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________________ ' सूत्र ४१८-४२२ तिर्यक् लोक : वक्षस्कार पर्वत गणितानुयोग २६५ चित्तकूडवक्खारपव्वयस्स णामहेऊ चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के नाम का हेतू४१८. ५०-से केण8 गं भंते ! एवं वुच्चइ-चित्तकूडवक्खार- ४१८. प्र०-भगवन् ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत चित्रकूट वक्षपव्वए चित्तकूडवक्खारपवए? स्कार पर्वत क्यों कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! चित्तकूडे य इत्थ देवे महिड्ढिोए-जाव- उ.-गौतम ! यहाँ चित्रकूट नामक महधिक-यावत् पलिओवमदिइए परिवसइ। से तेण?णं गोयमा! पल्योपम की स्थिति बाला देव रहता है। इस कारण गौतम ! एवं वुच्चइ-चित्तकूडवक्खारपवए चित्तकूडवक्खार- चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत कहा जाता है । पव्वए। रायहाणी उत्तरेणं । राजधानी उत्तर में है। -जंबु. वक्ख० ४, सु०६४ पम्हकूडवक्खारपब्वयस्स ठाणप्पमाणं पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत के स्थान और प्रमाण४१६. ५०-कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खार- ४१६. प्र०-भगवन् ! महाविदेह वर्ष में पद्मकूट (ब्रह्म) नामक पव्वए पण्णते? __ वक्षस्कार पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०—गोयमा ! णीलवंतस्स दविखणेणं, सीआए महाणईए उ०-गौतम ! नीलवन्त (वर्षधर पर्वत) के दक्षिण में, उत्तरेणं, महाकच्छस्स पुरथिमेणं, कच्छावईए पच्च- सीता महानदी के उत्तर में, महाकच्छ (विजय) के पूर्व में एवं स्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं कच्छावती (विजय) के पश्चिम में, महाविदेह वर्ष में पद्म (ब्रह्म) वक्खारपव्वए पण्णत्ते । कूट नामक वक्षस्कार पर्वत कहा गया है । उत्तर-दाहिणायए, पाईण-पडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा यह उत्तर-दक्षिण में लम्बा और पूर्व-पश्चिम में चौड़ा । है शेष चित्तकूडस्स,-जाव-भोगभोगाइं भुजमाणा विहरंति। वर्णन चित्रकूट (वक्षस्कार पर्वत) के समान है-यावत्-वहाँ -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ (देवादि) भोग भोगते हुए रहते हैं। पम्हकूडवक्खारपव्वयस्स णामहेऊ पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत के नाम का हेतु४२०.५०-से केण? णं भंते ! एवं बुच्चइ-पम्हकूडे वक्खार- ४२०. प्र०-भगवन् ! पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत, पद्मकूट वक्षपव्वए, पम्हकूडे वक्खारपब्वए ? स्कार पर्वत क्यों कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! पम्हकूडे य इत्थ देवे महिड्ढिोए-जाव-पलि- उ०-गौतम ! पद्मकूट नामक महधिक-यावत् -पल्योपम ओवमट्ठिइए परिवसइ। से तेण?णं गोयमा! एवं की स्थिति वाला देव रहता है, इस कारण गौतम ! पद्मकूट बुच्चह-पम्हकूडे वक्खारपब्वए पम्हकूडे वक्खार- वक्षस्कार पर्वत पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत कहा जाता है । पवए। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ णलिणकूडवक्खारपब्वयस्स ठाणप्पमाणं- नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत के स्थान और प्रमाण४२१. ५०-कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे गलिणकूडे णामं ४२१. प्र०-भगवन् ! महाविदेह वर्ष में नलिनकूट नामक वक्षववखारपवए पण्णत्ते ? __स्कार पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! णीलवंतस्स दाहिणेणं, सीआए महाणईए उ०-गौतम ! नीलवन्त (वर्षधर पर्वत) से दक्षिण में, सीता उत्तरेणं, मंगलावइस्स विजयस्स पच्चत्यिमेणं, आवत्तस्स महानदी से उत्तर में, मंगलावती विजय से पश्चिम में तथा विजयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे णलिण- आवर्तविजय से पूर्व में महाविदेह वर्ष में नलिनकूट नामक कडे णामं वक्खारपव्वए पण्णते, उत्तर-दाहिणायए वक्षस्कार पर्वत कहा गया है। यह उत्तर-दक्षिण में लम्बा और पाईण-पडीणविच्छिष्णे। पूर्व-पश्चिम में चौड़ा है । सेसं जहा चित्तकूडस्स-जाव-आसयंति । ___ शेष वर्णन चित्रकूट के समान है-यावत्-(यहाँ देव-देवियां) बैठते हैं। नलिनकूडवक्खारपव्वयस्स णामहेऊ नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत के नाम का हेतु४२२. १०-से केण8 गं भंते ! एवं बुच्चइ-ललिणकूडे व बार- ४२२. प्र०-हे भगवन् ! नलिन कूट वक्षस्कार पर्वत, नलिनकूट पथ्वए नलिनकूडवक्खारपव्वए ? वक्षस्कार पर्वत क्यों कहा जाता है ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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