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________________ २३४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक लोक : मंदर पर्वत सूत्र ३४८-३५० से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सवओ यह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड से चारों ओर से समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ ति। घिरा हुआ है, यहाँ पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड का बर्णन कहना -जंबु० वक्ख० ४, सु० १०३ चाहिए ।.... मंदरचूलिआए पमाणं मंदरचूलिका का प्रमाण३४६. पंडगवणस्स बहुमज्झदेसभाए-एत्थ गं मंदरचूलिआ णामं ३४४. पंडक वन के मध्य में मंदरचूलिका नाम की चूलिका कहीं चूलिआ पण्णत्ता। चत्तालीसं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं ।' यह चालीस योजन की ऊँची है। मूले बारसजोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे अट्ठजोयणाई . मूल में बारह योजन चौड़ी है, मध्य में आठ योजन चौड़ी है, .... विक्खंभेणं', उप्पि चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं ।। ऊपर चार योजन चौड़ी है। मूले साइरेगाइं सत्ततीसं जोयणाई परिक्खेवणं, मूल में इसकी परिधि सेंतीस योजन से कुछ अधिक की है। ...: मज्झे साइरेगाइं पणवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मध्य में इसकी परिधि पच्चीस योजन से कुछ अधिक की है। उपि साइरेगाइं बारसजोयणाई परिक्खेवेणं। ऊपर इसकी परिधि बारह योजन से कुछ अधिक की है। मूले वित्थिण्णा, मझे संखित्ता, उप्पि तणुआ, गोपुच्छ- मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त, ऊपर से पतली, गो-पुच्छ संठाणसंठिआ, सव्ववेरुलिआमई, अच्छा-जाव-पडिरूवा। के आकार की सारी चूलिका वैडूर्य रत्नमय, स्वच्छ-यावत् प्रतिरूप है। साणं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से समंता संपरिक्खित्ता, इति । घिरी हुई है। .. उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे-जाव-सिद्धाययणं । चूलिका के ऊपर बहुतसम रमणीय भूभाग पर-यावत् .. सिद्धायतन है। . बहुमज्झदेसभाए कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वह मध्यभाग में एक कोश लम्बा, आधा कोश चौड़ा कुछ देसूणगं कोसं उड्ढं उच्चत्तणं, अणेगखंभसयसन्निविट्ठा,-जाव- कम एक कोश ऊँचा है, सैकड़ों स्तम्भों से सन्निविष्ट-यावत्धूवकडुच्छुगा । -जंबु० वक्ख० ४, सु० १०६ धूपदानियों से युक्त है........ मंदरपव्वयस्स तओ कंडा मेरु पर्वत के तीन काण्ड३५०.५०-मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स कइ कंडा पण्णता? ३५०. प्र०-हे भगवन् ! मंदर पर्वत के कितने काण्ड कहे गये हैं ? : उ०--गोयमा! तओ कंडा पण्णत्ता, तं जहा-१ हिडिल्ले उ०-हे गौतम ! तीन काण्ड कहे गये हैं, यथा-(१) नीचे - कंडे, २ मझिल्ले कंडे, ३ उवरिल्ले कंडे । का काण्ड, (२) मध्य का काण्ड, (३) ऊपर का काण्ड । प०-मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हिडिल्ले कंडे कतिविहे प्र.-हे भगवन् ! मंदर पर्वत के नीचे का काण्ड कितने पण्णते? प्रकार का कहा गया है? उ०-गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–१ पुढबी, उ०-हे गौतम ! चार प्रकार का कहा गया है, यथा२ उवले, ३ वइरे, ४ सक्करा, (१) पृथ्वी, (२) पाषाण, (३) वज्र-अत्यन्त कठोर पाषाण, (४) शर्करा-रेत । १ मंदरचूलिया णं चत्तालीसं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता।' २ मंदरस्स णं पव्वयस्स चूलिया मूले दुवालसजोयणाइ विक्खंभेणं पण्णत्ता। ३ मंदरचूलिया णं बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई विक्खंभेण पण्णत्ता। ४ मंदर चूलिया णं उरिं चत्तारि जोयणाई विखं भेणं पण्णत्ता । -सम० ४०, सु०२ -सम० १२, सु०६ -ठाणं० ८ सु० ६३६ -ठाणं उ०२ सु० २६६
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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