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२३२ लोक-प्रज्ञप्ति
उ०- गोयमा ! रुप्पी णाम वासहरपव्वए रुप्पी, रुप्पप्पभे, रुपमासे, सव्वरुप्पामए ।
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रुपी अ इत्थ देवे महिड्ढीए-जाव- पलिओवमट्ठिईए परिवसइ ।
से एएग णं गोषमा ! एवं बुवइ "रुप्पी' वासहर पव्वए, रूप्पी वासहरपवए ।
- जंबु० वक्ख० ४, सु० १११
(६) सिहरी वासहरपव्वयस्स अवट्ठिई पमाणं च२४६. १० ते जंबूदरी सिहरी गामं बासहरपव्वए पण्णत्ते ?
तिर्यक लोक द्वीप में पर्वत
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सिहरी वासहरपथ्ययस्स णामहेऊ३४७. ५० से
उ०- गोयमा ! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं, एरावयस्स दाहिणेणं, पुरस्थिम लवणसमुदस्स पश्चत्थिमेणं पञ्चत्थिम-लवणसमुद्दस पुरत्थिमेणं ।
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एवं जह चुल्लहिमगंतो तह चेव सिहरी वि, णवरं - जीवा दाहिणेणं, धणु उत्तरेणं, अवसिट्ठ तं चेव । - जंबु० वक्ख० ४, सु० १११
भंते! एवं बुम्ब-"सिहरिवासहरपण्यए सिरिवा सहरपव्वए ?
उ०- गोयमा सिरिम वासहरपच्चए महये कूडा सिहर संडासंठिया, सम्वरणामा ।
सिहरी अ इत्थ देवे महिड्ढीए - जाव-प -पलिओ मट्ठिईए परिवसइ ।
सेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - "सिहरिवासहरपव्वए, सिहरिवासहर पन्थए ।
- जंबु० वक्ख० ४, सु० १११
उ०- हे गौतम ! रुक्मी नाम का वर्षधर पर्वत रुप्य रुप्यप्रभ प्रकाशित एवं सम्पूर्ण पर्वत रुप्यमय है ।
रुक्मी नाम का पल्योपम स्थिति वाला महद्धिक देव - यावत् - वहाँ रहता है।
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हे गौतम ! इस कारण से रुक्मी वर्षधर पर्वत, रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है ।
सूत्र ३४५-३४७.
(६) शिखरी वर्षधर पर्वत का अवस्थिति और प्रमाण२४६. प्र०-हे भगवन्! जम्बूद्वीप द्वीप में शिबरी नाम का वर्ष पर्वत कहाँ कहा गया है ?
उ०- हे गौतम ! हैरण्यवत क्षेत्र से उत्तर में ऐरवत क्षेत्र से दक्षिण में पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में पश्चिमी लवणसमुद्र से पूर्व में.....
क्षुद्रहिमवान् वर्षधर पर्वत का जो कथन है वैसा ही शिखरी वर्षधर पर्वत का है, विशेष यह है कि इसकी जोवा दक्षिण में है। और धनुपृष्ठ उत्तर में है, शेष सब उसी प्रकार है ।
शिखरी वर्षधर पर्वत के नाम का हेतु
२४७. ५० हे भगवन्! शिखरी वर्षधर पर्वत शिखरी वर पर्वत क्यों कहा जाता है ?
उ०- हे गौतम! शिखरी वर्षधर पर्वत पर शिखरी नामक वृक्ष के आकार से स्थित अनेक कूट हैं, वे सब रत्नमय है ।
शिखरी नाम का पल्योपम की स्थिति वाला महद्धिक देवयावत्-वहाँ रहता है।
१ अदुत्तरं च णं गोयमा ! रुप्पी वासह पव्वयस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते, जं ण कयाइ णासि - जाव - णिच्चे । यह पाठ आ० स० की प्रति में नहीं है।
हे गौतम ! इस कारण से शिखरी वर्षधर पर्वत शिखरी वर्षधर पर्वत कहा जाता है ।
(क) सम० १०० सु० ६ । चुल्लहिमवान् पर्वत के टिप्पण के समान ये टिप्पण है।
(ख) सम० २४ सु० २ ।
....शिखरिणि पर्यो बहूनि कूटानि शिखरी वृक्षस्तत्संस्थान संस्थितानि सर्वरत्नमयानि सन्तीति तद्योगाखिरी .....
- जम्बू ० वृत्ति
४ अदुत्तरं च णं गोयमा ! सिहरि वासहरपव्वयस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते, जं ण कयाइ णासि – जाव - णिच्चे । यह पाठ आ० स० की प्रति में नहीं है ।
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