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________________ २५६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : गंधापातीवृत्त वैताढ्य पर्वत सूत्र ४०३-४०५ से एएण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ- “सद्दावई वट्ट- हे गौतम ! इस कारण से शब्दापाती वृत्त वैताढ्यपर्वत वेयड्ढपब्बए, सद्दावई वट्टवेयड्पव्वए। शब्दापाती वृत्त वैताढ्यपर्वत कहा जाता है । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ७७ वियडावई वटटवेयड ढपव्वयस्स अवट्टिई पमाणं च- विकटापाती वृत्त वैताढ्यपर्वत की अवस्थिति और प्रमाण४०४. ५०-कहि णं भंते ! हरिवासे बासे वियडावई णामं वट्ट- ४०४. प्र.-हे भगवन् ! हरिवर्ष वर्ष में विकटापाती वृत्त वैताढ्य वेयड्डपव्वए पण्णत्ते ? | पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०—गोयमा ! हरीए महाणईए पच्चत्थिमेणं, हरिकताए उ०-हे गौतम ! हरी महानदी से पश्चिम में और हरिकता महाणईए पुरथिमेणं, हरिवासस्स बहुमज्झदेसमाए- महानदी से पूर्व में हरिवर्ष के मध्य में विकटापाती नामक वृत्त एत्थ णं वियडावई णामं वट्टवेयड्पवए पण्णते। वैताढ्यपर्वत कहा गया है। एवं जो चेव सदावइस्स विक्खंभुच्चत्तुब्वेह, परिक्खेवं शब्दापाती (वृत्त वैताढ्य पर्वत) की चौड़ाई ऊँचाई गहराई संठाण वण्णवासो अ सो चेव विअडावइस्स वि भाणि- परिधि-संस्थान आदि का जो वर्णक है, वही विकटापाती वत्त यव्वो। वैताढ्य पर्वत का भी कहना चाहिए। णवरं-पउमाई-जाव-विअडावइवण्णाभाई, अरुणे विशेष-(विकटापाती वृत्तवैताढ्यपर्वत पर छोटी-बड़ी अ इत्थ देवे महिड्ढीए एवं-जाव-दाहिणणं रायहाणी वापिकाओं) में पद्म है यावत्-विकटापातीपर्वत के वर्णके णेयवा।। -जम्बु० वक्ख० ४, सु० ८२ समान है, यहाँ अरुण महधिक देव-यावत्-दक्षिण में उसकी राजधानी जाननी चाहिए। गंधावई वट्टवेयड ढपन्वयरस अवट्ठिई पमाणं च- गंधापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत की अवस्थिति और प्रमाण४०५. ५०-कहि णं भंते ! रम्मए वासे गंधावई णामं वट्टवेयड्ढ- ४०५. प्र०-हे भगवन् ! रम्यक्वर्ष में गंधापाती वृत्त वैतादयपव्वए पण्णते? पर्वत कहा गया है ? उ०-गोयमा ! णरकताए महाणईए पच्चत्थिमेणं, णारी- उ०-हे गौतम ! नरकान्ता महानदी से पश्चिम में और कंताए महाणईए पुरस्थिमेणं, रम्मगवासस्स बहुमज्झ- नारी कान्ता महानदी से पूर्व में रम्यक् वर्ष के मध्य भाग में देसभाए- एत्थ णं गंधाबई णामं बट्टवेयड्ढपध्वए गंधापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत कहा गया है। पण्णत्ते। एवं जो चेव विअडावइस्स विक्खंभच्चत्तु वह परिक्खेव विकटापाती की चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई परिधि, संस्थान -संठाण-वण्णावासो अ सो चेव गधावइस्स वि भाणि- आदि का जो वर्णक है, वही गंधापाती का भी कहना चाहिए। यवो। जम्बट्टीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं हेमवत-हेरणवतेसु वासेसु दो बट्टवेयड ढपव्वया पण्णत्ता बहसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णाइवट्टति, आयाम-विक्खंभुच्चत्तोब्बेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा-(१) सहावाई चेव, (२) वियडाबाई चेव।। तत्य णं दो देवा महिड ढया-जाव-पालिओवमट्टिईया परिवसंति, तं जहा-(१) साती चेव, (२) पभासे चेव । -ठाणं २, उ० ३, सु० ८७. २ विषडावई बट्टवेयड उपव्वयस्स णामहेउ ५०-से केण→णं ! एवं बुच्चइ-"वियडावईवट्टवेयड्ढपव्वए, वियडावई वट्टवेयड्ढपव्वए ? उ०-गोयमा ! वियडावई वट्टवेयड्ढपव्वएणं खुड डा खुड्डियासु जाव बिलपंतिआसु बहवे उप्पलाई पउमाई वियडावई वण्णाई वियडावईप्पभाई वियडावइप्पभासाई, अरुणे अ इत्थ देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमदिइए परिवसइ । से ण तत्थ चउण्डं सामाणियसाहस्सीणं जाव मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं अण्णं मि जम्बुद्दीवे दीवे रायहाणी पण्णत्ता। से एएणटठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-"वियडावई बट्टवेयड्ढपब्वए वियडावइवट्टवेयड्ढपब्वए ।-जंबू. वक्ख.४, सू०५२।। नोट :-ऊपर अकित संक्षिप्त पाठ का यह विस्तृत पाठ है-जो एक प्राचीन प्रति से यहाँ उद्धृत किया है। (-संपादक),
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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