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________________ मूत्र ४०२-४०३ तिर्यक् लोक : वृत्त वैताढ्य पर्वत चत्तारि वट्टवेयड पावयासहायह बट्ट पेय पव्वयरस अबट्टिई पमाणं च ढ ४०२.० नंते ! हेमा वा साई मार्म बट्टवेयड - कहि णं वासे पव्त्रए पण्णत्ते ? उ०- गोयमा ! रोहिआए महाणईए पच्चत्थिमेणं, रोहिअंसाए महाणईए पुरत्थिमेणं हेमवयवासरस बहुमज्झ देसभाए - एत्थ णं सद्दावई णामं वट्टवेयड्ढपव्वए पण्णत्ते । एवं जोपणसहस्सं उ उच्चसंगं अहाइाई जोयणसयाइं उब्वेहेणं, एवं जोयणसहस्सं आयाम विक्खंभेणं', तिष्णि जोयणसहस्साइ एगं च बावट्ठ जोयणसयं किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते, सव्वत्थस मे पल्लगसंठाणसंठिए, सव्वरयणामए अच्छे - जाव-परुिवे । से णं गाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिविखत्ते, वेइया वणसंडवण्णओ भाणियव्वो । सहावस्स बट्टवेययस्वयस्त उपर बहसम णजे भूमिभागे पण्णत्ते । तस्स णं बहुसम-रमणिज्जस्स भूमि भागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महं पासाय वडेंस पण्णत्ते । बावट्ठ जोयणाई अद्ध जोयणं च उड़ढं उच्चत्तेणं, इक्लोस जोगाई कोर्सच आयाम-विवसंमे जाव सीहासणं सपरिवारं । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ७७ सद्दावई वट्ट्वेयड ढपव्वयस्स नामहेऊ पव्वए, सद्दावईवट्टवेयड्डपब्वए ? उ०- गोयमा ! सद्दावई वट्टवेयड्ढपव्वए णं खुड्डा खुड्डियासु बावीसु जाव- बिलपंतियासु बहवे उप्पलाई पउमाई सहावया सहावणाई सहायई वणभाई गणितानुयोग २५५ सहाय इत्थ देवं महिहीए-जार लिओमडिए परिवसइ इत्ति । से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं- जाव-मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं अण्णं मि जंबुद्दीवे दोवे रायहाणी पण्णत्ता । चारवृत्त वैताढ्यपर्वत शब्दापाती वृत्त बैतापर्यंत की अवस्थिति और प्रमाण४०२. प्र०-हे भगवन्! हैमवत वर्ष में शब्दापाती वृत्त बताय पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०- हे गौतम! शेहिता महानदी से पश्चिम में और रोहितांसा महानदी से पूर्व में हैमवत वर्ष के मध्य में शब्दापाती नामक वृत्त वैताद्य पर्वत कहा गया है । - यह एक हजार योजन ऊपर की ओर ऊँचा है, अढाइ सी योजन भूमि में गहरा है, एक हजार योजन लम्बा चौड़ा है, तीन हजार एक सौ बासठ योजन से कुछ अधिक की परिधि वाला है, सर्वत्र समान- - बराबर -- पल्यंक के आकार से स्थित है, सर्व रत्नभय है, स्वच्छ हैं- यावत् प्रतिरूप है । --- यह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है। यहाँ वेदिका और वनखण्ड का वर्णन कहना चाहिए। शब्दापाती वृसर्वताय पर्वत के ऊपर असिम रमपीव भू-भाग कहा गया है, उस अतिसम रमणीय भू-भाग के मध्य में एक महान् प्रासादावतंसक कहा गया है । ४०३.० से भते एवं पुण्यई सहाब बट्टड्ड ४०३. प्र०-हे भगवन्!ब्दापासी वृत्तायशब्दा पाती वृत्तापर्यंत क्यों कहा जाता है ? उ०- हे गौतम! शब्दापाती वृत्त वैतायपर्वत पर छोटीबड़ी वापिकाओं में- यावत् - बिलपंक्तियों में अनेक उत्पल वं पद्म हैं, वे शब्दापाती के समान प्रभा वाले हैं । शब्दापाती के समान वर्ण वाले हैं, शब्दापाती के समान आभा वाले हैं । यहाँ शब्दापाती नामक महद्धिक देव - यावत् - पल्योपम की स्थिति वाला रहता हैं । वह साडे बासठ योजन ऊपर की ओर ऊँचा है, इकतीस योजन और एक को लम्बा-चौड़ा है अनेक यावत् - वहाँ सिहासन हैं । शब्दापाती वृत्तवैतायपर्वत के नाम का हेतु वह वहाँ चार हजार सामानिक देवों का अधिपति है- यावत् उसकी राजधानी मेरु पर्वत से दक्षिण में स्थित अन्य जम्बूद्वीप द्वीप है। १ (क) सव्वादस दस जोयणसयाई उई उच्चतंगं पण्णत्ता दस दस गाउसवाई उत्त मूले दस दस जोयणसयाई विक्खं मेणं पण्णत्ता, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिया पण्णत्ता । - सम० ११३, सु० ४ । (ख) ठाणं १०, सु० ७२२ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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