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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक्लोक : दीर्घ वैताढ्य पर्वत
सूत्र ३९७
दोहवेयड्ढपव्वयस्स अवट्रिई पमाणं च
दीर्घवेताढ्य पर्वत की अवस्थिति और प्रमाण
३६७. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भरहेवासे दोहवेयड्ढे ३६७. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतवर्ष में दीर्घ वैताढ्य णामं पव्वए पण्णत्ते ?
___ नामक पर्वत कहाँ हैं ? उ०-गोयमा ! उत्तरड्ढ भरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढ- उ०-गौतम ! उत्तरार्ध भरत क्षेत्र के दक्षिण में, दक्षिणार्ध
भरहवासस्स उत्तरेणं, पुरथिम-लवणसमुद्दस्स पच्चत्थि- भरत क्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी मेणं, पच्चत्थिम-लवणसमुदस्स पुरथिमेणं- एत्थ णं लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के भरतवर्ष का दीर्घ वैताढ्य जंबुद्दीवे दीवे भरहेवासे दोहवेयड्ढे णामं पध्वए नामक पर्वत कहा है। पण्णते। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिण्णे । ___ यह पर्वत पूर्व-पश्चिम में लम्बा एवं उत्तर-दक्षिण में
चौड़ा है। दुहा लवणसमुद्दपुट्ठ।
दो ओर से लवणसमुद्र से स्पृष्ट है । पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दपुढे, पूर्व में पूर्वी लवणसमुद्र से स्पृष्ट है तथा पश्चिम में पश्चिमी पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्द लवणसमुद्र से स्पष्ट है ।
पणवीसं जोयणाई उडढ उच्चत्तेणं,' छ सकोसाइं इसकी ऊँचाई पच्चीस योजन, गहराई सवा छह योजन, एवं जोयणाई उब्वे हेण, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं । चौड़ाई पचास योजन है। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं चत्तारि अट्ठासीए जोयणसए सोलस य एगूणवीसइभागे जोअणस्स अद्ध
इसकी बाहु पूर्व-पश्चिम में ४८८..+ - योजन लम्बी है। भागं च आयामेणं पण्णत्ता। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण-पडीणायया ।
इसकी जीवा उत्तर में पूर्व-पश्चिम की ओर लम्बी तथा दोनों दुहा लवणसमुद्दपुट्ठा
ओर से लवणसमुद्र से स्पृष्ट है। पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द पुट्ठा, पूर्व की ओर पूर्वी लवणसमुद्र से स्पृष्ट है पश्चिम की ओर पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्ल लवणसमुह पश्चिमी लवणसमुद्र से स्पृष्ट है। पुट्ठा। दस जोयणसहस्साई सत्तवीसे जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं ।
इसकी लम्बाई १०७२०१२ योजन है।
तीसे णं धणुपिट्ठ दाहिणणं दस जोयणसहस्साई सत्त
इसका धनुःपृष्ठ दक्षिण मेंतेयाले जोयणसए पण्णरस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स परिक्खेवेण ।
१०७४३१५ योजन की परिधि वाला है।
रुअगसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे-जाव-पडिरूवे।
दीर्घ वैताढ्य पर्वत रुचक (ग्रीवा के आभूषण) के आकार का है, सर्वात्मना रत्नमय है, स्वच्छ-यावत्-है।
१ सव्वे वि णं दीहवेयड्ढपव्वया एगमेगं गाउयसयं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
–सम० १०० सु०६ २ सव्वे वि णं दीहवेयड्टपव्वया एणुवीसं पणुवीसं जोयणाणि उड्ढं उच्चत्तेणं, पणुवीसं पणुवीसं गाउयाणि उव्वेधेणं पण्णत्ता ।
-सम० २५, सु० ३ ३ सव्ये वि णं दीहवेयड्ढपव्वया मूले पण्णासं पण्णासं जोयणाणि विक्खंभेणं पण्णत्ता।
-सम० ५०, सु०४