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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : जंबूद्वीप में पर्वत
सूत्र ३४०-३४२
तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण-पडीणायया जाव-पच्चत्थि- उसकी जीवा उत्तर में है, पूर्व तथा पश्चिम में लम्बी-- मिल्ल लवणसमुद्दपुट्ठा, चउणवई जोअणसहस्साई एगं यावत्-पश्चिमी लवणसमुद्र से स्पर्शित है, चौरानवें हजार एक च छप्पण्णं जोअणसयं दुण्णि अ एगूणवीसइभाए सौ छप्पन योजन तथा दो योजन के उन्नीसवें भाग जितनी जोयणस्स आयामेणं' ति।।
लम्बी है। तस्स घणु दाहिणणं एगं जोयणसयसहस्सं चउवीसं च उसका धनुपृष्ठ दक्षिण में है, उसकी परिधि एक लाख जोअणसहस्साई तिण्णि अ जोयणसए छायाले णव य चौबीस हजार तीन सौ छियालीस योजन तथा एक योजन के एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं ति। उन्नीसवें भाग जितनी है। रुअगसंठाणसंठिए सव्वतवणिज्जमए अच्छे-जाव- रुचक (एक आभूषण विशेष) के आकार से स्थित है. सारा पडिरूवे।
पर्वत तपाये हुए स्वर्णमय है, स्वच्छ है-यावत्-प्रतिरूप है। उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि अवणसंडेहिं दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं से तथा दो वनखण्डों से सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ।
सारा घिरा हुआ है। णिसहस्स णं वासहरपव्ययस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे निषध वर्षधर पर्वत के ऊपर अतिसमरमणीय भूभाग कहा भूमिमागे पण्णत्ते, जाव-आसयंति, सयंति । गया है-यावत-वहाँ अनेक वाणव्यन्तर देव-देवियाँ बैठते हैं।
-जम्बु० वक्ख० ४, सु० ८३ शयन करते हैं। णिसढवासहरपव्वयस्स णामहेऊ
निषध वर्षधर पर्वत के नाम का हेतु३४१. १०-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-"णिसढे वासहरपब्वए, ३४१. प्र०-हे भगवन् ! निषध वर्षधर पर्वत, निषध वर्षधर णिसढे वासहरपव्वए"?
पर्वत क्यों कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! णिसहे णं पव्वए बहवे कूडा णि सहसंठाण- उ०-हे गौतम ! निषध पर्वत पर निषध-वृषभ आकार के संठिया, (उसभसंठाणसंठिया)।
अनेक कूट है। णिसहे अ इत्थ देवे महिड्ढीए-जाव-पलिओवमट्ठिईए निषध नाम का पल्योपम की स्थिति वाला महद्धिक देवपरिवसइ।
यावत्-वहाँ रहता है। से तेणट्रण गोयमा ! एवं बुच्चइ-"णि सढे वासहर- हे गौतम ! इस कारण से निषध वर्षधर पर्वत-निषध वर्षधर पव्वए, जिसढे वासहरपव्वए।'
पर्वत कहा जाता है। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८४ (४) णीलवंतवासहरपव्वयस्स अवठिई पमाणं च- (४) नीलवन्त वर्षधर पर्वत की अवस्थिति और प्रमाण३४२. ५०-कहिणं भते ! जबुद्दीवे दीवे णीलवंते णामं वासहर- ३४२. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप में नीलवन्त नाम का पवए पण्णते ?
वर्षधर पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स उ०-हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्र से उत्तर में, रम्यक् क्षेत्र
दक्खिणेणं, पुरत्थिम-लवणसमुद्दस्स पच्चत्यिमेणं, से दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र पच्चत्थिम-लवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं-एत्थ णं जंबुद्दीवे से पूर्व में-इस जम्बूद्वीप द्वीप में नीलवन्त नाम का वर्षधर पर्वत दोवे णीलवते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते । कहा गया है।
१ णिसढ़-नीलवंतियाओ णं जीवाओ चउणवई चउणवई जोयणसहस्साई एक्कं छप्पण्णं जोअणसयं दोण्णि अ एकूणवीसइभागे जोयणस्स . आयामेणं पण्णत्ताओ।
-सम० ६४, सु०१ २ "नितरां सहते स्कन्धे पृष्ठे वा समारोपितं भारमिति निषधो-वृषभः"
-जम्बू० वृत्ति ३ अदुत्तरं च गं गोयमा ! णिमहस्म सासए णामधेज्जे पण्णत्ते, जं न कयाइ णासि-जाव-णिच्चे।
यह पाठ आ० स० को प्रति में नहीं है ।