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________________ सूत्र ३५६-३७२ तिर्यक् लोक : मंदर पर्वत गणितानुयोग २३७ ३५६. एवं मंदरस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ संखस्स आवास- ३५६. इसी प्रकार मेरु पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से शंख पव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीई जोयणसह- आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर सत्तासी स्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ८७, सु. ३ हजार योजन का कहा गया है । ३६०. एवं चेव मंदरस्स उत्तरिल्लाओ चरमंताओ वगसीमस्स ३६०, इसी प्रकार मेरु पर्वत के उत्तरी चरमांत से दगसीम आवासपव्वयस्स दाहिणिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीई जोयण- आवास-पर्वत के दक्षिणी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर सत्तासी सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ८७, सु. ४ हजार योजन का कहा गया है। ३६१. मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागाओ गोथुभस्स आवास- ३६१. मेरु पर्वत के मध्य भाग से गोस्तूप आवास पर्वत के पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्ले चरमंते एस गं बाणउइं जोयण- पश्चिमी चरमान्त का अव्यवहित अंतर बानवे हजार योजन कहा सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ६२, सु. ३ गया है । ३६२. एवं च उण्हं वि आवासपव्वयाणं। -सम. ६२, सु. ४ ३६२. इसी प्रकार चार आवास-पर्वतों का अन्तर भी है । ३६३. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथुमस्स ३६३. मेरु पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के णं आवासपव्वयस्स पच्चच्छिमिल्ले चरमंते एस गं सत्ताण- पश्चिमी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर सत्तानवें हजार योजन उइजोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । का कहा गया है। -सम. ६७, सु. १ ३६४. एवं चउदिसि पि । -सम. ६७, सु. २ ३६४. इसी प्रकार शेष तीन दिशाओं का अन्तर भी है। ३६५. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथुभस्स ३६५. मंदर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त के गोस्तूप आवास पर्वत आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस गं अट्ठाणउइ के पूर्वी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर अठानवें हजार योजन का जोयणसहस्साई अवाहाए अंतरे पण्णत्ते । -सम. ६८, सु. २ कहा गया है । ३६६. एवं चउदिसि पि। -सम. ६८, सु. ३ ३६६. इसी प्रकार शेष तीन दिशाओं का अन्तर भी है। ३६७. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ विजय- ३६७. मेरु पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से विजयद्वार के पश्चिमी दारस्स पच्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं पणपन्न जोयणसहस्साई चरमान्त का अव्यवहित अन्तर पचपन हजार योजन का कहा अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ५५, सु. २ गया है । ३६८. एवं चउद्दिसिपि वेजयंत-जयंत-अपराजियं ति । ३६८. इसी प्रकार चारों दिशाओं में वैजयन्त, जयन्त और -सम. ५५, सु. ३ अपराजित द्वार का अन्तर भी है। ३६९. मंदरस्स णं पब्धयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोयम- ३६६. मेरु पर्वत के पूर्वी चरमान्त से गौतम द्वीप के पूर्वी चरमान्त दोवस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तसटुिं जोयणसहस्साई का अव्यवहित अन्तर सड़सठ हजार योजन का कहा गया है । अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ६७, सु. ३ ३७०. मंदरस्स पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोयम- ३७०. मेरु पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से गौतम द्वीप के पश्चिमी होवस्स पच्चच्छिमिल्ले चरमते एस णं एगूणसरि जोयण- चरमान्त का अव्यवहित अन्तर उनहत्तर हजार योजन का कहा सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ६६, सु. २ गया है। ३७१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स एक्कारसहि एक्कवीसेहि ३७१. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मेरु पर्वत से अव्यवहित अन्तर जोयणसएहि अबाहाए जोइसे चारं चरइ। इग्यारह सौ इक्कीस योजन दूरी पर ज्योतिष चक्र प्रारम्भ -सम. ११. सु. ३ होता है। मंदरपव्वए चत्तारि वणाई मंदर पर्वत पर चार वन३७२.५०-मंदरे णं भंते ! पव्वए कइ वणा पण्णता? ३७२. प्र०-भगवन् ! मेरु पर्वत पर कितने वन कहे गये हैं ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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