SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र ४०५-४०६ तिर्यक् लोक : मालवंत पर्वत अट्ठो अट्ठो बहवे उप्पलाई पउमाई गंधावई वण्णाई गंधावईप्पभाई गंधावईप्पभासाई, पउमे अ इत्थ देवे महिड्ढीए पलिओनए परिवत राहाणी उत्तरेण — जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ मालवंतपरियाय चट्टवेयड उपव्ययरस अचट्ठिई मालवन्तपर्याय वृत्तवैताद्य पर्वत की अवस्थिति और पमाणं च ति । " बहवे उप्पलाई पउमाई मालवंतवण्णाई मालवं तप्पभाई मालवंतपणासाई, पमासे अ इत्थ देवे महिड्ढीए - जाव-प व-पलिओवमट्टिइए परिवसइ रायहाणी उत्तरेणं - जंबु० वक्ख० ४, सु० १११ ति नाम का हेतु अनेक उत्पल पद्म गंधापाती के समान वर्ण, आभा एवं प्रभा वाले हैं । वहाँ पद्म नामक महद्धिक देव - यावत् — पल्योपम की स्थिति वाला रहता है उसकी राजधानी उत्तर में हैं। प्रमाण ४०६. प० - कहि णं भंते ! हेरण्णवए वासे मालवंतपरिआए णामं ४०६. प्र० - हे भगवन् ! हैरण्यवत वर्ष में माल्यवन्तपर्याय नाम का वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ कहा गया है ? एपले ? । उ०- गोयमा ! सुवण्णकूलाए पच्चत्थिमेणं, रुपकू लाए पुरत्थिमेणं - एत्थ णं.... हेरण्णवयस्स वासस्स बहुमज्झ देसमाए मालवंतपरिआए णामं बट्टबेयपव्यए पम्पले एवं जो चैब सहायइस विश्वंभुच्य सुदेह परिव संडा बनावासी असो व मालवंतपरिआए वि भाणियव्वो । २ गणितानुयोग २५७ - - उ०- हे गौतम! सुवर्णकूला (महानदी) से पश्चिम में, रूप्यकूला (महानदी) से पूर्व में, हैरण्यवत वर्ष के मध्य भाग में मात्यवन्त पर्याय नाम का वृतापर्यंत कहा गया है। वृत्तवैताड्यपर्वत १ यह विस्तृत पाठ एक प्राचीन प्रति से यहाँ उद्धृत किया गया है गंधाबाई वेपयस्स गाम शब्दापाती की चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई, परिधि, संस्थान आदि का जो वर्ग है यही मात्यवंतपर्याय का भी कहना चाहिए। नाम का हेतु बहुत से उत्पल, पद्म माल्यवंतपर्वत के समान वर्ण आभा एवं प्रभा वाले हैं, वहाँ प्रभास नामक महधिक देव — यावत्पल्योपम स्थिति वाला रहता है, उसकी राजधानी उत्तर में है । प० सेकेणट्टणं भंते ! एवं वृच्चइ - "गंधावई वट्टवेयड् ढपव्वए, गंधावई वट्टवेअड्ढपव्त्रए " ? उ०- गोयमा ! गंधावई वट्टवेयड्ढपव्वएणं खुड्डा खुड्डियासु जाव - बिलपंतिआसु बहवे उप्पलाई पउमाई गंधावइ-वण्णाई गंधावइप्पभाई गंधावयासाई पउने अ इत्य देवे महिडीए-जाब पनिभोमईए परिवस से णं तत्य च सामाणियसाहस्सीणं जाव-मंदरस्स पयस्स उत्तरेण अयंमि] जम्बुद्दीवे दीवे रामाणी पणता । से एएणणं गोयमा ! एवं बुच्चइ " - गंधावई वट्टवेयड्ढपव्वए, गंधावई वट्टवेअड्ढपब्चए । - जंबु० बक्ख० ४, सु० १११ २ जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं हरिवास-रम्मएसु वासेसु दो वट्टवेयड्ढपव्वया पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला - जावपरिणाहेणं, तं जहा - (१) गंधावाई चेव, (२) मालवंतपरियाए चेव । तत्थ दो देवा महिडिया जाव पनिओमडिया परिवर्तति तं जहा (१) व (२) पउमे चैव । - - ठाणं २, उ०३, सु० ८७ ऊपर अंकित संक्षिप्त पाठ का उपलब्ध विस्तृत पाठ इस प्रकार है ३ (क) मालवंत परिआय वट्ट वेयड्ढपव्वयस्स णामहेउ - प० – से केणट्टणं भंते ! एवं बुच्चइ - " मालवंतपरिआए बट्टवेयड्ढपव्त्रए, मालवंतपरिआए वट्टवेयड्ढपव्वए" ? उ०- गोपमा ! मालवंतपरियाए वट्टवेयड्डपक्या बुद्धायासुजाव विलपतिया बहने उप्पलाई पउमाई मालवंतबाई मानवतप्पभाई.... मालवंतण्यासाई पभासे अस्य देवे महिडिवमट्टिए परिवस | णं
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy