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________________ सूत्र ३३६-३४० तिर्यक् लोक : जंबूद्वीप में पर्वत महाहिमवंतवासहरपव्वयस्स णामहेक ३३६. ५० हिमवतं -से केणटुणं भंते! एवं वुच्चइ - "महाहिमवंते वासहरपवाए महाहिमवते बाहरपए ?" उ०- गोषणा | महाहिमवंतेगं वासहरपरबए वासहयस्वयं पणिहाय आयामुच्चतुयेविषभ परिक्खेवेणं महंततराए चेव, दीहतराए चेव । महाहिमवते इस्य देवे महिना-यमिट्टिए परिवसइ ।" - जंबु० वक्ख० ४, सु० ८१ (३) जिसहवासहर पण्ययस्स अट्ठाई पमाणं च३४०० ते जंबूचे दीवे सिहे गामं वासहर पव्वए पष्णते ? उ०- गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स वि हरिवारस उसरेण पुरत्थिम- लवणसमुद्रस पस्चरिथमेनं पच्च स्विम लवणसमुदसपुरस्थिमेणं एत्य णं जंबुद्दीये दीये जिस णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते । पाण-पडीणापए, उरीणाहित्यि हा लवणसमुद्द े । पुरत्थि मिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द पुट्ठ े । मिलाएकोडीए पम्चरिमितं लवणसमुद्र पुट्ट चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउअसयाई उब्बेणं' सोलसनोपणसहस्साई अटु य बावाले जोपणसए दोणि अ एगुणबी सहभाए जोवनरस विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं वीसं जोअणसहस्साइं एवं च पणस जोअणसयं दुण्णि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स अनुभागं च आयामेगं । महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के नाम का हेतु३३६० ! वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गणितानुयोग महाहिमवान् वधर पर्वत महाहिमवान् उ०- हे गौतम! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत क्षुद्र हिमवान् वधर पर्वत की अपेक्षा लम्बाई ऊँचाई भूमि में गहराई चौड़ाई परिधि में बड़ा है, लम्बा है । २२६ महाहिमवान् नाम का पल्योपम की स्थिति वाला महद्धिक देव - यावत्-वहाँ रहता है । (३) निषध वर्षधर पर्वत की अवस्थिति और प्रमाण ! ३४० प्र०-हे भगवन् जम्बूद्वीप द्वीप में निषेध नाम का वर्ष धर पर्वत कहाँ कहा गया है ? उ०- हे गौतम! महाविदेह क्षेत्र से दक्षिण में हरिवर्ष क्षेत्र से उत्तर में पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में पश्चिमी समुद्र से पूर्व में जम्बूद्वीप द्वीप में निषध नाम का वरप गया है । यह पूर्व तथा पश्चिम में लम्बा है, उत्तर तथा दक्षिण में विस्तृत है। दोनों ओर से लवणसमुद्र से स्पर्शित हैं । पूर्वी कोण से पूर्वी लवणसमुद्रस्पति है। पश्चिमी कोण से पश्चिमी लवणसमुद्र स्पर्शित है । यह चार सौ योजन ऊँचा है, चार सौ गाउ भूमि में गहरा है, सोलह हजार आठ सौ वियालीस योजन तथा दो योजन के उन्नीसवें भाग जितना चौड़ा है। १ से एएमटणं गोदमा ! एवं वृथ्चइ "महाहिमवते बासहरपण्यए महाहिमवंते वासहरपल्यए । अदुत्तरं व गोमा ? महाहिमवतस्स सासए नामधेये कमाइ नासि नाव - जिये । उसकी बाहु पूर्व तथा पश्चिम में बीस हजार एक सौ पैसठ योजन तथा दो योजन के उन्नीसवें भाग एवं एक योजन के दो भाग जितनी लम्बी है । 1 ये वो सूत्र पाठ आ० स० की प्रति में नहीं है। २ (क) सव्वे विणं णिसढणीलवंता वासहरपब्वया चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाई उन्हेणं पण्णत्ता । - ठाणं ४, उ०२, सु० २६६ (ख) सवे विणं सिन्गीता वासहरयम्यया बतारिन्बतारि जोयणसता उ उम्बलेगं चत्तारि यसरि गाउपा उन्हे पण्णत्ता | - सम० १०६, सु० २
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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