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सूत्र ३५०
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तिर्यक लोक मंदर पत
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प० - मज्झिमिल्लेणं भंते ! कंडे कतिविहे पण्णत्ते ?
उ०- गोयमा ! चउब्विहे पण्णत्ते तं जहा १ अंके, २ फलिहे, ३४ ए
प० - उवरिल्ले णं भंते ! कंडे कतिविहे, पण्णत्ते ?
उ०- गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते, सथ्य जंबूणयामए ।
प० - मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कंडे केवइअं बाले पण्यते ?
उ०- गोमा ! एवं जोयणसहस्सं माहले पाते।
प० - मज्झिमिल्ले णं भंते ! कंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ?
उ०- गोयमा ! तेवट्टि जोयणसहस्साई बाहरलेगं पणतं ।
प० - उवरिल्लेणं भंते ! कंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ?
उ०- गोवमा छत्तीस जोपणसहस्सा बाहल्लेणं पणतं ।
एवामेव सपुथ्वावरेणं मंदरे पव्वए एवं जोयणसय सहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ।' - जंबु० वक्ख० ४, सु० १०८ मंदरस्य णं पयसा पढने कंडे एगस जोयणसहरसाई उड्ढं उच्चतेणं पण्णत्ते । -- सम० ६१, सु० २ -
त्यस (मंदरस्स) णं पयरो बिलिए कंडे तीसंजोयणसहस्साई उद्धं उच्च लेणं होत्या ।
- सम० ३८, सु० ३
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तृतीय काण्ड का बाहुल्य ३६००० छत्तीस हजार योजन है ।
तीनों का संयुक्त बाहुल्य १०००,०० एक लाख योजन है ।
गणितानुयोग २३५
प्र० - हे भगवन् ! बीच का काण्ड कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ०- हे गौतम! चार प्रकार का कहा गया है, यथा(१) अंक-रश्न, (२) स्फटिक, (३) स्वर्ण, (४) रजत-चांदी
प्र० - हे भगवन् ! ऊपर का काण्ड कितने प्रकार का कहा गया है?
उ०- हे गौतम! एक प्रकार का कहा गया है, सारा काण्ड जम्बूनद — स्वर्णमय है ।
प्र० - हे भगवन् ! मंदर पर्यंत नीचे का काण्ड कितना मोटा - ऊँचा कहा गया है ?
उ०- हे गौतम! एक हजार योजन ऊँच कहा गया है ।
प्र० - हे भगवन् ! बीच का काण्ड कितना ऊँचा कहा गया है ?
उ०- हे गौतम! ऊपर का काण्ड कितना ऊँचा कहा गया है ।
प्र० - हे भगवान्! ऊपर का काण्ड कितना ऊँचा कहा गया है ?
उ०- हे गौतम ! छत्तीस हजार योजन ऊँचा कहा गया है । इस प्रकार पहले पीछे के सब मिलाकर पूरा मंदर पर्वत (सर्वाग्र) एक लाख योजन ऊँचा कहा गया है.....
मंदर पर्वत का प्रथम काण्ड इकसठ हजार योजन ऊँचा कहां गया है....
मंदर पर्वतराज का द्वितीय काण्ड अडतीस हजार योजन ऊँचा कहा गया है .....
दस दसाई जोयणसहस्साई सव्यमेणं पण्णत्ते ।
आ० स० से प्रकाशित जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के वक्षस्कार ४ के सूत्र १०८ में मंदर पर्वत के तीन काण्ड कहे गये हैं ।
प्रथम काण्ड का बाहुल्य (मोटाई - ऊँचाई ) १००० एक हजार योजन है ।
द्वितीय काण्ड का बाहुल्य ६३००० त्रेसठ हजार योजन है ।
डा० १० ०७१२
समवायांग सम० ६१, सूत्र २ तथा सम० ३८, सूत्र ३ में मंदर पर्वत के दो काण्ड कहे गये हैं ।
प्रथम काण्ड की ऊँचाई ६१००० इकसठ हजार योजन है और द्वितीय काण्ड की ऊँचाई ३८००० अडतीस हजार योजन है । दोनों आगमों के अनुसार भूतल के बाहर दो काण्ड हैं किन्तु उनकी ऊँचाई की योजन संख्या भिन्न-भिन्न है, इस मतान्तर की चर्चा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के वृतिकार ने भी की है।