________________
२६२
लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : वक्षस्कार पर्वत
सूत्र ४११-४१२
(8)
६. देवपब्वए, १०. गंधमायणे ।'
(6) देवपर्वत (१०) गंधमादन। -ठाणं० अ० १०, सु० ७६८ ४१२. सव्वे वि णं वक्खारपब्वया सीया-सीओयाओ महाणईओ ४१२. सभी वक्षस्कार पर्वत सीता-सीतोदा महानदियों के तथा
मंदरं वा पब्वयं तेणं पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच- मंदरपर्वत के समीप पाँच सौ योजन ऊँचे हैं, पाँच सौ गाउ भूमि गाउयसबाई उवहेणं । -ठाणं ५, उ० ३, सु० ४३४ में गहरे हैं।
(क) जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरित्थिमेणं सीयाए महाणईए उत्तरे कूले चत्तारि वक्खारपब्वया पण्णत्ता तं जहा
(१) चित्त कूडे, (२) पम्हकूडे, (३) नलिनकूडे, (४) एगसेले । जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं सीआए महाणईए दाहिणे कूले चत्तारि वक्खारपब्वया पणत्ता, तं जहा(१) तिकूडे, (२) वेसमणकूडे, (३) अंजणे, (४) मातंजणे । जम्बुद्दीवे दीके मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीओआए महाणईए दाहिणे कूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा(१) अंकावई, (२) पम्हावई, (३) आसीविसे, (४) सुहावहे । जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेण सीओआए महाणईए उत्तरे कूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा(१) चन्दपव्वए, (२) सूरपब्वए, (३) देवपव्वए, (४) नागपव्वए । जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स चउसु विदिसासु चत्तारि वक्खारपब्वया पण्णत्ता, तं जहा(१) सोमणसे, (२) विज्जुप्पभे, (३) गंधमायणे, (४) मालवंते ।
-ठाणं ४, उ०२. सु० ३०२ (ब) जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं पंच वक्खारपब्वया पणत्ता, तं जहा
(१) मालवंते, (२) चित्तकूडे. (३) पम्हकूडे, (४) नलिनकू डे, (५) एगसेले । जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं सीआए महाणईए दाहिणेणं पंच वक्खारपव्वया पण्णता, तं जहा(१) तिकूडे, (२) वेसमणकूडे, (३) अंजणे, (४) मायंजणे, (५) सोमणसे । जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीओआए महाणईए दाहिणणं पंच वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा(१) विज्जुप्पभे, (२) अंकावई, (३) पम्हावई, (४) आसीविसे, (५) सुहावहे । जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीओआए महाणईए उत्तरेणं पंच वक्खारपब्वया पण्णत्ता, तं जहा
(१) चन्दपव्वए, (२) सूरपव्वए, (३) नागपव्वए, (४) देवपव्वए, (५) गंधमायणे। -ठाणं ५, उ० २, सु० ४३४ (ग) जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं सीआए महाणईए उभओ कूले अट्ट वक्खारपब्वया पण्णत्ता, तं जहा
(१) चित्तकूडे, (२) पम्हकू डे, (३) नलिनाडे, (४) एगसेले, (५.) तिकडे, (६) वेसमणकू डे, (७) अंजणे, (८) मायंजणे । जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेण सीओआए महाणईए उभओ कूले अट्ठ वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-- (१) अंकाबई, (२) पम्हावई, (३) आसीविसे, (४) सुहावई, (५) चन्दपव्वए, (६) सूरपव्वए, (७) नागपव्वए, (८) देवपव्वए।
-ठाणं ८, सु० ६३७ (घ) “तथा विश तिर्वक्षस्कारपर्वताः, तत्र गजदन्ताकारा गंधमादनादयश्चत्वारः, तथा चतुःप्रकारमहाविदेहे प्रत्येकं चतुष्क चतुष्क
सद्भावात् षोडश चित्रकूटादयः सरलाः द्वयेऽपि मिलिता यथोक्तसंख्याकाः। -जम्बू० वृत्ति, वक्ष०६, सु० १२५ (ङ) स्थानांग ४, उ०२, सु० ३०२, स्थनांग ५, उ० २, सु० ४३४, स्थानांग १०, सू० ७६८-इन तीन सूत्रों में बीस वक्षस्कार
पर्वतों के नाम हैं किन्तु स्थानांग ८, सू० ६३७ में १६ वक्षस्कार पर्वतों के नाम हैं किन्तु गजदन्ताकार-(१) गंधमादन, (२) सौमनस, (३) विद्युत्प्रभ और (४) माल्यवन्त–इन चारों के नाम नहीं है अतः सम्भव है वर्षधर पर्वतों की संख्या के सम्बन्ध में दो मान्यतायें प्रचलित रही हैं- एक पक्ष बीस और एक पक्ष सोलह वक्षस्कार पर्वत मानता होगा, जो इन चार
गजदन्ताकार पर्वतों को वक्षस्कार पर्वत नहीं मानता होगा। २ सम० १०८ सूत्र १ और ऊपर अंकित सूत्र अक्षरशः सर्वथा समान हैं, किन्तु उसी १०८वें समवाय में ५वा सूत्र इस प्रकार है ।
"सोमणस-गन्धमादण-विज्जुष्पभ-मालवंता णं वक्खारपव्वया णं मंदरपब्बयं तेणं पंच-पंच जोयणसयाणं उड्ढे उच्चत्तेणं, पंच-पंच गाउयसयाइं उब्वेहेणं पण्णत्ता ।
-सम० १०८, सू०५ इस सूत्र की अपेक्षा ऊपर अंकित सूत्र अधिक व्यापक हैं ।