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लोक- प्रज्ञप्ति
गाई आयाम विश्वमेण उबर चत्तारि जोयणाई आयाम लम्बा-चौड़ा है, ऊपर चार योजन लम्बा-चौड़ा है। विक्खंभेणं ।
गाहा पणवीसारस वारसेव, मुले अ माँ उरि
सविसेसाई परिरओ कूडस्स इमस्स बोद्धव्यो ॥
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तिर्यक् लोक : जम्बू सुदर्शनवृक्ष
मूले वित्थिणे, मज्झे संखित्ते, उवर तणुए, सव्वकणगामए अच्छे-जाव- पडिवे बेइया वणवणओ एवं सेसा वि 'कूडा इति । " - जंबु वक्ख० ४, सु० ६०
सूत्र ३२६.
गाथार्थ - इस कूट की मूल में कुछ अधिक पच्चीस योजन की परिधि है, मध्य में अट्ठारह योजन की परिधि है और ऊपर बारह योजन की परिधि जाननी चाहिए।
१ (१) जम्बू णं सुदंसणाए पुरथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तर-पुरत्थिमेणं पासायवडेंसगस्स दाहिणं एत्थ एगे महं कूडे पण्णत्ते ।
(४) जम्बू
यह कूट मूल में विस्तृत है, मध्य में संक्षिप्त हैं, ऊपर पतला है, सम्पूर्ण स्वर्णमय है, स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है, यहां वेदिका और वनखण्ड का वर्णक है, इसी प्रकार शेष कूट है।
भट्टजोगाई उद्ध उच्चतणं मूले वारसजोयणाई आयाम विक्वं भेणं, मज्झे अजोपणाई आयाम-विन उवरि चत्तारि जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं ।
मूले सातिरेगा सत्तत्ती जोगाई परिक्लेवेगं मझे सातिरेगाई पणवीस जोगाई परिमलेवेण उवरि सातिरेगा वारस जोयणाई परिक्खवेणं ।
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मझे संखिते, उपि तणुए गोपुच्छ ठाणसंठिए स जम्पूणयामए अच्छे - जाव – परुिवे । से एमए पढमरयाए एमेणं वग सम्बओ समता संपरिविते दोओ। तस्स गं कूडस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमि भागे पण्णत्ते - जाव - आसयंति ।
तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमि भागगस्स बहुमज्झदेसभाए एवं सिद्धायतणं कोसप्पमाणं सव्वा सिद्धायतणवत्तन्वया ।
(२) जम्बू सुदंसणाए पुरथिमिल्सस्स भवणस्स दाहिनेणं दाहिणपुर स्विमित्रस पासावडेंसगस्स उस
णं
एगे महं
कूडे पण्णत्ते, तं चैव पमाणं सिद्धायतणं च ।
"
(३) जम्बुए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स पुरत्यिमेणं, दाहिणपुरत्थि मिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चतिथमेणं एत्थ णं एगे
महं कूडे पण्णत्तं तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ।
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सुदंसणाए दाहिणित्वस् भवणस्स पच्चत्यिमेणं दाहिणभ्यभ्यरिथमिस्स पासायवडेंसगस्स पुरत्यिमेणं- एस्य णं एगे. महं कूडे पण्णत्ते, ते चेव पमाणं सिद्धायतणं च ।
(५) जम्बुए गए पन्चत्थिमिल्नस्स भवगरस दाहिणं वागिपच्चत्विमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरे एरवणंएगे महं
णं
पण माणं सिद्धापणं च ।
(६) जम्बु णं सुदंसणाए पच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तरपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दाहिणेण एत्थ णं एगे महं
कूडे पण्णत्ते, तं चैव पमाणं सिद्धायतणं च ।
(७) जम्बूए णं सुदंसणाए उत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते, तं चैव पमाणं सिद्धायतणं च ।
(८) जम्बू णं सुदंसणाए उत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं उत्तरपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते, तं चैव पमाणं तहेव सिद्धायतणं ।
गाहा— सोत्थिय - सिरिवच्छ.....
जम्बू णं सुदंसणा अण्णेहि बहूहिं तिलएहि लउएहि - जाव - एयरुक्खेहि हिंगुरुक्खे हि - जाव - सन्वओ समता संपरिक्खित्ता । जम्बूर णं सुदंसणाए उवरि बहवे अट्टमंगलगा पण्णत्ता, तंजहा किण्हा चामरज्झया जाव-छत्तात्तिछत्ता । -जीवा प०३, ०२, सु १५२ आ० स० से प्रकाशित जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के वक्ष० ४, सूत्र ६० में जम्बू-सुदर्शन वृक्ष से पूर्वी भवन के उत्तर में एवं उत्तर-पूर्वी प्रासादावतंसक के दक्षिण में स्थितकूट के मूल की परिधि पच्चीस योजन की कही है और मध्यभाग की परिधि अठारह योजन कही है, किन्तु जीवा० प्र० ३ उ०२ सुत्र १५२ में उक्त कूट के मूल की परिधि सेंतीस योजन से कुछ अधिक की कही है और मध्यभाग की परिधि पच्चीस योजन की कही है इस प्रकार दोनों उपांगों में कूट के मूल एवं मध्य भाग की परिधि के प्रमाण में अन्तर है ।