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________________ २६६ लोक- प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक: वक्षस्कार पर्वत उ० – गोयमा ! नलिणकूडे य इत्थ देवे महिड्ढिीए- जावपलिओनए परिवसद्द सेट्ट ेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ – नलिणकूडे वक्खारपटवए, नलिणकूडे वक्खारपव्वए । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ एक्सेलवणारपण्ययस्त ठाणप्यमाणं ४२३.५० - कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? उ०- गोपना पुश्खलावत्सचरकवट्टविजयस्स पुररथमेनं पोवलावती चक्रुविजयस्स परचरिचमेणं, मीत वंतस्स दक्खिणेणं, सीआए उत्तरेणं, एत्थ णं एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते । चित्तकूडगमेणं अव्वो जाव देवा आसयति । उ०- गोवमा एगसेले व इथ देवे महिहिडीए-जाब-पति ओवमट्टिए परिवस । से तेणट्टणं गोयमा ! एवं बुच्चइ- - एगसेले वक्खारपब्वए, एगसेले वक्खारपब्वए । - - जंबु ० [० वक्ख० ४, सु० ६५ सूत्र ४२२-४२५ उ०- हे गौतम! यहाँ नलिनकूट नामक महधिक - यावत् - पत्योपम की स्थिति वाला देव रहता है । -गोयमा सिस्स बासहरपव्ययस्स उत्तरेणं, मंदरस पव्ययस्स दाहिण पुरविमेन मंगलावईविजयरस पत्र त्थिमेणं, देवकुराए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे णामं वक्वारपव्वए पण्णत्ते । उत्तर- दाहिणायए, पाईण-पडोण-वित्थिन् । इस कारण हे गौतम! नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत कहा जाता है । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ यहाँ देव बैठते हैं । जहा मालवन्ते ववखारपव्वए तहा, नवरं सव्व रणाम अच्छे-जाये जिसहवासहरपय्वयं तेणं चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चतेणं, चत्तारि गाउअसयाइ उत्रेहेणं, सेसं तहेव सव्वं । - जंबु० वक्ख० ४, सु०६७ एकशैल वक्षस्कार पर्वत के स्थान और प्रमाण ४२३. प्र० - भगवन् ! महाविदेह वर्ष में एकशेल नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ कहा जाता है ? 1 उ०- गोतम । पुष्कलावती-विजय से पूर्व में, पुष्कलावती चक्रवर्ती विजय से पश्चिम में नीलवंत से दक्षिण में तथा शीता से उत्तर में एकशैल नामक वक्षस्कार पर्वत कहा गया है । एगसेल वक्खारपव्वयस्स णामहेऊ एकशैल वक्षस्कार पर्वत के नाम का हेतु ४२४. ५० - सेकेणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ - एगसेले वक्खार ४२४. प्र० - भगवन् ! एकशैल वक्षस्कार पर्वत एकशैल वक्षस्कार पव्वए, पर्वत क्यों कहा जाता है ? एगसेले वक्खारपव्वए ? चित्रकूट के समान इसका वर्णन जानना चाहिए- यावत् सौमनस वक्षस्कार पर्वत का स्थान और प्रमाण सोमणसवखारपव्ययरस ठाणप्यमाणं४२५०चंते! जंबुद्दीये दीवे महाविदेवासे सोमण ४२५. प्र० भगवन् जम्बूद्वीप के महाविदेह वर्ष में सौमनस ! नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ कहा गया है ? णामं वखारपव्वए पण्णत्ते ? उ०- गौतम यहाँ एक्स नामक महधिक पाव पल्योपम की स्थिति वाला देव रहता है— इस कारण गौतम ! एकशैल वक्षस्कार पर्वत एकशैल वक्षस्कार पर्वत कहा जाता है । उ०- गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत से उत्तर में, मन्दर पर्वत से दक्षिण-पूर्व में मंगलावती विजय से पश्चिम में और देवकुरु से पूर्व में, जम्बूद्वीप के महाविदेह वर्ष में सौमनस नामक वक्षस्कार पर्वत कहा गया है । वह उत्तर-दक्षिण में लम्बा और पूर्व पश्चिम में विस्तीर्ण है । इसकी वक्तव्यता माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत के समान है। विशेष यह है यह पर्वत सर्व रजतमय है, स्वच्छ है यावत्प्रतिरूप है। निषेध नामक वर्षधर पर्वत के अन्त से चार सौ योजन ऊँचा और चार सौ गव्यूति गहरा है। शेष सब कथन उसी प्रकार है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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