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________________ २१२ लोक-प्रति तेवर जोअणसहस्साइं णव अ एगुत्तरे जोअणसए सत्तरस य एगुणवीसभाए जोनरस मार्ग च आयामेण " ३०४. तस्स धणु दाहिणेणं चउरासीइं जोअणसहस्साइं सोलस जोमणाहं चतारि एगुणवीसभाए जोगणस्स परिवे - जंबु० वक्ख० ४, सु० ८२ हरिवासरस आपारभावो - ३०५. ५० - हरिवासस्स णं भंते! वासस्स केरिसए आयारभाव - पडोवारे पण्णले ? ३० गोवमा ! बहुसमरमणि तिर्यक् लोक : रम्यक् वर्ष मणीहि तहि अ उवसोभिए । ३०७. प० भूमिभागं पण जाय एवं मणीनं तणाणं य वण्णो गंधो फासो सद्दो भाणिअव्वो । हरियाणं तस्य तत्थ देते तहि तहि बहवे बुड्डा खुड्डियाओ । एवं जो समाए अणुभावो सो चे अपरसो - जंबु० वक्ख० ४, सु० ८२ वतव्वोत्ति । हरिवासस्स णामहेऊ २०६.१० नंगे ! एवं बुव' हरिवासे हरिवासे?" उ०- गोयमा ! हरिवासे णं वासे मणुआ अरुणा अरुणोभासा सेआ णं संखदलसणिकासा हरिवासे अ इत्थ देवे महितीएजाययतिमट्टिए परिवह से तेज व गोमा ! एवं -- हरिवासे हरिवासे।" - जंबु० वक्ख० ४, सु० ८२ लवणसमुद्र से स्पृष्ट है । यह ७३६७१ १७ १ १६ २ ३०४. इसकी धनुःपीठिका दक्षिण में - ८४०१६ ४ योजन की परिधि में है । १६ सूत्र ३०३-३०७ योजन लम्बी है । हरिवर्ष का आकारभाव - ३०५. प्र० - भगवन् ! हरिवर्ष का आकारभाव (स्वरूप) कैसा कहा गया है ? उ०- गौतम ! इसका आकार अत्यन्त सम और रमणीय भूमिभाग वाला कहा गया है - यावत् - मणियों तथा तृणों से सुशोभित है। मणियों और तृणों के वर्ण, गंध (रस) और स्पर्श तथा शब्द का वर्णन कर लेना चाहिये । हरिवर्ष में जगह-जगह- यत्र-तत्र अनेक छोटी-बड़ी वापिकाएं हैं। इस प्रकार धमाका (द्वितीय आरे) की भांति सम्पूर्ण वर्णन कहना चाहिये ! हरिवर्ष के नाम का हेतु १०६. प्र० भगवन ! हरिवर्ष को हरिवर्ष क्यों कहते है ? रम्मयवासस्स अवट्ठिई पमाणं च रम्यवर्ष के अवस्थिति और प्रमाण -कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे रम्मए णामं वासे पण्णत्ते ? ३०७. प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में रम्यवर्ष नामक वर्ष कहाँ कहा गया है ? उ०- गौतम ! हरिवर्ष में (कुछ) मनुष्य अरुण वर्णवाले एवं अरुण कान्ति वाले हैं। (कुछ) मनुष्य शंखखण्ड के समान श्वेत वर्ण वाले हैं । यहाँ हरिवर्ष नामक महद्धिक-यावत्पल्योपम की स्थितिवाला देव रहता है । इस कारण गौतम ! हरिवर्ष हरिवर्ष कहा जाता है । १ हरिवास- रम्यवासयाओं में जीवा रोपणसहस्साई नव य एगुत्तरे जोस सत्तर एबीबागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं पण्णत्ता । -सम० ७३, सु० २ हरिवासवासिया जीवाणं प्रजुपिट्टा बरासी जोगाई सोलस जोवाई बत्तारि म भागा जोपणस्स परिवे पण्णत्ता । - सम० ८४, सु० ८ यहाँ हरिवर्ष की जीवा के धनुपृष्ठ की परिधि चोरासी हजार सोलह योजन तथा चार योजन के उन्नीस भाग जितनी कही है किन्तु सम० ८४, सूत्र में हरिवर्ष रम्पत्व (दोनों में प्रत्येक की जीवा के धनुपृष्ठ की परिधि चोरासी हजार सोलह पोजन तथा एक योजन के चार भाग जितनी कही है। सम० ८४, सूत्र ८ का मूलपाठ ऊपर उद्धृत है; तुलना करें।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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