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सूत्र ३२४
तिर्यक् लोक : जम्बू सुदर्शनवृक्ष
गणितानुयोग
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मणिपेढिया पंचधणुसयाई आयाम-विक्खंभेणं, अद्धाइज्जाई मणिपीठिका पाँच सौ धनुष की लम्बी-चौड़ी है ढाई सौ धणुसयाई बाहल्लेणं।
धनुष की मोटी है। तीसे णं मणिपेढियाए उपि देवच्छंदए पंचधणुसयाई उस मणिपीठिका के ऊपर देवछंदक पांच सौ धनुष लम्बाआयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाई पंचधणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं। चौड़ा है, कुछ अधिक पाँच सौ धनुष ऊपर की ओर ऊँचा है, जिण-पडिमा वण्णओ जयव्वो त्ति ।
यहाँ जिन प्रतिमाओं का वर्णन जानना चाहिए। जंबू णं सुदंसणा मूले बारसहिं पउमवरवेइयाहिं सव्वओ.... जम्बू-सुदर्शन वृक्ष का मूल बारह पद्मवरवेदिकाओं से चारों समंता सपरिक्खित्ता । वेइयाणं वण्णओ।
ओर से घिरा हुआ है, यहाँ वेदिकाओं का वर्णन कहना चाहिए । जंबू णं सुदंसणा अण्णेणं अट्ठसएणं जंबूणं तयचच्चत्तप्प- जम्बू-सुदर्शन वृक्ष अन्य एक सौ आठ जम्बू वृक्षों से चारों माणमेतेणं सव्वओ समंता संपरिविखत्ता। तासि णं वण्णओ। ओर से घिरा हुआ है, वे उससे प्रमाण में आधे ऊंचे हैं, यहाँ
उनका वर्णन करना चाहिए। ताओ णं जंबू छहि पउमवरवेइयाहिं संपरिक्खित्ता'। वे जम्बूवृक्ष छह पद्मवरवेदिकाओं से घिरे हुए हैं।
जंबूए णं सुदंसणाए उत्तरपुरस्थिमेणं उत्तरेणं उत्तरपच्च- जम्बू-सुदर्शन वृक्ष के उत्तर-पूर्व में (ईशानकोण में) उत्तर में त्थिमेणं, एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं सामाणिअ और उत्तर-पश्चिम में (वायव्यकोण में) अनाधृत देव के चार साहस्सीणं... चत्तारि जंबूसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। हजार सामानिक देवों के चार हजार जम्बूवृक्ष कहे गये हैं।
तीसे णं पुरथिमेणं चउण्हं अग्गमहिसोणं चत्तारि जंबूओ उसके पूर्व में चार अग्रमहिषियों के चार जम्बवृक्ष कहे पण्णत्ताओ।
गये हैं। गाहाओ-दक्खिणपुरस्थिमे दक्खिणेण, तह अवरदक्खिणेणं च । गाथार्थ-दक्षिण-पूर्व में (आग्नेयकोण में) आठ हजार अटू दस बारसेव य, भवंति जंबू सहस्साई॥ जम्बूवृक्ष हैं, दक्षिण में दस हजार जम्बू वृक्ष हैं और दक्षिण-पश्चिम
में (नैऋत्य कोण में) बारह हजार जम्बू वृक्ष है। अणिआहिवाणं पच्चत्थिमेण, सत्तेव होंति जंबूओ। जम्बू-सुदर्शनवृक्ष से पश्चिम में सात अनिकाधिपतियों सोलससाहस्सीओ, चउद्दिसि आयरक्खाणं॥ (सेनापतियों) के सात जम्बूवृक्ष हैं और उसके चारों दिशाओं में
सोलह हजार (प्रत्येक दिशा में चार हजार) जम्बूवृक्ष आत्मरक्षक
देवों के हैं । जंबूए णं सुदंसणा तिहिं जोयणसएहि वणसंडेहिं सवओ जम्बू-सुदर्शन वृक्ष सौ-सौ योजन के तीन बनखण्डों से चारों समंता संपरिविखत्ता।
ओर से घिरा हुआ है। जंबूए णं पुरथिमेणं पण्णासं जोयणाई पढमं वणसंडं जम्बू-सुदर्शन वृक्ष से पूर्व में प्रथम वनखण्ड में पचास योजन ओगाहित्ता एत्थ णं एगे महं भवणे पण्णत्ते । कोसं आयामेणं जाने पर एक महान् भवन कहा गया है, वह एक कोश का लम्बा सो चेव वण्णओ, सयणिज्जं च । ऐवं सेसास वि दिसासु है, भवन और शयनीय का वर्णन पूर्व के समान है, इस प्रकार भवणा।
-जंबु० बक्ख० ४, सु०६० शेष दिशाओं में भी भवन है।
१ . जीवाभिगम के सूत्र १५२ में यह पंक्ति नहीं है । इसके स्थान पर निम्नांकित पाठ है
ताओ णं जंबूओ चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तणं, कोसं चोव्वेधणं, जोयणं खंधो, कोसं विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए चत्तारि जोयणाई विक्खं भेणं, सातिरेगाइं चत्तारि जोयणाई सव्वग्गेणं, वइरामयामूला। सो चेव चेतिय
रुक्खवण्णओ। २ जीवा०प०३, उ० २, सु० १५२ में ये गाथायें नहीं है। ३ तं जहा पढमण' दोच्चेण तच्चेण ....जीवा०प० ३, उ० २, सु०१५२ में इतना पाठ अधिक है।