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सूत्र ३३६-३३८
तिर्यक् लोक : जम्बूद्वीप में पर्वत
गणितानुयोग
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उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइआहि दोहि य वण- यह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं से तथा दो वनखण्डों से संडेहि संपरिक्खित्ते । दुण्हवि पमाण' वण्णगो ति। घिरा हुआ है, यहाँ दोनों पद्मवरवेदिकाओं तथा दोनों वनखण्डों
का प्रमाण और वर्गन कहना चाहिए। चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उरि बहुसमरम- क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर अतिसम रमणीय भूभाग णिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । से जहाणामए आलिंगपुक्ख- कहा गया है, वह भूभाग चर्म से मंढे हुए मृदंग के तल जैसा सम रेइ वा-जाव-बहवे........वाणमंतरा देवा य देवीओ है-यावत्-वहाँ अनेक वाणव्यन्तर देव-देवियाँ बैठते हैं-यावत् य आसयंति-जाव-विहरति ।
-विचरते हैं.... -जंबु० वक्ख० ४, सु०७२ चुल्ल हिमवंत वासहरपव्वयस्स णामहेऊ
क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत के नाम का हेतु३३७. ५०-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-"चुल्लहिमवंते ३३७. प्र०-हे भगवन् ! क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत, क्षुद्र हिम
वासहरपव्वए, चुल्लहिमवंते वासहरपवए? वान् वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? उ.-गोयमा ! चुल्लहिमवंतेणं वासहरपब्वए महाहिमवंत- उ०-हे गौतम ! क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत महाहिमवान्
वासहर पव्वयं पणिहाय आयामुच्चत्तवेह-विक्खंभ- वर्षधर पर्वत की अपेक्षा लम्बाई-ऊँचाई, भूमि में गहराई चौड़ाई परिवखेवं पडुच्च ईसि खुड्डतराए चेव, हस्सतराए और परिधि में कुछ कम है, लघु है, नीचा है। चेव, णीअतराए चेव। चल्लहिमवते अ इत्थ देवे महिड्ढीए-जाव-पलिओव- क्षुद्र हिमवान् नाम का पल्योपम की स्थिति वाला महद्धिक मट्टिइए....परिवसइ।
देव-यावत्-वहाँ रहता है । से एएण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ-"चुल्लहिमवते हे गौतम ! इस कारण से क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत क्षुद्र वासहरपब्वए, चुल्लहिमवंते वासहरपध्वए । हिमवान् वर्षधर पर्वत कहा जाता है। अदत्तरं च णं गोयमा ! चुल्लहिमवंतस्स सासए णाम- अथवा हे गौतम ! क्षुद्र हिमवान् यह नाम शास्वत कहा धज्जे पण्णत्ते । ज न कयाइ, णासि-जाव-णिच्चे। गया है, जो कभी नहीं था-ऐसा नहीं है-यावत् -नित्य है....
-जंबु० वक्ख० ४, सु० ७५ (२) महाहिमवंत वासहरपब्वयस्स अवट्टिई पमाणं च- (२) महाहिमवान वर्षधर पर्वत की अवस्थिति और
प्रमाणकहिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवते णामं वास- ३३८. प्र०—हे भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप में महाहिमवान् नाम का हरपब्वए पण्णते?
वर्षधर पर्वत कहाँ कहा गया है ? .. उ०-गोयमा ! हरिवासस्स दाहिणणं, हेमवयस्म वासस्स उ०- हे गौतम ! हरिवर्ष से दक्षिण में, हैमवत क्षेत्र से उत्तर
उत्तरेणं, पुरथिम-लवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्च- में, पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र से पूर्व में स्थिम-लवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ ....जंबुद्दीवे जम्बूद्वीप द्वीप में महाहिमवान् नाम का वर्षधर पर्वत कहा दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते। गया है। पाईण-पडिणायए, उदीण-दाहिणवित्थिण्णे। पलिअंक- यह पूर्व तथा पश्चिम में लम्बा है, उत्तर तथा दक्षिण में संठाणसंठिए
विस्तृत है, पल्यंक के आकार से स्थित है। दुहा लवणसमुद्दे पुढे ।
दोनों ओर लवणसमुद्र से स्पशित है।
१ जम्बट्टीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं दो वासहरपब्वया बहुसमतुल्ला-जाव-परिणाहेणं, तं जहा-(२) चल्लहिमवते चेव, (२) मिहरी चेव ।
एवं (१) महाहिमवंते चेत्र, (२) रुप्पि चैव। . एवं (१) निसढे चेव, (२) नीलवंते चैव ।
-ठाणं २, उ०३, सु० ८७