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________________ २६४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : गजदंताकार वक्षस्कार पर्वत सूत्र ४१६-४१७ M मालवंतवक्खारपव्वयस्स णामहेऊ माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत के नाम का हेतु४१६. प०-से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ-मालवंते वक्खार- ४१६ प्र०-भगवन् ! माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत को माल्यवन्त पव्वए मालवंते वक्वारपव्वए? वक्षस्कार पर्वत क्यों कहते हैं ? उ०-गोयमा ! मालवंते णं वक्खारपब्वए तत्थ तत्थ देसे उ०-गौतम ! माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत पर स्थान-स्थान तहि-तहिं बहवे सरिआगुम्मा गोमालियागुम्मा-जाव- पर अनेक सरिकागुल्म, नवमालिकागुल्म-यावत्-मगदन्तिका मगदन्तिआगुम्मा, तेणं गुम्मा दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेति, गुल्म हैं । वे गुल्म पंचरंगी कुसुमों को उत्पन्न करते हैं, जो (कुसुम) जे ण तं मालवन्तस्स वक्खारपब्वयस्स बहुसमरमणिज्जं माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत के अत्यन्त समतल एवं रमणीय भूमिभाग भूमिभाग वायविधुअग्गसालामुक्कपुप्फपुजोवयारकलिअं को, वायु के संचार से, शाखाओं के अग्रभाग के हिलने से जो करेंति । मालवन्ते अ इत्थ देवे महिड्ढिीए-जाव- कुसुम झड़ते हैं, उन कुसुमों के द्वारा वे गुल्म सुशोभित करते हैं । पलिओवमट्टिइए परिवसइ । (इसके अतिरिक्त) यहाँ माल्यवन्त नामक महद्धिक-यावत् पल्योपम की स्थिति वाला देव निवास करता है । से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ-मालवन्ते वक्खार- इस कारण गौतम ! यह माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत माल्यवन्त पव्वए, मालवन्ते वक्खारपब्वए । अदुत्तरं च णं वक्षस्कार पर्वत कहलाता है। इसके अतिरिक्त गौतम ! (यह नाम) गोयमा ! -जाव-णिच्चे। -यावत्-नित्य है । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६२ चित्तकूडवक्खारपब्वयस्स ठाणप्पमाणं चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के स्थान और प्रमाण४१७. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे ४१७. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष में णामं वक्खारपब्बए पण्णत्ते ? चित्रकूट नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! सीआए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स वास- उ०-गौतम ! सीता महानदी के उत्तर में, नीलवन्त वर्षधर हरपव्वयस्स दाहिणणं, कच्छविजयस्स पुरथिमेणं, पर्वत के दक्षिण में, कच्छ विजय के पूर्व में तथा सूकच्छ विजय सुकच्छविजयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे के पश्चिम में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में चित्रकट महाविदेहे वासे चित्तकूडे णामं वक्खारपब्वए पण्णत्ते । नामक वक्षस्कार पर्वत कहा गया है । उत्तर-दाहिणायए, पाईण-पडीणवित्थिण्णे, सोलस- यह उत्तर-दक्षिण में लम्बा, पूर्व-पश्चिम में चौड़ाजोअणसहस्साई पंच य बाणउए जोअणसए दुण्णि य एगणवीसइभाए जोअणस्स आयामेणं, पंच जोअणसयाई १६५६२ - योजन लम्बा और पांच सौ योजन चौड़ा है। नीलवन्त विक्खंभेणं, नीलवंतवासहरपव्वयं तेणं चत्तारिजोअणसयाई उडुढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउसयाइं उब्वेहेणं, वर्षधर पर्वत के पास इसकी ऊँचाई चार सौ यौजन तथा गहराई चार तयणतरं च मायाए-मायाए उस्सेहोव्वेहपरिवुड्ढीए सौ कोस की है। तदनन्तर अनुक्रम से ऊँचाई और गहराई बढ़ती परिवडढमाणे परिवड्ढमाणे सीआमहाणई अंतेणं पंच- बढ़ती सीता महानदी के पास पांच सौ योजन की ऊँचाई व पाँच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तणं, पंचगाउअसयाई उन्वे- सौ कोस की गहराई हो जाती है। यह (वक्षस्कार पर्वत) अश्वहेणं, अस्सक्खंधसंठाणसंठिए, सव्वरयणामए, अच्छे स्कन्ध के आकार का, सर्वात्मना रत्नमय, स्वच्छ चिकना-यावत् सण्हे-जाव-पडिरूवे, उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइ- -प्रतिरूप है । यह दोनों ओर से दो पद्मवरवेदिकाओं और दो याहिं दोहि अ वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते । वनखण्डों से घिरा हुआ है। बण्णओ दुण्ह वि। इन दोनों का यहाँ वर्णन समझ लेना चाहिए। चित्तकूडस्स णं वक्खारपब्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के ऊपर अति सम एवं रमणीय भूमिभागे पण्णत्ते, जाव-भुञ्जमाणा विहरंति। भूमिभाग कहा गया है-यावत्-वहाँ (देव-देवियाँ भोग) भोगते -जंबु० वक्ख०४, सु०६४ हुए रहते हैं। १ ठाणं ४, उ०२, सु० ३०२
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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