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________________ २२० लोक-प्रति जंबू - सुदंसणाए दुवालस णामाई जम्बू-सुदर्शनवृक्ष के बारह नाम ३२४. जंणं सुसाए बालस गामवेशा पत्ता तं जहा ३२५. जम्मू-सुदर्शन वृक्ष के बारह नाम कहे गये है, यथा गाहाओ गाथार्थ - १ सुदंसणा २ अमोहा य ३ सुप्पबुद्धा ४ जसोहरा । ५ विदेहजंबू ६ सोमणसा ७ नियआ ८ णिच्च मंडिया ॥ ६ सुभद्दा य १० विसाला य ११ सुजाया १२ सुमणाविआ । सुदंसणाए जंबूए. गामा दुवाल | - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६० तिर्यक् लोक जम्बू सुदर्शन वृक्ष ३२६. जंबूए णं अट्ठट्ठमंगलगा'... (१) सुदर्शन, (२) अमोघ (३) सुप्रबुद्ध, (४) यशोधर, ( ५ ) विदेहजम्बू, (६) सौ मनस, (७) नियत (5) नित्य मंडित, ( ६ ) सुभद्र, (१०) विशाल, (११) सुजात, (१२) सुमन । सुदर्शन जम्बू के ये बारह नाम हैं । ३२६. जम्बू - सुदर्शन वृक्ष पर आठ-आठ मंगल हैं । जंबू सुदंसगाए णामहेऊ जम्बु- सुदर्शन वृक्ष के नाम का हेतु ! ३२७.५० से एवं "जं सुदंसणा जंबू- २२० प्र० ] भगवन् जम्बू-सुदर्शन यह (नाम) क्यों कहा सुराणा ? जाता है ? उ०- गोयमा ! जंबूए णं सुदंसणाए अणाढिए णामं जंबुद्दीवाहिवई परिवस महिदीए। से णं तत्थ चन्हं सामाणिअसाहस्सोगं जाव- आयरक्खदेवसाहस्सी - जंबुद्दीवर दीवस्त जंतूए सुदंसणाए अगाडियाए राहाणीए अस च बहूणं देवाणं य देवीण य-जावबिरह । से तेण णं गोयमा ! एवं बुच्चइ - " जंबू- सुदंसणा, जंबू- सुदंसणा ।” अदुत्तरं च णं गोयमा ! जंबू- सुदंसणा जाव भुवि च भवइ य भविस्य धुवा णिअआ सासया अवखया अब्वया अवट्टिआ जिच्चा । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६० १ जीवा० प० ३ उ०२, सु० १५२ । " सूत्र ३२५-३२७ - उ०- हे गौतम! जम्बू-सुदर्शन वृक्ष पर जम्बूद्वीप का अधिपति अनाधृत नाम का महद्धिक देव रहता है । वह चार हजार सामानिक देवों का यावत् - ( सोलह हजार) आत्मरक्षक देवों का - जम्बूद्वीप नामक द्वीप के जम्बू सुदर्शनवृक्ष का, अनाधृता राजधानी का और अनेक देव-देवियों का यावत् - आधिपत्य करता हुआ रहता है । इसलिए हे गौतम! यह जम्बू-सुदर्शन वृक्ष जंबू-सुदर्शन वृक्ष कहा जाता है। अथवा हे गौतम! यह जम्बु- सुदर्शन वृक्ष-वाबत्तीत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा, यह ध्रुव है, नित्य है, शास्त्रत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है एवं नित्य है । २ (क) १० सेकेणट्ठे में भते ! एवं बुम्बद "जम्बू सुदंसणा ? उ०- गोदमा ! जम्बू में सुदंसणाए जम्बूदीवाहिवई अगाडिए नामं देवे महिडीए जाब- पनिओनमदिईए परिव से पंतस्थ च सामाणिमसाहस्सोर्ण जाब आयख देवसाहस्सीणं । जम्बुद्दीवस्स णं दीवस्स जम्बूए सुदंसणाए अणाढियाए य रायहाणीए - जाव - विहरति । अदुत्तरं च णं गोयमा ! जम्बुद्दीवे दीवे तत्थ तत्थ देसे तहि तहि बहवे जम्बुरुक्खा जम्बूवणा जम्बूवणसंडा णिच्चं कुसुमिया - जाब सिरीए अतीव उपसो माग उपसोभैमाणा चिति । सेट्ठेनं गोयमा ! एवं वच्चइ - "जम्बू-सुदंसणा, जम्बू-सुदंसणा " । अदुत्तरं च गं गोवमा ! जम्बुद्दीवस्स सास पाम पण जन्म यानि गासि जाय-गिये। - (ख) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में निगमन सूत्र एक है और जीवाभिगम में दो हैं । - जीवा० प० ३, उ० २, सु० १५२
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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