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________________ २१४ लोक- प्रज्ञप्ति देवकुराए आयारभावो ३१२. ५० देवकुराए णं भंते ! कुराए केरिसए आयारभाव पोवारे पगले ? उ०- गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । तिर्यक लोक देवकु देवकुराए णामहेऊ ३१२. १० से के - भंते! एवं बुवद-देवकुरा, देवकुरा ? उ०- गोयमा ! देवकुराए देवकुरुणामं देवे महिड्ढीए - जावपलिओमट्टिए परिवसह । १ २ एवं पुत्रजन्ते समसमानता सच्चेव जाव ( १ ) पउमगंधा, (२) मिअगंधा, (३) अममा, (४) सहा (५) बेतली, (६) सविचारी । - जंबु० बक्ख० ४, सु० ६७ सेते गोयमा ! एवं वच्चइ – देवकुरा, देवकुरा । अनुत्तरं च षं गोधमा | देवकुराए सासए णाम पण्णत्ते । - जंबु० बक्ख० ४, सु० १०० देवकुराए कूडसामलीपेडल्स ठाणाई उ०- गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिण -पच्चत्थिमेणं मिसस्स बासह रयस्वयरस उत्तरेणं विश्नुप्यभस्स वक्ारपव्ययस्स पुररिथमेनं सोसोआए महापईए पच्चत्थिमेणं, देवकुरुपच्चत्थिमद्धस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं देवकुराए कुराए कूडसामलीपेढे णामं पेढे पण्णत्ते ।" एवं जच्चैव जंबूए सुदंसणाए वत्तब्वया सच्चेव सामलीए विभाणिव्वा णामविहूणा । ठाणं १० सु० ७६४ (क) कूडसामलीगं अट्ठ जोयणाई एवं चैव । (ख) सम० ८ सु० ५ सूत्र ३१२-३१५ देवकुरु का आकार भाव (स्वरूप) - ३१२. प्र० - भगवन् ! देवकुरा नामक कुरा का आकारभाव (स्वरूप) कैसा कहा गया है ? देवकुरु में कूटशाल्मलीपीठ के स्थानादि ३१४. ५० - कहि णं भंते! देवकुराए कुराए कूडसामलिपेढे णामं ३१४. प्र० - भगवन् ! देवकुरु नामक कुरु में कूटशाल्मलीपीठ पेढे पण ? नामक पीठ कहाँ कहा गया है ? उ०- गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत सम एवं रमणीय कहा गया है । इस प्रकार पूर्ववणित सुषमासुषमा की जो वक्तव्यता है वही यहाँ समझ लेना चाहिए। यावत् ( वहाँ छह प्रकार के मनुष्य हैं) । १ पद्मगंध २ मृगगंध, ३ अमम ४ सह ५ तेतली और ६ शनैश्चारी । देवकुरु के नाम का हेतु ! ३१२. प्र० ] भगवन् | देवकुरु को देवकुरु क्यों कहते हैं ? उ० – गौतम ! देवकुरु में देवकुरु नामक महधिक - यावत्पत्योपम की स्थिति वाला देव रहता है । इस कारण गौतम ! देवकुरु देवकुरु कहा जाता है । अथवा - गौतम ! देवकुरु यह नाम शास्वत कहा गया है। गरुलदेवे, रायहाणी दक्खिणेणं । अवसिद्ध तं चेव । - जंबु० वक्ख० ४, सु० १०० ३१५. तत्थ णं दो महइमहालया, महद्दुमा बहुसमतुल्ला, अविसेसमणाणता अग्गमणं नावन्ति याम विश्वंभुच्चो संठाण - परिणाहेणं तं जहा - कूडसामली चेव सुदंसणा चेव । गहराई, आकृति और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं ३१५. वहाँ दो विशाल महावृक्ष हैं, जो परस्पर सर्वथा तुल्य, विशेषतारहित, विविधतारहित सम्बाई, पीड़ाई, ऊँचाई, करते हैं, यथा-शामली और जंबूदर्शना 7 उ०- गौतम ! मेरुपर्वत से दक्षिण पश्चिम में, निषध वर्षधर पर्वत से उत्तर में विद्याभ वक्षस्कार पर्वत से पूर्व में शीतोदा महानदी से पश्चिम मे तथा देवकुरु के पश्चिमार्थ के मध्य में देवकुरु नामक कुरु में कूटशाल्मलीपीठ नामक पीठ कहा गया है । जम्मुदर्शन (बल) की भांति सामलीका भी नाम हो छोड़कर समस्त वर्णन कर लेना चाहिये । यहाँ गरुड़ नामक देव (रहता है) (इस देव की राजधानी दक्षिण में है । शेष वर्णन पूर्ववत् है । - ठाणं ८, सु०६३५
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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