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सूत्र ३३३-३३५
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३ एगे।
४ एगे विचित्तकूडे ।
५ दो जमगपब्वया ।
६ दो कंचणगपव्वयसया ।
७ वीसं वक्खारपव्वया ।
तियं लोक जम्बूद्वीप में पर्वत
पोलीस दोहा।
चारि बट्टवेयड्ढा पण्णत्ता ।
एवामेव सपुयावरे जंबुद्दीचे बीचे पुष्णि अतरा पव्वयसया भवतीतिमवखायंति ।
- जम्बु ० वक्ख० १, सु० १२५
८
उ०- गोयमा ! जंबुद्दीवे छ वासहरपव्वया पण्णत्ता । तं जहा
१
ते २ महाहिमवंते ३ सिढे ४ नील६ सिहरी" ।
- जंबु० वक्ख० ६, सु० १२५
३३५. जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासहरपब्वया पण्णत्ता, तं जहाते २ महाहिमवते ३ पिस ४ गोलवंते ५६ सिहरी ७ मंदरें । - ठाणं ७, सु० ५५५
१
,
छवासहरपव्यया
वर्षधर पर्वत छ हैं
कहै
३३४. १० - जंबुद्दीये गं भते । दोवे केवइया वासहरपया ३३४. प्र० हे भगवन्! जम्बूद्वीप में वर्षश्वर पर्यंत किसने की पण्णत्ता ?
गये हैं ?
उ०- हे गौतम! जम्बूद्वीप में छ वर्षधर पर्वत कहे गये हैं,
-
"हो यमकपर्वती तयोरनी।"
(३) एक चित्रकूट ।
(४) एक विचित्रकूट ।
(५) दो यमक पर्वत ।
(६) दो सौ कांचनक पर्वत ।
(७) बीस वक्षस्कार पर्वत ।
(८) पोतीस दीर्घताय ।
(e) चार वृत्त वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं ।
तं
गणितानुयोग
इस प्रकार जम्बूद्वीप में पूर्व-पश्चिम के सब मिलाकर दो सौ उनहत्तर (२६६) पर्वत होते हैं— ऐसा कहा है ।
यथा
एकाच विचित्रकूटः एतौ च यमजासकाविव द्वौगिरी देवकुरुवतिमी।"
(१)
(२) महाहिमवंते (३) सिहे ।
जम्बुमंदरस्स उत्तरेण तओ वासहरपव्वया पण्णत्ता; तं जहा
(१) गीत (२) रुपी (३) सिहरी
1
१ एक
२
३ "द्वकाञ्चनकपर्वतशते देवकुरूत्तरवतिहृददशकोभयकूलयोः प्रत्येकं दशदश काञ्चनकसद्भावात् "
"देवकुरु में ५ द्रह हैं और उत्तरकुरु में ५ द्रह हैं इन दस द्रहों में के प्रत्येक द्रह से पूर्व में दस योजन जाने के बाद दस-दस काञ्चनक पर्वत हैं इसी प्रकार पश्चिम में भी दस योजन जाने के बाद दस-दस काञ्चनक पर्वत हैं- ये सब दो सौ काञ्चनक पर्वत जम्बूद्वीप में हैं ।
" तथा विशतिर्वक्षस्कार पर्वताः, तत्र गजदन्ताकारा गन्धमादनादयश्चत्वारः, तथा चतुःप्रकारमहाविदेहे प्रत्येकं चतुष्क चतुष्कसद्भावात् षोडश चित्रकूटादयः सरलाः, द्वयेऽपि मिलिता यथोक्त सङख्याकाः ।"
२२५
(१) क्षुद्रहिमवान् (२) महाहिमवान् (३) निषध, (४) नीलवंत (2) रुममी (६) शिखरी
बीस वक्षस्कार पर्वत महाविदेह में हैं।
आठ पूर्व महाविदेह में आठ पश्चिममहाविदेह में और चार गजदन्ताकार पर्यंत, ये बीस वक्षस्कार पर्वत है। "चतुस्त्रिहीतायाः द्वात्रिंशद्विजपेषु भरत रायतयोश्च प्रत्येकमेकं कमाया।"
६ चत्वारो वृत्तवैताद्या: हैमवतादिषु चतुर्षु वर्षेषु एकैकभावात् । "
- जंबू० वृत्ति०
७ जम्बुमंदररस दाहिने तभी बाहरव्या
जा
३३५. जम्बूद्वीप द्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं, यथा(१) क्षुद्र हिमवान् (२) महाहिमवान्, (३) निषध, (४) नीलवंत (५) रुक्मी, (६) शिखरी, (७) मंदर ।
- ठाणं ३, उ० ४, सु० १६६
सत्त वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा
(१) चुल्ल हिमवंत, (२) महाहिमवंते, (३) निसढे, (४) नीलवंते, (५) रुप्पी, (६) सिहरी, (७) मंदरे ।
- सम० ७, सु० ४