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________________ २३६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : मंदर पर्वत सूत्र ३५१-३५८ पम्बए ?" मंदरपब्वयस्स णामहेऊ मंदर पर्वत के नाम का हेतु३५१. १०-से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ-"मंदरे पव्वए मंदरे ३५१. प्र०-हे भगवन् ! मंदर पर्वत मंदर पर्वत क्यों कहा जाता है ? 30-गोयमा ! मंदरे पव्वए-मंदरे गामं देवे महिड्ढीए-जाव. उ०-हे गौतम ! मंदर पर्वत पर मंदर नाम का पल्योपम पलिओवमट्टिईए परिवसइ। स्थिति वाला महद्धिक देव-यावत्-रहता है । से तेण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ--'मंदरे पव्वए, इस कारण से हे गौतम ! मंदर पर्वत मंदर पर्वत कहा मंदरे पव्वए।" जाता है। अदुत्तरं च णं गोयमा ! सासए णामधेज्जे पण्णत्ते । अथवा हे गौतम ! यह नाम शास्वत कहा गया है... -जंबु० वक्ख०४, सु० १०६ मंदरपव्वयस्स सोलसणामाइं मंदर पर्वत के सोलह नाम३५२. ५०-मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स कति णामधेज्जा पण्णत्ता? ३५२. प्र०-हे भगवन् ! मंदर पर्वत के कितने नाम कहे गये हैं ? छ०-गोयमा ! सोलस णामधेज्जा पण्णता, तं जहा- उ०-हे गौतम ! सोलह नाम कहे गये हैं, यथागाहाओ गाथार्थ१ मंदर २ मेरु ३ मणोरम ४ सुदंसण ५ सयंपभे य ६ गिरिराया। (१) मंदर, (२) मेरु, (३) मनोरम, (४) सुदर्शन, ७ रयणोच्चय ८ सिलोच्चय मज्झे लोगस्स १० णामी य (५) स्वयंप्रभ, (६) गिरिराज, (७) रत्नोच्चय, (७) शिलोच्चय, ११ मत्थे (च्छे) य १२ सूरियावत्तं १३ सूरियावरणेति या। (६) लोकमध्य, (१०) लोकनाभि, (११) अर्थ, (१२) सूर्यावर्त, १४ उत्तमे अ १५ दिसादी अ १६ वडेंसेति अ सोलसे।' (१३) सूर्यावरण, (१४) उत्तम, (१५) दिसादि, (१६) अवतंसक.... -जंबु० वक्ख० ४, सु० १०६ मंदरपव्वयमज्झदिसाइओ आबाहा अंतरं- मंदर पर्वत के मध्य भाग आदि से अबाधा अन्तर३५३. धरणितले मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्झदेसमाए रुयगनाभोओ ३५३. भूतल में मेरु पर्वत के मध्यभाग में रुचकनाभी से चारों पाउदिसि पंच पंच जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे मंदरपम्वए दिशाओं में मेरु पर्वत का अव्यवहित अन्तर पांच-पांच हजार पण्णत्ते। -सम. सु. ११८ योजन का कहा गया है। ३५४. मंदरस्स णं पव्वयस्स चउदिसि पि पणयालीसं पणयालीसं ३५४. मेरु पर्वत से (लवणसमुद्र का) अव्यवहित अंतर चारों जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णते। -सम. ४५, सु. ६ दिशाओं में पैंतालिस पैतालिस हजार योजन का कहा गया है । मंदरपव्वयाओ पदवयदीवाईणं अंतराइं मंदर पर्वत से पर्वत द्वीप आदि के अन्तर३५५. मंदरस्स गं पव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथुभस्स ३५५. मेरु पर्वत के पूर्वी चरमान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठासीइंजोयण- पूर्वी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर अट्ठासी हजार योजन का सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ८८, सु. ४ कहा गया है। ३५६. एवं चउसु वि दिसासु नेयव्वं । ३५६. शेष तीन दिशाओं का अन्तर भी इसी प्रकार जानना -सम. ८८, सु. ५ चाहिए। ३५७. मंदरस्स गं पव्ययस्स पुरच्छिमिल्लाओ घरमंताओ गोथुभस्स ३५७. मेरु पर्वत के पूर्वी चरमान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के आवासपव्वयस्स पच्चथिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं पश्चिमी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर सत्तासी हजार योजन जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।-सम.८७, सु०१ का कहा गया है। ३५८. मंबरसणं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ दगमासस्स ३५८. मेरु पर्वत के दक्षिणी चरमान्त से दग्भास आवास पर्वत के आवासपव्वयस्स उत्तरिल्ले चरमंते एस गं सत्तासीई जोयण- उत्तरी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर सत्तासी हजार योजन कहा सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम. ८७, सु.२ गया है। सम० १६ सूत्र ३ में भी मंदर पर्वत के सोलह नाम हैं। ऊपर प्रथम गाथा के तृतीय पद में मंदर पर्वत का आठवां नाम 'सिलोच्चय' है और समवायांग में 'पियदंसण' है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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