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२२४ लोक-प्रज्ञप्ति
एगूणवीस भाए जोयणस्स आयामेणं । सीआए महाईए अंतणं दो जोयणसहस्साइं नव य बावीसे जोयणसए विक्खंभेणं । तयणंतरं च णं मायाए मायाए परिहायमाणे परिहायमाणे शीलवंतवासहरपव्ययते एवं एगूणवीसइभागं जोअणस्स विक्खंभेणंति । सेणं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं संपरिवित्तं । वण्णओ सीआमुहवणस्स जाव-देवा आसयंति । एवं उत्तरिल्लं.... पासं समत्तं ।
- जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५
जंबुद्दीये सव्यपव्ययसंता
३३३. ५० - १ - जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया वासहरा पव्वया पण्णत्ता ?
२ - केवइया मंदरा पव्वया पण्णत्ता ?
३- केवइया चित्तकूडा ?
४ - केवइया विचित्तकूडा ?
५ - केवइया जमगपव्वया ?
तिर्यक् लोक: जम्बूद्वीप में पर्वत
६ - केवइया कंचणगपव्वया ?
७ - केवइया वक्खारा ?
सेवा दीया ?
E - केवइया वट्टवेयड्ढा पण्णत्ता ?
उ०- १ - गोयमा ! जंबुद्दीवेदीवे छवासहर पब्वया पण्णत्ता' ।
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के उन्नीसवें भाग जितना लम्बा है, तथा शीता महानदी के समीष दो हजार नो सौ बावीस [ २६२२] योजन जितना चौड़ा है, तदनन्तर क्रमशः कम होता होता नीलवन्तवर्षधर पर्वत के समीप एक योजन के उन्नीसवें भाग जितना चौड़ा रह गया
रुपी सिहरी एए, वासहरगिरि मुणेयव्त्रा ||
वह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड से घिरा हुआ है, यहाँ वनखण्ड का वर्णन कहना चाहिए, वन का यावत्देवताओं के बैठने तक का वर्णन यहाँ कह लेना चाहिए, इस प्रकार उत्तर का विभाग समाप्त हुआ ।
जम्बूद्वीप में सभी पर्वत की संख्या
२ एक मंदर पर्वत (मेरु पर्वत) महाविदेह क्षेत्र में है ।
३३३. प्र० -- (१) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में द्वीप में वर्षधर पर्वत कितने कहे गये हैं ?
(२) मंदर पर्वत कितने कहे गये हैं ? (३) चित्रकूट कितने कहे गये हैं ? (४) कितने कहे गये हैं ?
सूत्र ३३२-३३३
(५) यमक पर्वत कितने कहे गये हैं ?
(६) काञ्चनक पर्वत कितने कहे गये हैं ?
(७) वक्षस्कार पर्वत किसने कहे गये हैं ?
(८) दीर्घ साप पर्वत किसने कहे गये हैं?
(१) वृत तातिने कहे गये हैं ?
२ - एगे मंदरे पव्वए ।
१ जम्बूदीपप्रज्ञप्ति के इस सूत्र में वर्षधर पर्वत छह कहे गये हैं किन्तु स्थानांग ७ सूत्र ५५५ में तथा समवायांग ७ सूत्र ४ में वर्षधर पर्वत सात कहे गये हैं, इन दो विभिन्न मान्यताओं का सापेक्ष स्पष्टीकरण आवश्यक है ।
उ०- (१) हे गौतम | जम्बूद्वीप में छ वर्षधर पर्वत कहे गये हैं।
(२) एक मंदर पर्वत ।
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के संकलनकर्ता ने मन्दरपर्वत को वर्षधर पर्वत क्यों नहीं माना ? और स्थानांग- समवायांग के संकलनकर्ता ने मन्दर पर्वत को वर्षधर पर्वत क्यों माना ? ये प्रश्न उपेक्षणीय
नहीं है ।
तीनों आगमों के व्याख्याकार ऊपर लिखे प्रश्नों के सम्बन्ध में सर्वथा मौन हैं, तुलनात्मक अध्ययन के लिए स्थानांग समवायांग के सूत्र क्रमशः यहाँ दिये गये हैं ।
(क) जम्बुये दीये सत्त वासरा पता जहा (१) चुहियते (२) महाहिमवते (३) निसडे (४) नीलवंते, - स्थानांग ७, सु० ५५५
तं
,
(५) रुपी (६) सिहरी (७) मंदरे ।
,
(ख) इहेब जम्बुद्वीवे दीने मत्त बाहरा पत्ता जहा (१) (२) महामते, (३) निसडे (४) नीलवंत,
- सम० ७, सु० ४
(५), (६) सिहरी, (७) मंदरे (ग) पद वर्षधराल दादहिमवदादयः
छह वर्षधर पर्वतों के नाम
गाहाहिमवंत महामितया निस-नीता
- बृह०
० क्षेत्र० भाग १ गाथा २४