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________________ सूत्र ३२८-३२६ तिर्यक् लोक : जम्बू सुदर्शनवृक्ष गणितानुयोग २२१ जंबू-सुदंसणस्स चउसु विदिसासु चत्तारि चत्तारि णंदा जम्बू-सुदर्शन वृक्ष के चारों विदिशाओं में चार-चार नंदा पुक्खरिणीओ पुष्करिणियाँ ३२८. जंबूए णं सुदंसणाए उत्तर-पुरस्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं ३२८. जम्बू सुदर्शन वृक्ष से उत्तर-पूर्व में (ईशानकोण में) प्रथम जोयणाई ओगाहित्ता-एत्थ णं चत्तारि पुक्खरिणीओ पण्ण- वनखंड में पचास योजन जाने पर चार पुष्करिणियाँ कही गई हैं, ताओ, तं जहा-(१) पउमा, (२) पउमप्पभा, (३) कुमुदा, यथा-(१) पद्मा, (२) पद्मप्रभा, (३) कुमुदा, (४) कुमुद (४) कुमुदप्पभा। प्रभा। ताओ णं कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्ख भेणं पंचधणु- वे एक कोश की लम्बी हैं आधेकोश चौड़ी हैं, पांच सौ सयाई उब्बेहेणं,' वण्णओ। धनुष गहरी हैं, यहाँ इनका वर्णन कहना चाहिए। तासि णं मज्झे पासायवडेंसगा पण्णत्ता । इनके मध्यभाग में प्रासादावतंसक कहे गये हैं। कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूर्ण कोस उद्धं वे (प्रासादा०) एक कोश के लम्बे हैं, आधे कोश के चौड़े हैं, उच्चत्तेणं, वण्णओ, सीहासणा० सपरिवारा० एव सेसासु कुछ कम एक कोश के ऊँचे हैं, यहाँ इनका वर्णक है, सिंहासन के विदिसासु । चारों ओर उसके जैसे अन्य सिंहासन भी अनेक है, इसी प्रकार शेष विदिशाओं में भी प्रासादावतंसक है । गाहाओ गाथार्थ१ पउमा २ पउमप्पभा चेव, ३ कुमुदा ४ कुमुदप्पहा। (१) पद्मा, (२) पद्मप्रभा, (३) कुमुदा, (४) कुमुदप्रभा। १ उप्पलगुम्मा २ णलिणा, ३ उप्पला, ४ उप्पलुज्जला॥ (१) उत्पलगुल्मा, (२) नलिना, (३) उत्पला, (४) उत्सलु ज्ज्वला। १भिगा २ भिगप्पणा चेव, ३ अंजणा ४ कज्जलप्पभा। (१) भृगा, (२) भृगप्रभा, (३) अंजना, (४) कज्जलप्रभा । १सिरिता २ सिरिमहिआ, ३ सिरिचंदा चेव सिरिनिलया ॥२ (१) श्रीकता, (२) श्रीमहिता, (३) श्रीचन्दा, (४) -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६० श्रीनिलया। जंबू-सुदंसणस्स चउण्हं दिसा-विदिसाणं मज्झभागे जम्बू-सुदर्शन वृक्ष के चार दिशा-विदिशाओं के मध्यभाग अट्ठ कूडा में आठ कूट३२६. जंबूए णं सुदंसणाए पुरिथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं ३२६. जम्बू-सुदर्शन वृक्ष से पूर्वी भवन के उत्तर में और उत्तर उत्तर-पुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं-एत्थ णं पूर्वी प्रासादावतंसक के दक्षिण में एक महान् कूट कहा गया है। एगे महं कूडे पण्णत्ते । अटू जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, दो जोयणाई उव्वेहेणं, मूले वह आठ योजन ऊपर की ओर ऊँचा है, दो योजन भूमि में अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, बहुमज्झदेसभाए छ जोय- गहरा है, मूल में आठ योजन लम्बा-चौड़ा है, मध्य में छः योजन १....अच्छाओ सण्हाओ लण्हाओ घटाओ मट्ठाओ णिप्पंकाओ....गीरयाओ-जाव-पडिरूवाओ, वण्णओ भाणियचो-जाव तोरणत्ति, -जीवा०प० ३, उ०२. सु० १५२ में इतना पाठ अधिक है। २ एवं दक्खिण-पुरथिमेणवि पण्णास जोयणाई ओगाहित्ता चतारि गंदापुक्खरिणीओ पण्णताओ, तं जहा-(१) उप्पलगुम्मा, (२) नलिना, (३) उत्पला, (४) उप्पलुज्जला, तं चैव पमाणं, तहेव पासायवडेंसगो, तप्पमाणो । एवं दक्षिण-पच्चत्यिमेण वि पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता चत्तारि गंदापुक्खरिणीओ पण्णताओ, तं जहा-(१) भिगा, (२) भिगणिभा, (३) अंजणा, (४) कज्जलप्पभा, तं चैव पमाणं, तहेव पासायव.सगो तप्पमाणो। जम्बूए णं सुदंसणाए उत्तर-पच्चत्थिमे पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहिता-एत्य णं चतारि गंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ तं जहा-(१) सिरिकता, (२) सिरिमहिया, (३) सिरिचंदा चेव तहय, (४) सिरिणिलया, तं चैव पमाणं तहेव पासायवडेंसगो -तप्पमाणो। -जीवा०प०३, उ०२, सु० १५२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति का पाठ अति संक्षिप्त है और यह पाठ विस्तृत है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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