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________________ मूत्र ३२३.३२४ तिर्यक् लोक :जम्बू सुदर्शनवृक्ष गणितानुयोग २१७ पंच जोयणसयाई आयाम-विक्वं मेंणं, पण्णरस एक्का- वह पांचसो योजन का लम्बा-चौड़ा है, पन्द्रहसौ इक्यासी सोयाई जोयणसयाइं किंचि विसेसाहियाइं परिक्खेवेणं, योजन से कुछ अधिक की उसकी परिधि है, मध्य भाग में वह बहुमज्झदेसभाए बारस जोयणाई बाहल्लेणं तयाणंतरं बारह योजन का मोटा है। तदनन्तर थोड़े-थोड़े प्रदेश कम होतेच गं मायाए मायाएं पदेसपरिहाणीए सम्वेसु णं चरिम- होते सभी चरमान्तों में दो-दो गाउका मोटा कहा गया है। वह पेरंतेसु दो दो गाउयाइं बाहल्लेणं पण्णत्ते, सव्वजंबूणया- पूरा जम्बूनद स्वर्णमय है, स्वच्छ है-यावत्-प्रतिरूप है। मए अच्छे-जाव-पडिहवे। से गं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से समंता संपरिक्खित्ते, दुण्हं पि वण्णओ। घिरा हुआ है । दोनों के वर्गक भी यहाँ कहने चाहिए । तस्स णं जंबूपेढस्स चउद्दिसि एए चत्तारि तिसोवाण- उस जम्बूपीठ के चारों दिशाओं में चार जगह तीन-तीन पडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ-जाव-तोरणाई। सुन्दर पगथिए कहे गये हैं इनका वर्णक-यावत्-तोरण पर्यन्त है। तस्स णं जंबूपेढस्स बहुमज्झदेसभाए-एत्थ एगा उस जम्बूपीठ के मध्यभाग में एक मोटी मणिपीठिका कही महं मणिपेढिया पण्णत्ता, अट्ट जोयणाई आयाम-विक्खं- गई है। वह आठ योजन की लम्बी-चौड़ी है। चार योजन की भेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं मणिमई अच्छा-जाव- मोटी है । मणिमय है, स्वच्छ है-यावत् -प्रतिरूप है। पडिरूवा। -जंबु० बक्ख० ४, सु० ६० जंबूसुदंसणाए अवट्ठिई पमाणं च जम्बूद्वीप के सुदर्शन वृक्ष की अवस्थिति और प्रमाण१२४. तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं महं जंबू सुदंसणा ३२४. उस मणिपीठिका के ऊपर जम्बूद्वीप का (एक) महान पण्णता, अद्वजोयणाई उड्ढे उच्चत्तणं, अद्धजोयणं उब्वेहेणं । सुदर्शन वृक्ष कहा गया है, वह आठ योजन ऊपर की ओर ऊँचा है और आधा योजन भूमि में गहरा है। तीसे णं खंधो दो जोयणाई उद्धं उच्चतेणं, अद्धजोयणं उसका स्कंध दो योजन ऊँचा है और आधा योजन मोटा है। बाहल्लेणं । तीसे णं साला छ जोयणाई उडढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेस- उसकी शाखा छह योजन ऊंची है, मध्यभाग में आठ योजन भाए अजोयणाइ आयाम-विक्खभेणं, साइरेगाइं अट्ठजोयणाई लम्बी-चौड़ी है, कुछ अधिक आठ योजन उसका पूर्ण प्रमाण है। सम्बग्गेणं पण्णत्ता। तीसे गं अयमेयारवे वण्णावासे पण्णते, वइरामयामूला, उसका इस प्रकार वर्णन कहा गया है-वज्रमय इसके मूल त्ययसपद्रिय-विडिमा -जाव-अहियमणणिवुइकरा पासाइया हैं, इसकी रजतमय शाखायें सुप्रतिष्ठित हैं-यावत -मन की -जाव-पडिरूवा। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६० चिन्ताओं को निवृत्त करने वाली हैं --यावत्-प्रतिरूप हैं। जंबुए णं सुदंसणाए चउद्दिसिं चत्तारि साला पण्णता, तं जम्बू-सुदर्शन वृक्ष के चारों दिशाओं में चार शाखायें कहीं जहा-पुरस्थिमेणं, दविखण, पचत्थिमेण, उत्तरेणं । गई हैं, यथा-(१) पूर्व दिशा की शाखा, (२) दक्षिण दिशा की शाखा, (३) पश्चिमदिशा की शाखा, (४) उत्तरदिशा की शाखा। तत्थ णं जे से पुरथिमिल्ले साले एत्थ णं भवणे पण्णत्ते, उनमें से पूर्व दिशा की शाखा पर एक भवन कहा गया है, कोसं आयामेणं, एवमेव । वह एक कोश का लम्बा हैं, शेष इसी प्रकार है। जीवा० ५० ३, उ०२, सु० १५१ । बहरामयमला, रययसुपइट्ठियविडिमा एवं चेइयरुक्ख-वण्णओ जाव सबो रिट्ठामयविउलकंदा, वेरुलियरुइरखंधा, सुजाय-वरजायरूवपढमगविसालसाला, नानामणि-रयणविविह साहप्पसाहवेरुलियपत्ततत्रणिज्जपत्तविटा, जंबूणयरत्तमउयसुकुमालपवालपल्लवंकरधरा. विचित्तमणि-रयणसूरहिकुसुमा । फलभारन मियसाला, सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया स उज्जोया अहियं मणो णिव्व इकरा ........पासाश्या जाव पडिरूवा । -जीवा०प० ३, उ० २, सु० १५१
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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