SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुत्र २६२-२६४ तिर्यक् लोक : हैमवत वर्ष गणितानुयोग २०६ २८ (४) व पावईविजए, अपराइआरायहाणी, फेणमालिणी २८(४) वप्रावतीविजय, अपराजिता राजधानी, फेनमालिनी गई। नदी है। २६ (५) वग्गूविजए, चक्कपुरारायहाणी, णागे वक्खारपब्वए। २६(५) वल्गु विजय, चक्रपुरा राजधानी, नाग वक्षस्कार पर्वत है। ३० (६) सवग्गूविजए, खग्गपुरारायहाणी, गंभीरमालिणी ३०(६) सुवल्गु विजय, खड़गपुरा राजधानी, गंभीरमालिनी अंतरणई। नदी है। ३१ (७) गंधिलेविजए, अवज्झारायहाणी, देवे वक्खारपव्वए।। ३१(७) गंधिलविजय, अवध्या राजधानी, देववक्षस्कार पर्वत है। ३२ (८) गंधिलावई विजए,' अयोज्झारायहाणी । ३२(८) गंधिलावतीविजय, अयोध्याराजधानी है। एवं मन्दरस्स पव्वयस्स पच्चिथिमिल्लं पासं भाणि- इसी प्रकार मेरु पर्वत के पश्चिमी पार्श्व का (वर्णन) कहना यव्वं । -जंबु० वक्ख० ४, सु० १-२ चाहिए। हेमवयवासस्स अवटिई पमाणं च हेमवतवर्ष के अवस्थिति और प्रमाण२६३.प्र.-कहि णं भते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे २६३. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हेमवत नामक पण्णत्ते। __ वर्ष कहाँ कहा गया है। उ०-गोयमा ! महाहिमवंतस्स वासहरपब्वयस्स दक्षिणेणं उ०-गौतम ! महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत से दक्षिण में, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिम- चुल्ल हिमवन्त वर्षधर पर्वत से उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र से लवणसमुहस्स पच्चत्थिमणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र से पूर्व में जम्बूद्वीप नामक पुरस्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे द्वीप में हैमवत नामक वर्ष कहा गया है। पण्णते। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिण्णे, पलिअंक- यह पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है। संठाणसंठिए, दुहा लवणसमुदं पुढे । पुरथिमिल्लाए पलंग के आकार का है । तथा दो ओर से लवणसमुद्र से स्पृष्ट है । कोडोए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द पुढे, पच्चत्थि- पूर्व की ओर पूा लवणसमुद्र से स्पृष्ट है और पश्चिम की ओर मिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुद्द पुढे, दोण्णि जोअणसहस्साई एगं च पंचुत्तरं जोअणसयं पश्चिमी लवणसमुद्र से स्पृष्ट है । यह २१०५.योजन चौड़ा है। पंच य एगूणवीसइभाए जोअणस्स विक्ख भेणं । २६४. तस्स बाहा पुरथिम-पच्चत्थिमेणं छज्जोयणसहस्साई सत्त य २६४. उसकी बाहु पूर्व-पश्चिम मेंपणवण्णे जोअणसए तिणि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स ६७५५ ३ योजन लम्बी है। १६ आयामेणं । १ सीओआए उत्तरिल्ले पासे इमे विजया पण्णत्ता, तं जहा गाहा–वप्पे सुवप्पे महावप्पे, चउत्ये वप्पयावई। वग्गू अ सुवग्गू अ, गंधिले गंधिलाबई ।। २ (क) ..."इमाओ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा गाहा-विजया वेजयंती, जयंती अपराजिया । चक्कपुरा खग्गपुरा हवइ अबज्झा अउज्झा य ।। ....इमे वक्वारा पण्णत्ता, तंजहागाहा- चंदपव्वए, सूरपव्वए, नाग पव्वए, देवपव्वए । इमाओ णईओ-सीओआए महाणईए उत्तरिल्ले कूलेउम्मिमालिणी, फेणमालिणी, गंभीरमालिनी । उत्तरिल्लविजयाणतराउत्ति । (ख) ठाणं. ८. सु. ६३७ । ३ (क) हेमवयहेरण्णबयाओ पं बाहाओ सत्तट्टि सत्तटुिं जोयणसयाइं पणपन्नाई तिणि य भागा जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ता । -सम.६७, स.२ (ख) यहाँ हेमवत और हैरण्यवत की बा काहु आयाम ६७५५ योजन तथा तीन योजन के उन्नीस भाग जितना कहा है। किन्तु समवाय ६७, सूत्र २ में ६७५५ योजन तथा एक योजन के तीन भाग जितना कहा है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy