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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : उत्तरकुरु
सूत्र ३१६-३२३
उक्कोसेणं । एकूणपण्णराइंदियाई अणुपालणा। पल्योपम का है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम का है। वे उन पचास सेसं जहा एगुरुयाणं ।
अहोरात्रपर्यन्त अपने बालयुगल का पालन-पोषण करते हैं।
शेष वर्णन एकोरुकद्वीप (निवासी मनुष्यों) जैसा है। ३२०. उत्तरकुराएणं कुराए छविहा मणुस्सा अणुसज्जंति । ३२०. उत्तरकुरा नामक कुरा में छह प्रकार के मनुष्य निवास करते
तं जहा। (१) पम्हगंधा, (२) मियगंधा, (३) अम्ममा, हैं-यथा-१ पद्म (कमल) जैसी गंधवाले, २ मृग (कस्तुरीमृग) (४) सहा, (५) तेयालीसे, (६) सणिच्चारी।'
जैसी गंधवाले, ३ ममत्वरहित, ४ सहनशील, ५ तेजस्तलीन -जीवा०प०३, उ० २, सु० १४७ (तेतली) ६ शनैश्चारी (शनःशनै चलने वाले) । उत्तरकुराए णामहेऊ
उत्तरकुरु के नाम का हेतु३२१. ५०-से केणठ्ठणं भंते । एवं वुच्चइ-उत्तरकुरा उत्तरकुरा। ३२१. प्र०-भगवन् ! उत्तरकुरु-उत्तरकुरु क्यों कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! उत्तरकुराए उत्तरकुरु णाम देवे महिड्ढीए उ०-गौतम ! उत्तरकुरु में उत्तरकुरु नामक महधिक
-जाव-पलिओवमट्ठिइए परिवसइ । से तेण?ण गोयमा! -यावत् - पल्योपम की स्थिति वाला देव रहता है। इस एवं बुच्चइ-"उत्तरकुरा, उत्तरकुरा ।" कारण गौतम ! उत्तरकुरु उत्तरकुरु कहा जाता है । अदुत्तरं च णं गोयमा ! उत्तरकुराए सासए णामधेज्जे अथवा-गौतम ! उत्तरकुरा यह नाम शास्वत कहा गया पण्णत्ते।
-जंबु० बक्ख० ४, सु० ६१ है। ३२२. देवकुरु-उत्तरकुरुएसु णं मणुया एगूणपन्नाराइंदिएहि संपन्न- ३२२. देवकुरु उत्तरकुरु में मनुष्य उनपचास अहोरात्रि में युवाजोवण्णा भवंति।
-सम ४६, सु० ६२ वस्था को प्राप्त होते हैं । उत्तरकुराए जंबुपेढस्स अवट्ठिई पमाणं च
उत्तरकुरा में जम्बूपीठ की अवस्थिति और प्रमाण३२३. प०–कहि णं भंते ! उत्तरकुराए २ जंबूपेढे णामं पेढे ३२३. प्र०-हे भगवन् ! उत्तरकुरा में जम्बूपीठ नामक पीठ पण्णत्ते?
कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं उ०-हे गौतम ! नीलवंत वर्षधर पर्वत से दक्षिण में,
मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं मालवंतस्स वक्खारपव्व- मंदर पर्वत से उत्तर में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत से पश्चिम में, यस्स पच्चत्थिमेणं, गंधमादणस्स वक्खारपब्वयस्स गंधमादन वक्षस्कार पर्वत से पूर्व में शीता महानदी के पूर्वी पुरथिमेणं, सीआए महाण ईए पुरथिमिल्ले कूले- किनारे पर उत्तरकुरा में जम्बूपीठ नामक पीठ कहा गया है। एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते।'
१ जंबू० वक्ख०४, सु० ८७ २ जम्बूपीठ से सम्बन्धित वर्णन आगमोदय समिति से प्रकाशित जीवाभिगम और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र में है-दोनों आगमों के वर्णनों
में वाचना भेद से कहीं कहीं असमानता है। जीवाभिगम सूत्र १५१ के मूलपाठ तथा टीका में-"जम्बूपीठ मन्दरपर्वत से उत्तरपूर्व में है" ऐसा कहा है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-सूत्र ६० के मूलपाठ तथा टीका में-"जम्बूपीठ मन्दरपर्वत से उत्तर में है"-ऐसा कहा है 1 तुलनात्मक अध्ययन के लिए देखें-दोनों आगमों के मूलपाठ और टीकापाठ । मूलपाठ-१०-कहि णं भंते ! उत्तरकुराए २ जंबुसुदंसणाए जंबुपेढे नाम पेढे पण्णते ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरपुरच्छिमेणं....... टोकापाठ-कहि णं भंते ! इत्यादि-क्व भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे उत्तरकुरुषु-जम्ब्वाहि द्वितीयं नाम सुदर्शनेति तत उक्तं
सुदर्शनाया इति, जम्ब्बाः सम्बन्धि पीठं जम्बूपीठं नामपीठं प्रज्ञप्तं ? भगवानाह-गौतम ! मन्दरस्य पर्वतस्य "उत्तरपूर्वेण" उत्तरपूर्वस्यां....
-जीवा० प्र० ३, सूत्र १५१. मूलपाठ--१०-कहि णं भंते ! उत्तरकुराए २ जम्बूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते ? उ०-गोयमा ! णीलवंतवासहरपव्वयस्स दाहिणणं, मंदरस्स उत्तरेणं........ टीकापाठ-कहिणमित्यदि, क्व भदन्त ! उत्तरकुरुषु जम्बूपीठं नाम पीठं प्रज्ञप्तं ? निर्वचनसूत्रे गौतमे त्यामन्त्रणं गम्यं नीलवत्तो वर्षधर पर्वतस्य दक्षिणेन, मन्दरस्य पर्वतस्योत्तरेण.....
-जंबु० वक्ष० ४, सूत्र ६०