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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक्लोक : जम्बूद्वीप में पर्वत
सूत्र ३३६
(१) चुल्लहिमवंत वासहरपव्वयस्स अवट्ठिई पमाणं च- (१) क्ष द्रहिमवान् वर्षधरपर्वत की अवस्थिति और प्रमाण
३३६. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते णामं ३३६. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में क्षुद्रहिमवान् नाम का वासहरपब्वए' पण्णत्ते ?
वर्षधरपर्वत कहाँ कहा गया है ?
उ०-गोयमा ! हेमवयस्स वासस्स दाहिणेणं, भरहस्स उ०-हे गौतम ! हैमवत क्षेत्र के दक्षिण में, भरत क्षेत्र के
वासस्स उत्तरेणं, पुरथिम-लवणससुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पच्चत्थिम-लवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं । एत्थ णं जंबुद्दीवे पूर्व में जम्बूद्वीप द्वीप में क्षुद्रहिमवान् नाम का वर्षधर पर्वत कहा दीवे चुल्लहिमवंते णाम वासहरपव्वए पण्णत्ते । गया है। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिण्णे ।
यह पूर्व-पश्चिम में लम्बा है, उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है। दुहा लवणसमुद्दे पुढे
दोनों ओर से लवणसमुद्र से स्पृष्ट है । पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दपुढे । पूर्वी कोण से पूर्वी लवणसमुद्र स्पृष्ट है । पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुद्द पश्चिमी कोण से पश्चिमी लवणसमुद्र स्पृष्ट है ।
एग जोयणसयं उद्धं उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयणाई यह एक सौ योजन ऊँचा है, पच्चीस योजन भूमि में गहरा उब्वेहेणं । एग जोयणसहस्सं बावण्णं च जोयणाई दुवालस य एक हजार बावन योजन और बारह योजन के उन्नीसवें भाग एगणवीसइभागे जोअणस्स विक्खंभेणं ति। जितना चौड़ा है। तस्स बाहा पुरथिम-पच्चत्थिमेणं पंच जोयणसहस्साइं उसको बाहु पूर्व तथा पश्चिम में पाँच हजार तीन सौ पचास तिण्णि अ पग्णासे जोयणसए पण्णरस य एगूणवीसइ योजन और पन्द्रह योजन के उन्नीसमें भाग एवं एक योजन के दो भाए जोयस्स अद्धभागं च आयामेणं ।
भाग जितनी लम्बी है। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण-पडिणायया-जाव-पच्चत्थि- उसकी जीवा उत्तर में है-पूर्व तथा पश्चिम में लम्बी है मिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्ल लवणसमुद्दे पुट्ठा। -यावत्-पश्चिमी कोण से पश्चिमी लवणसमुद्र से पशित है, चउव्वीस जोयणसहस्साई णव य बत्तीसे जोयणसए चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन तथा एक योजन के दो भाग अद्धभागं च किंचि विसेसूणा आयामेणं पण्णत्ता' से कुछ कम लम्बी कही गई है। तोसे धणुप? दाहिणणं पणवीसं जोयणसहस्साई दोष्णि उसका धनुपृष्ठ दक्षिण में है, उसकी परिधि पच्चीस हजार अ तीसे जोयणसए चत्तारि अ एगूणवीसइभाए जोय. दो सौ तीस योजन तथा चार योजन के उन्नीसवें भाग जितनी णस्स परिक्खे वेणं पणत्ते।
कही गई है। रुअगसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे साहे-जाव. यह रुचक (एक आभूषण विशेष) के आकार से स्थित है, पडिलवे।
सारा पर्वत स्वर्ण मय है, स्वच्छ है लक्ष्ण=चिकना है-यावत्प्रतिरूप है।
१ वर्षे-उभयपालस्थिते द्वे क्षेत्र धरतीति वर्षधरः क्षेत्रद्वयसीमाकारी गिरित्यर्थः ।
-जम्बू• वृत्ति २ सब्वे वि णं चुल्ल हिमवंत-सिहरि वासहर पब्वया एगमेगं जोयणसयं उड्ढे उच्चत्तेणं, एगमेयं गाउसयं उब्बेहेणं पण्णत्ता।
–सम० १०० सु०६ ३ चुल्लहिमवंत-सिहरीणं वासहरपब्बयाणं जीवाओ चउब्बीसं चउब्बीसं जोयणसहस्साई गवय बत्तीसे जोयणसए अट्टतीसइभार्ग जोयणस्स किंचि विसेसाहिआओ आयामेणं पण्णता ।
-सम० २४, सु०२