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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : दो यमक पर्वत
सूत्र ३८६-३९०
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३८६. नंदणवणस्स णं पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ पच्चथिमिल्ले ३८६. नन्दनवन के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त का चरमंते एस णं नवनउइ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णते। अव्यवहित अन्तर निन्यानवें सौ योजन का कहा गया है।
-सम. ६६, सु. २ ३८७. एवं दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ उत्तरिल्ले चरमंते एस णं ३८७. इसी प्रकार दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त का णवणउइ जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते।
अव्यवहित अन्तर निन्यानवें सौ योजन का कहा गया है।
-सम. ६६, सु.३ ३८८. नंदणवणस्स णं हेछिल्लाओ चरमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स ३८८. नन्दनवन के नीचे के चरमान्त से सौगंधिक काण्ड के नीचे
हेटिल्ले चरमंते एस णं पंचासीइजोयणसहस्साई अबाहाए के चरमान्त का अव्यवहित अन्तर पचासी हजार योजन का कहा अंतरे पण्णत।
-सम. ८५, सु.४ गया है। जंबुद्दीवे चित्त-विचित्तकूडपव्वया
जंबूद्वीप में चित्र-विचित्र कूट पर्वतएगे चित्तकूडे पव्वए
एक चित्रकूट पर्वतएगे विचित्तकूडे पव्वए
एक विचित्रकूट पर्वत३८६. ५०-कहि णं भंते ! देवकुराए चित्त-विचित्तकूडा णामं दुबे ३८६. प्र०-हे भगवन् ! देवकुरु में चित्रकूट और विचित्रकूट पवया पण्णत्ता?
__ नाम के दो पर्वत कहाँ कहे गये हैं ? १०-गोयमा! णिसहस्स वासहरपवयस्स उत्तरिल्लाओ उ०-हे गौतम! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तरी चरमान्त
चरिमंताओ अट्ठ चोत्तोसे जोयणसए चत्तारि अ सत्तभाए से आठ सौ चोतीस योजन और चार योजन के सात भाग जितने जोयणस्स अबाहाए सीओआए महाणईए पुरथिम- अव्यवहित अन्तर पर शीतोदा महानदी के पूर्वी तथा पश्चिमी पच्चत्थिमेणं उभओ कूले-एत्थ णं चित्त-विचित्तकूडा दोनों किनारों पर चित्रकूट और विचित्रकूट नाम के दो पर्वत णाम दुवे पव्वया पण्णत्ता।
कहे गये हैं। एवं जच्चेव, जमगपव्वयाणं सच्चेव।
जो यमक पर्वतों का प्रमाण है वही प्रमाण इनका है। एएसि रायहाणीओ दक्खिणेणं ति ।।
इन पर्वतों के अधिपति देवों की राजधानियाँ दक्षिण में हैं। -जंबु० वक्ख० ४, सु०६८ दो जमगपव्वया
दो यमक पर्वत३९०.१०-कहि णं भंते ! उत्तरकुराए जम्मगा णामं दुवे पच्चया ३६०. प्र०-भगवन् ! उत्तरकुरु में यमक नामक दो पर्वत
___ कहाँ हैं ? उ०-गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ उ०-गौतम ! नीलवन्त नामक वर्षधर पर्वत के दक्षिणी
चरिमंताओ अट्ठ जोयणसए चोत्तीसे चत्तारि अ सत्तमाए जोयणस्स अबाहाए सीआए महाणईए उभओ चरमान्त से लेकर आठ सौ चोतीस ८३४-योजन के अला कुले-एत्थ णं जमगा णाम दुवे पव्वया पण्णत्ता।
में, शीता महानदी के दोनों तटों पर यमक नामक दो पर्वत हैं। जोअणसहस्सं उडढं उच्चत्तणं, अड्ढाइज्जाइं जोयण- उनकी ऊंचाई एक हजार योजन की एवं गहराई अढाई सौ सयाई उव्वेहेणं ।
योजन की है।
पण्णता ?
१ एवं चित्त-विचित्तकूडा वि भाणियव्वा ।
-सम. ११३, सु. २ यह संक्षिप्त सूत्र है; विस्तृत पाठ के लिए यमक पर्वतों का टिप्पण नं. २ देखें । २ एतयोश्चित्र-विचित्रकूटयोः एतदधिपति-चित्रविचित्रदेवयो राजधान्यो दक्षिणेनेति ।
"यमको-यमलजाती भ्रातरी तयोर्यत्संस्थानं तेन संस्थिती परस्पर सहशसंस्थानावित्यर्थः, अथवा यमका नाम शकुनिविशेषास्तसंस्थानसंस्थितो-जम्बू. वृत्ति.