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________________ मूत्र ३४२-३४५ तिर्यक् लोक : जंबूद्वीप में पर्वत गणितानुयोग २३१ पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिण वित्थिण्णे । यह पूर्व तथा पश्चिम में लम्बा है, उत्तर तथा दक्षिण में विस्तृत हैं। णिसहवत्तव्वया णीलवंतस्ह भाणियब्वा,' णवरं जीवा निषध वर्षधर पर्वत के कथन के समान नीलवन्त वर्षधर दाहिणेणं, धणु उत्तरेणं । पर्वत का कथन करना चाहिए, विशेष यह है कि नीलवन्त वर्षधर , -जंबु० बक्ख० ४, सु० ११० पर्वत की जीवा दक्षिण में है और धनुपृष्ठ उत्तर में है । णीलवंतवासहरपव्वयस्स णामहेऊ नीलवन्त वर्षधर पर्वत के नाम का हेतु३४३. ५०-से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ-"णोलवते वासहर- ३४३. प्र.-हे भगवन् ! नीलवन्त वर्षधर पर्वत क्यों कहा पवए, णीलवंते वासहरपव्वए ? जाता है ? उ०-गोयमा ! णीले णीलोभासे गोलवते अ इत्थ देवे महि- उ०-हे गौतम ! नीले वर्ण वाला, नीले प्रकाश वाला ड्ढीए-जाव-पलिओवमट्ठिईए परिवसइ । नीलवन्त नाम का पल्योपम स्थिति वाला महद्धिक देव-यावत् वहाँ रहता है। सव्व वेरुलिआमए णीलवंते-जाव-णिच्चे, ति । सारा पर्वत वैडूर्य रत्तमय है, नीलवन्त नाम-यावत् - -जम्बु० वक्ख०४, सु० ११० नित्य है । (५) रुप्पो वासहरपव्वयस्स अवट्टिई पमाणं च- (५) रुक्मी वर्षधर पर्वत की अवस्थिति और प्रमाण३४४. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे रुप्पी णामं वासहरपव्वए ३४४. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप में रुक्मी नाम का वर्षधर पण्णत्ते। पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-हे गौतम ! रम्यक् क्षेत्र से उत्तर में, हैरण्यवय क्षेत्र से दक्खिणेणं, पुरस्थिम-लवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र से पच्चत्थिम लवणसमुदस्स पुरथिमेणं- एत्थ णं जंबुद्दीवे पूर्व में इस जम्बूद्वीप द्वीप में रुक्मी नाम का वर्षधर पर्वत कहा दोवे रुप्पी णाम वासहरपव्वए पण्णत्ते । गया है। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिणे । यह पूर्व तथा पश्चिम में लम्बा है, उत्तर तथा दक्षिण में विस्तृत है। एवं जा चेव महाहिमवंत-वत्तव्वया सा चेव रुप्पिस्स महाहिमवान् वर्षधर पर्वत का जो कथन है बही रक्मी वर्षवि। धर पर्वत का है। णवरं-दाहिणणं जीवा, उत्तरेणं धणु, अवसेसं तं विशेष यह है कि इसकी जीवा दक्षिण में है और धनपृष्ठ चेव। -जंबु० वक्ख० ४, सु० १५१ उत्तर में है, शेष सब उसी प्रकार है। रुप्पी वासहरपब्वयस्स णामहेऊ रुक्मी वर्षधर पर्वत के नाम का हेतु३४५. ५०-से केज8 गं भंते ! एवं बुच्चइ-"रुप्पी वासहरपव्वए, ३४५. प्र०-हे भगवन् ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रुक्मी वर्षधर पर्वत रुप्पी वासहरपन्वए ?" क्यों कहा जाता है ? १ (क) ठाणं ४, उ० २, सु० २६६ निषध पर्वत के टिप्पण के समान ये टिप्पण है। (ख) सम० १०६, सु०२ (ग) सम० ६४, सु० १। । १२ (क) सम० १०२, सु०२। महाहिमवंत पर्वत के टिप्पण के समान ये टिप्पण हैं । (ख) सम० ५३, सु०२। (ग) सम० ५७, सु०५।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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