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________________ स्त्र ४०६-४११ तिर्यक् लोक : वक्षस्कार पर्वत गणितानुयोग २६१ आरमाण उत्तरड ढकच्छविजए उसहकूडपटवयस्स अवट्ठिई उत्तरार्ध कच्छ विजय में ऋषभकूटपर्वत की अवस्थिति पमाणं च और प्रमाण४०६. प०-कहि णं भते ! उत्तरड्ढकच्छविजए उसहकूडे णाम ४०६. प्र०-हे भगवन् ! उत्तरार्धकच्छ विजय में ऋषभकुट नाम पव्वए पण्णते ? का पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! सिंधुकुण्डस्स पुरत्थिमेणं, गंगाकुण्डस्स पच्च- उ०-हे गौतम ! सिन्धुकुण्ड के पूर्व में, गंगाकुण्ड के पश्चिम थिमेणं, णीलवंतवासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे में, नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणी भाग पर उत्तरार्ध कच्छ -एत्थ णं उत्तरद्धकच्छविजए उसहकूडे णामं पव्वए विजय में ऋषभकूट नामक पर्वत कहा गया है। पण्णते । अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, तं चेव पमाणं-जाव- ___ आठ योजन ऊपर की ओर ऊँचा है प्रमाण पूर्ववत् हैरायहाणी, णवरं से उत्तरेण भाणियव्वं । यावत्-राजधानी पर्यन्त विशेष- वह उत्तर की ओर है-ऐसा -जंबु० वक्ख० ४, सु०६३ कहना चाहिए। जंबुद्दीवे वक्खारपव्वया जम्बूद्वीप में वक्षस्कार पर्वतवोसं वक्खारपत्वया बीस वक्षस्कार पर्वत ४१०. ५०-जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया वक्खारा' पण्णता ? ४१०. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में वक्षस्कार (पर्वत) कितने कहे गये हैं ? -उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे वीस वक्खारपब्वया पण्णता। उ०-हे गौतम ! जम्बूद्वीप में बीस वक्षस्कार पर्वत कहे -जंबु० वक्ख० ६, सु० १२५ गये हैं। ४११. जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं सीआए महाणईए ४११. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मदरपर्वत के पूर्व में सीता उभओ कूले दसवक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा महानदी के दोनों किनारों पर दस वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, यथा १. मालवंते, २. चित्तकूडे, (१) माल्यवंत (२) चित्रकूट ३. पम्हकूडे, ४. नलिनकूडे, (३) पद्मकूट (४) नलिनकूट ५. एगसेले, ६. तिकूडे, (५) एकशैल (६) त्रिकूट ७. वेसमणकूडे, ८. अंजणे, (७) वैश्रमणकूट (८) अंजन ६. मायंजणे, १०. सोमणसे । (8) मातंजन (१०) सौमनस । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीओआए जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मंदरपर्वत के पश्चिम में सीतोदा महाणईए उभओ कूले दस वक्खारपब्बया पण्णत्ता, तं जहा- महानदी के दोनों किनारों पर दस वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, यथा१. विज्जुष्पभे, २. अंकावई, (१) विद्युत्प्रभ (२) अंकावती ३. पम्हावई, ४. आसीविसे, (३) पद्मावती (४) आशीविष ५. सुहावहे, ६. चंदपव्वए, (५) सुखावह (६) चन्द्रपर्वत ७. सूरपब्वए, ८. नागपव्वए, (७) सूर्य पर्वत (८) नागपर्वत १ "वक्खारपब्धया" इति ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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