में, मरु पर्वत से उत्तर-पश्चिम में, गंधिलावतीविजय से पूर्व में एवं
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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