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________________ २१० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : हैरण्यवत वर्ष सूत्र २६५-२६९ २६५. तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण-पडीणायया, दुहओ लवणसमुह २६५. उसकी जीवा उत्तर में पूर्व-पश्चिम की ओर लम्बी एवं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द पुट्ठा, दोनों ओर से लवणसमुद्र से स्पृष्ट है। पूर्व की ओर पूर्वी लवणपच्चस्थिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्ल लवणसमुद्द पुट्ठा। समुद्र से स्पृष्ट है और पश्चिम की ओर पश्चिमी लवणसमुद्र से सत्तीसं जोअणसहस्साई छच्चचउसत्तरे जोअणसए सोलस य एगूणवीसइभागे जोअणस्स किंचिविसेसूणे आयामेणं', स्पृष्ट है । यह ३७६७४ - योजन से कुछ कम लम्बी है। २९६. तस्स धणु दाहिणणं अद्वतीसं जोअणसहस्साई सत्त य चत्ताले २६६. उसका धनुपृष्ठ दक्षिण मेंजोअणसए दस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ७६ ३८७४०१० योजन की परिधि वाला है। हेमवयस्स वासस्स आयारभावो हैमवतवर्ष का आकार भाव२६७.५०-हेमवयस्स गं भंते ! वासस्स केरिसए आयारभाव- २९७. प्र०-भगवन् ! हैमवतवर्ष का आकारभाव (स्वरूप) कैसा पडोयारे पण्णते? कहा गया है ? उ०-गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । उ०-गौतम ! उसका भूमिभाग अति सम एवं रमणीय कहा गया है। एवं तइअसमाणुभावो अब्बो त्ति । उसका वर्णन (भरत क्षेत्र के) तीसरे आरे के वर्णन जैसा - जंबु० वक्ख० ४, सु० ७६ जानना चाहिए। हेमवयवासस्स णामहेऊ हैमवतवर्ष के नाम का हेतु२६८. प०–से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ-हेमवए वासे हेमवए २६८. प्र०-भगवन् ! हैमवतवर्ष को हैमवत वर्ष क्यों कहते हैं ? वासे? उ०-गोयमा ! चुल्लहिमवंत-महाहिमवतेहिं वासहरपव्व- उ०-गौतम ! यह चुल्लहिमवन्त और महाहिमवन्त नामक एहि दुहओ समवगूढे । णिच्चं हेम दलई, णिच्चं हेमं वर्षधर पर्वतों से दोनों ओर से समवगूढ अर्थात् संश्लिष्ट है। यह दलइत्ता णिच्च हेम पगासइ, हेमवए य इत्थ देवे सदैव (आसनप्रदान आदि द्वारा) हेम-स्वर्ण देता है, नित्य स्वर्ण महिढीए-जाव-पलिओवमट्टिइए परिवसइ । देकर सदैव हेम जैसा प्रकाशित होता है और यहाँ हैमवत नामक महद्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाला देव निवास करता है। से तेणटुणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-"हेमवएवासे इस कारण गौतम ! हैमवतवर्ष, हैमवतवर्ष कहलाता है । हेमवएवासे ।" -जंबु० बक्ख. ४, सु० ७८ हेरण्णवयवासस्स अवट्ठिई पमाण च हैरण्यवतवर्ष के अवस्थिति और प्रमाण२६६. प०- कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेरणवए णामं वासे २६८. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हैरण्यवत नामक पण्णते? वर्ष कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! रुप्पिस्स उत्तरेणं सिहरिस्स दक्खिणेणं, उ०-गौतम ! रुक्मि पर्वत से उत्तर में, शिखरीपर्वत से पुरथिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में और पश्चिमी लवण १ हेमवय-हेरण्णवयाओ णं जीवाओ सत्ततीसं जोयणसहस्साई छच्च चउत्तरे जोयणसए सोलस य एगूणवीस इभाए जोयणस्स किंचिवेसेसूणाओ आयामेणं पणत्ता । -सम. ३७, सु. २ २ हेमवए-हेर ण्णवयाईण जीवाणं धणुपिठे अद्वतीसं जोयणसहस्साई सत्त य चत्ताले जोयणसए दस एगूणवीस इभागे जोयणस्स किंचिविसेसूणा परिक्खेवेणं पण्णत्ता। -सम. ३८, सु. २
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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