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सूब ३६०-३६१
तिर्यक् लोक : दो यमक पर्वत
गणितानुयोग
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मूले एगं जोयणसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं,' मज्झे उनकी लम्बाई-चौड़ाई मूल में एक हजार योजन, मध्य में अद्भुटुमाणि जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं, उबरि साढ़े सात सौ योजन और ऊपर पांच सौ योजन की हैं । पंच जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं । मूले तिण्णि जोयणसहस्साई एगं च बावट्ठजोयणसयं उनकी परिधि में मूल में इकतीस सौ बासठ ३१६२ योजन किंचि विसेसाहिलं परिक्खेवेणं ।
से कुछ अधिक है। मझे दो जोयणसहस्साइं तिणि बावत्तरे जोयणसए मध्य में तेवीस सौ बासठ २३६२ योजन से कुछ अधिक । किंचि विसेसाहिलं परिक्खेवेणं। उरि एगं जोयणसहस्सं पंच य एकासीए जोयणसए ऊपर पन्द्रह सौ इकासी १५८१ योजन से कुछ अधिक है। किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं । मूले वित्थिण्णा, मज्झे संखित्ता, उप्पि तणुआ, जमग ये मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतले हैं। संठाणसंठिया, सव्वकणगामया, अच्छा सहा । वे यमकों (एक साथ उत्पन्न दो भाइयों) की आकृति के समान हैं
अर्थात् दोनों का आकार एक समान है। सर्व कनकमय, स्वच्छ
एवं चिकने हैं। पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्सित्ता, पसेयं पत्तेयं प्रत्येक एक-एक पद्मवरवेदिका से घिरा है और प्रत्येक एकवणसंडपरिक्खित्ता।
एक वनखण्ड से घिरा है। ताओ गं पउमवरवेइयाओ, दो गाउआई उद्धं उच्च- वे पद्मवरवेदिकाएँ दो गव्यूति ऊँची एवं पांच सौ धनष तेणं. पंचधणसयाई विक्खंभेणं, वेइया-वणसंड वण्णओ चौड़ी हैं। पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड का वर्णन समन लेना भाणियव्वो।
चाहिए। तेसि णं जमगपब्बयाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिमागे उन यमक पर्वतों के ऊपर अत्यन्त सम और रमणीक भमि. पण्णत्ते-जाव-तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स भाग हैं-यावत्-उस सम और रमणीय भूमिभाग के बीचोंबीच बहुमज्झदेसभाए-एत्थ णं दुवे पासायवडेंसगा पण्णत्ता। दो प्रासादावतंसक है। ते णं पासायवडेंसगा, बावट्टि जोषणाई अद्धजोयणं च वे प्रासादावतंसक साढ़े बासठ ६२॥ योजन ऊँचे वा उद्धं उच्चत्तेणं, इक्कतीस जोयणाई कोसं च आयाम- इकतीस ३१। योजन लम्बे-चौड़े हैं। विक्खंभणं। पासायवण्णओ भाणियव्वो।
यहाँ प्रासाद का वर्णन समझ लेना चाहिए। सीहासणा सपरिवारा-जाव-एत्थ णं जमगाणं देवाणं यहां सपरिवार सिंहासन है-यावत-वहाँ यमक देवों सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, सोलसभद्दासण- सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार मतासन हैं। साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-जंबु० वक्ख० ४, सु० ८८ जमगपव्वयाणं णामहेऊ
यमक पर्वत संज्ञा का हेतु१५० सेकेणणं भंते ! एवं बुच्चइ-"जमगा पव्वया, ३६१. प्र०-भगवन् ! यमक पर्वत यमक पर्वत क्यों कहलाते हैं?
जमगा पव्वया ?" उ०-गोयमा ! जमगपव्वएसु णं तत्थ तत्थ देसे तहि तहि उ०—गौतम! यमक पर्वतों पर स्थान-स्थान पर बढ़त-सी बहुवे खड़ा खड्डियासु बाबीसु-जाब-जमगवण्णामाई। छोटी-छोटी बापियों में-यावत्-बिलपंक्तियों में बहत-से उत्पल
-यावत्-यमक के वर्ण की आभा वाले हैं।
, सच्चे विगं जमगपव्वया दस दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता, दस दस गाउयसयाई उम्बेडेणं ।
मूले दस दस जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं ।