SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणितानुयोग : प्रस्तावना आकृति असम प्रदेशों की जघन्य संख्या समप्रदेशों की जघन्य संख्या वृत्त rin w गोल त्रिभुज त्रिभुजीय स्तूप x वर्ग x है। आगे भी उत्तरोत्तर वृद्धि दो, दो प्रदेशों के आधार से देकर उसकी दिशा को संरक्षित किया गया प्रतीत होता है । यहाँ स्पष्ट नहीं है कि लोक की अपेक्षा वह मुरज के संस्थान वाली है और अलोक की अपेक्षा उर्वशकट के संस्थान वाली क्यों कही गई है ? इन्द्रा दिशा एवं आग्नेयी विदिशा रुचक प्रदेशों से निकलती हैं । किन्तु आग्नेयी विदिशा की आदि में इन्द्रा की भांति दो प्रदेश न होकर एक प्रदेश दिया गया है। ऐसा क्यों ? रुचक का सम्भवतः अर्थ है जहाँ सभी अक्ष या ऐसा बिंदु जहाँ सभी दिशाओं के बिन्दु सामान्यतः मूल रूप लेते हैं। विमला भी रुचक प्रदेशों से निकलती है किन्तु उसके आदि में चार रुचक प्रदेश हैं । इनका सम्बन्ध मध्य की अष्ट प्रदेश युक्त रचना से होना चाहिये । उक्त सम्बन्ध में स्पष्ट है कि पंचास्तिकाय लेने पर अष्ट प्रदेश युक्त ज्यामितीय संरचना बन जाती है, जिससे संस्थान में निम्नलिखित चित्रानुसार दिशाएँ बंधती होंगी : is घन रेखा in w n त्रिपार्व चतुनीक वर्ग त्रिभुज सरल रेखा बिन्दु(अष्टप्रदेशी) उपरोक्त सम्बन्धी विशद विवरण हेतु देखिये जे० एफ० कोल कृत "दास फिजिकेलिश उण्ट बायलाजिश वेल्ट बिल्ड डेर इंडिशेन जैन-सेक्टे" प्रकाशक वर्ल्ड जैन मिशन, अलीगंज (एटा), १६५६, पृ० २४-२७ । आयात समान्तर फलक सूत्र ५४, पृ० २३ खगोल विषयक सामग्री में रूपी एवं अरूपी अजीव हैं । उनके देश एवं प्रदेश उल्लिखित हैं । विज्ञान विषयक शब्द स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश एवं परमाणु पुद्गल हैं। प्रदेश, देश की परिभाषा के लिए जै० ल० पृ० ७६१ देखिये । सूत्र ५५, पृ० २३ तीन भंग संचय गणित का रूप है। इसी प्रकार भंग की सामग्री सूत्र ५७ तक उल्लिखित है । इसमें सूत्र ५७ में मध्यम भंग, प्रथम भंग, शेष भंग दृष्टव्य हैं। अद्धासमय शब्द भी विचारणीय है । देखिये जै० ल० पृ० ३४ । सूत्र ५६, पृ० २७ यहाँ अल्पबहुत्व (Comparability) गणितीय विधि का उदाहरण है जो लोक के एक आकाश प्रदेश में जीवों और जीव प्रदेशों से सम्बन्धित है। यहाँ गणितीय शब्द जघन्य पद, अल्प, असंख्य गुण, उत्कृष्ट पद, और विशेष अधिक है। सूत्र ६०, पृ० २८ इसमें गणितीय शब्द ऊर्ध्व, पश्चिमी, उत्तरी, अधः, चरम अन्त, प्रदेश, देश और भंग हैं। सूत्र ६१, पृ० २६ यहाँ गणितीय शब्द संख्यातवें भाग, असंख्यातवें भाग, सम्पूर्ण लोक, संख्येय भागों, असंख्येय भागों हैं। इसी प्रकार के शब्द आगे की गाथाओं में दृष्टव्य हैं। देशन्यून शब्द भी महत्वपूर्ण है । यहाँ आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य शब्द भी विज्ञान गणित से सम्बन्धित हैं। सूत्र ६३, पृ० ३१ इसमें महत्वपूर्ण वैज्ञानिक शब्द स्पर्शना है जो गणित से सम्बन्धित है। सभी दिशाएं लोक की अपेक्षा असंख्य प्रदेश वाली तथा अलोक की अपेक्षा अनन्त प्रदेश वाली हैं। साथ ही लोक की अपेक्षा सादिसान्त तथा अलोक की अपेक्षा सादि-अनन्त हैं। उपर्युक्त चित्रों के सिवाय अन्य संस्थान भी बनते हैं, जैसे, मुरज, ऊर्ध्वशकट, मोतियों की माला, आदि । तदनुसार रुचक प्रदेश बनते होंगे। इस प्रकार रुचक का अभिप्राय संस्थानानुसार सम्मिलित अथवा इष्ट हो सकता है। __कापड़िया ने भगवतीसूत्र (७२६, ७२७) में प्रस्तुत प्रदेशों से रैखिकीय आकृतियों के बनाने की समस्या प्रस्तुत की है । (कापड़िया, गणिततिलक, १९३७) :
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy