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सूत्र ३४८
तिर्यक् लोक : मंबर पर्वत
गणितानुयोग
२३३
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एगे मंदरे पव्वए
मंदर पर्वत एक हैमंदरपव्वयस्स अवट्रिई पमाणं च
मंदर पर्वत की अवस्थिति और प्रमाण३४८. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरे ३४८. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में णामं पब्बए पण्णत्ते ?
मन्दर नाम का पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! उत्तरकुराए दक्खिणेणं, देवकुराए उत्तरेणं, उ०-हे गौतम ! उत्तरकुरु से दक्षिण में देवकुरु से उत्तर
पुव्वविदेहस्स वासस्स पच्चत्थिमेणं, अवरविदेहस्स में पूर्व महाविदेह क्षेत्र से पश्चिम में, पश्चिम महाविदेह क्षेत्र से वासस्स पुरथिमेणं, जंबुद्दीवस्स बहुमज्झदेसभाए- पूर्व में जम्बूद्वीप के ठीक मध्यभाग में मन्दर नाम का पर्वत कहा एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरे णाम पव्वए पण्णत्ते। गया है । णवणउति जोयणसहस्साई उद्धं उच्चत्तेणं', एगं जोयण- यह निन्यानवे हजार योजन ऊंचा है, एक हजार योजन भूमि सहस्सं उव्वेहेणं ।।
में गहरा है। मूले दसजोयणसहस्साई णवई च जोयणाई दस य मूल में इसकी चौड़ाई दस हजार और नव्वे योजन तथा एगारसभाए जोयणस्स विक्खंभेणं ।
दस योजन के इग्यारवें भाग जितनी है । धरणितले दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं ।।
भूतल पर इसकी चौड़ाई दस हजार योजन जितनी है । तयणंतरं च णं मायाए मायाए परिहायमाणे परिहाय- तदनन्तर थोड़ा-थोड़ा कम होते-होते ऊपर के तल की चौड़ाई माणे उवरितले एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं । एक हजार योजन जितनी है । मूले एक्कतीसं जोयणसहस्साई णव य दसुत्तरे जोयण- मूल में इसकी परिधि इकतीस हजार नो सौ दस योजन और सए तिणि अ एगारसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं । तीन योजन के इग्यारवें भाग जितनी है। धरणितले एक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे भूतल पर इसकी परिधि इगतीस हजार छ सौ तेवीस योजन जोयणसए परिक्खेवेणं ।।
की है। उवरितले तिणि जोयणसहस्साई एगं च बावट्ठ ऊपर के तल की परिधि तीन हजार एक सौ बासठ योजन जोयणस किचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं। से कुछ अधिक की है। मले वित्थिणे, मज्झे संखित्ते, उरि तणुए गोपुच्छ- यह मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त, ऊपर पतला, गो-पुच्छ संठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे सण्हे-जाव-पडिहवे। के आकार का सारा पर्वत रत्नमय स्वच्छ, चिकना-यावत
प्रतिरूप है।
१ मंदरे णं पव्वए णवणउति जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
--सम० ६६, सु०१ २ जम्बुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए दसजोयणसयाई उब्वेहेणं, पण्णत्ते ।
-ठाणं १०, सु०७१६ ३ मंदरे णं पव्वए मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ते ।
--सम० १०, सु०३ ४ (क) धरणितले दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं ।
-ठाणं १० सु०७१६ (ख) मंदरे णं पव्वए धरणितले दस जोयणसहस्साई विक्खभेणं पण्णत्ते ।
-सम० १२३ ५ (क) उवरि दसजोयणसयाई विक्खंभेणं ।
-ठाणं १०, सु०७१६ (ख) मंदरे णं पव्वए धरणितलाओ सिहरतले एक्कारसभागपरिहीणे उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
-सम० ११, सु०७ भावार्थ-मेरु पर्वत की ऊँचाई भूतल से शिखर पर्यन्त निन्यानवे हजार योजन की है इस ऊँचाई के इग्यारवें भाग हीन शिखर
का विष्कम्भ है, अर्थात-भूतल पर मेरु पर्वत का विष्कम्भ दस हजार योजन का है और शिखर पर एक हजार
योजन का है। ६ मंदरे णं पध्वए धरणितले एक्कतीसं जोयणतहस्साइं छच्च ते वीसे जोयणसए किंचिदेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।
-सम० ३१, सु०२