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________________ २२८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : जम्बूद्वीप में पर्वत सूत्र ३३८ पूर्वी कोण से पूर्वी लवणसमुद्र स्पशित है । पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द पुढे । पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसम पश्चिमी कोण से पश्चिमी लवणसमुद्र स्पशित है। दो जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पण्णासं जोयणाई यह दो सौ योजन ऊँचा है, पचास योजन भूमि में गहरा है, उबहेणं',... चत्तारि जोयणसहस्साई दोणि अ चार हजार दो सौ दस योजन तथा दस योजन के उन्नीसवें भाग वसुत्तरे जोय गसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स जितना चौड़ा है। विखंभेणं । तस्स बाहा पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, णव जोयणसहस्साइं उसकी बाहु पूर्व तथा पश्चिम में नो हजार दो सौ छिहतर दोण्णि अ छावत्तरे जोयणसए णव य एगणविसइमाए योजन तथा नौ योजन के उन्नीसवें भाग एवं एक योजन के दो जोअणस्स अद्धभागं च आयामेणं । भाग जितनी लम्बी है। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण-पडीणायया । उसकी जीवा उत्तर में है, पूर्व तथा पश्चिम में लम्बी है। दुहा लवणसमुद्दपुट्ठा। दोनों ओर लवणसमुद्र से स्पर्शित है । पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दपुट्ठा।। पूर्वी कोण से पूर्वी लवणसमुद्र स्पर्शित है । पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुद्द पश्चिमी कोण से पश्चिमी लवणसमुद्र स्पशित है। पुट्ठा। तेवणं जोयणसहस्साई णव य एगतीसे जोयणसए छच्च ओपन हजार नो सौ इकतीस योजन तथा छ योजन के एगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचि विसेसाहिए उन्नीसवें भाग से कुछ अधिक लम्बी है। आयामेणं । तस्स धणु दाहिणेणं सत्तावण्णं जोयणसहस्साई दोणि उसका धनुपृष्ठ दक्षिण में है, उसकी परिधि सत्तावन हजार अ तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसहभागे जोयणस्स दो सौ तिरानवें योजन तथा दस योजन के उन्नीसवें भाग परिक्खेवेणं । जितनी है। रुअगसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे-जाव-पडिरूवे। वह रुचक (एक आभूषण विशेष) के आकार से स्थित है, सारा पर्वत रत्नमय है स्वच्छ है-यावत्-प्रतिरूप है। उभओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहिं, दोहि अ वण- वह दोनों ओर दो पद्मवरवैदिकाओं तथा दो वनखण्डों से संहिं संपरिक्खित्ते। घिरा हुआ है। महाहिमवंतस्स णं वासहरपब्वयस्स उप्पि बहुसमर- महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर अतिसम रमणीय भूभाग मणिज्जे भूमिभागे पण्णते, जाव-णाणाविह पंचवणेहिं कहा गया है-यावत्-नाना प्रकार की पाँच वर्ण की मणियों से मणोहि तिणेहि य उवसोभिए-जाव-आसयंति सयंति य। तृणों से सुशोभित है-यावत्-अनेक वाणव्यन्तर देव-देवियाँ -जंबु० वक्ख० ४, सु० ७६ -यावत्- वहां पर बैठते हैं; सोते हैं.... १ सम्वेविणं महाहिमवंत-रुप्पीवासहर पन्वया दो-दो जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता, दो-दो गाउयसयाई उव्वेहेणं पण्णत्ता। -सम० १०२, सु०२ २ महाहिमवंत-स्पीणं वासहर पव्वयाणं जीवाओ तेवण्ण तेवण्णं जोयणसहस्साई नव य एक्कतीसे जोयणसए छच्च एकणविसइ भाए जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ। -सम० ५३, सु०२ ३ महाहिमवन्त-रुप्पीणं वासहरपब्वयाणं जीवाणं धणु पट्टा सत्तावष्णं सत्तावणं जोयणसहस्साई दोण्णि अ तेणउए जोयणसए दस य एकूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ता। -सम० ५७, सु०५
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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