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सूत्र ३७८-३८०
तिर्यक् लोक : भद्रशाल वन में पुष्करिणियां
गणितानुयोग
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एवं जच्चेव सोमणसे पुव्ववणिओ गमो, भवणाणं, पुक्ख- इस प्रकार जो वर्णन सौमनसवन के प्रकरण में किया गया है रिणीणं पासायवडेंसगाणं य सो चेव णेयब्वो जाव सक्कीसाण वह सब यहाँ के भवनों, पुष्करिणियों एवं प्रासादावतंसकों के विषय वडेंसगा तेणं चेव परिमाणणं ।
में समझ लेना चाहिए-यावत्-शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के अवतं- -जंबु० ववख० ४, सु० १०६ सक भी उसी परिमाण के हैं । भद्दसालवणे सोडस पुक्खरिणीओ
भद्रशाल में सोलह पुष्करिणियाँ३७९. मंदरस्स णं पव्वयस्स उत्तर-पुरथिमेणं भद्दसालवणं पण्णासं ३७६. मेरु पर्वत से उत्तर-पूर्व की ओर भद्रशाल बन में पचास
जोअणाई ओगाहिता एत्थ णं चत्तारि गंदपुक्खरिणीओ योजन जाने पर चार नन्दा पुष्करिणियाँ (वापिकायें) कही गई पण्णताओ तं जहा–१ पउमा, २ पउमप्पमा चेव, ३ कुमुदा है, यथा-(१) पद्मा, (२) पद्मप्रभा, (३) कुमुदा, (४) कुमुद ४ कुमुदप्पभा।
प्रभा। ताओ णं पुक्खरिणीओ पण्णासं जोअणाई आयामेणं, पण- ये पुष्करिणियाँ पचास योजन लम्बी, पच्चीस योजन चौड़ी वोस जोअणाई विक्खंभेणं, बस जोयणाई उन्वेहेणं, वण्णओ। एवं दस योजन गहरी है। यहाँ इनका वर्णन है। पद्मवरवेदिकाएं बेइया-वणसंडाणं भाणिअब्बो। चउद्दिसि तोरणा-जाव-तासि और वनखण्ड का वर्णन यहाँ कहना चाहिए। इनकी चारों गं पुक्खरिणीणं बहुमज्मदेसभाए एत्थ णं महं एगे ईसाणस्स दिशाओं से (चार) तोरण हैं-यावत्-इन पुष्करिणियों के मध्य देवरणो पासायडिसए पण्णत्ते।
ईशान-देवेन्द्र देवराज का एक विशाल उत्तम प्रासाद कहा गया है। पंच जोअणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अकाइज्जाइं जोअण- यह पांच सौ योजन ऊँचा, अढ़ाई सौ योजन चौड़ा एवं उन्नत सयाई विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय, एवं सपरिवारो पासाय- शिखर वाला है। यहाँ सपरिवार प्रासादावतंसक का वर्णन कर वडिसओ भाणिअव्वो।
लेना चाहिए। मंदरस्स णं एवं दाहिणपुरस्थिमेणं पुक्खरिणीओ?
इसी प्रकार मेरु से दक्षिण-पूर्व में (चार) पुष्करिणियां हैं१ उप्पलगुम्मा, २ णलिणा, ३ उप्पला, ४ उप्पलुज्जला । (१) उत्पलगुल्मा, (२) नलिना, (३) उत्पला और तं चैव पमाणेणं।
(४) उत्पलोज्ज्वला । इनका प्रमाण भी वही (पूर्वोक्त) है। दाहिण-पच्चत्थिमेण वि पुक्खरिणीओ
दक्षिण-पश्चिम में भी (चार) पुष्करिणियाँ हैं । पाहा
गाथार्थ१भिगा, २ भिगनिमा चेव, ३ अंजणा, ४ अंजणप्पमा । (१) भृगा, (२) भृगनिभा, (३) अंजना और (४) अंजनप्रभा । पासायडिसओ, सक्कस्स सीहासणं सपरिवार । (इनके मध्य में) प्रासादावतंसक एवं शक्र का सपरिवार सिंहासन है। उत्तरपुरथिमेणं पुक्खरिणीओ
उत्तर-पूर्व में (चार) पुष्करिणियां हैंगाहा
गाथार्थ१ सिरिकता, २ सिरिचंदा, ३ सिरिमहिता चेव,४ सिरिणिलया। (१) श्रीकान्ता, (२) श्रीचन्दा, (३) श्रीमहिता और (४) पासायडिसओ, ईसाणस्स सीहासणं सपरिवारंति । श्रीनिलया। (इनके मध्य में) प्रासादावतंसक व ईशानेन्द्र का
-जंबु० बक्ख० ४, सु० १०३ सपरिवार सिंहासन है। चत्तारि अभिसेअसिलाओ
चार अभिषेक शिलाएँ३८०.५०-पंडकवणे णं भंते ! कइ अभिसेअसिलाओ पण्णत्ताओ? ३८०. प्र०-भगवन ! पंडकवन में अभिषेक-शिलायें कितनी
___ कही गई हैं ? उ०-गोयमा ! चत्तारि अभिसेअसिलाओ पण्णत्ताओ, तं उ०-गौतम ! चार अभिषेक-शिलायें कही गई हैं, यथा
जहा–१ पंडुसिला, २ पंडुकंबलसिला, ३ रत्तसिला, (१) पाण्डुशिला, (२) पाण्डुकंबलशिला, (३) रक्तशिला, ४ रत्तकंबलसिलेत्ति ।'-जंबु० वक्ख० ४, सु० १०७ (४) रक्तकंबलशिला ।
१ जंबुद्दीवे दीवे मंदरपब्बए पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलाओ पण्णताओ तं जहा
(१) पंडुकंबलसिला, (२) अइपंडुकंबलसिला, (३) रत्त कंबलसिला, (४) अइरत्तकंबलसिला।
-ठाणं ४, सु० ३०२