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________________ सूत्र २८-५२८८ तिर्यक् लोक : महाविदेह वर्ष गणितानुयोग २०५ एत्थ णं महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते। विजय कहा गया है, शेष वर्णन कच्छ विजय के समान है-यावत सेसं जहा कच्छबिजयस्स-जाव-महाकच्छे अ इत्थ देवे -यहाँ महाकच्छ नामक महद्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति महिड्ढीए-जाव-पलिओवमट्ठिईए परिवसइ अट्ठो अ वाला देव रहता है, इसका वर्णन पूर्ववत् कर लेना चाहिए । भाणिअव्वो। -जंबु बक्ख० ४, सु० ६५ (४) कच्छगावईविजयरस अवटिठई पमाणं च- (४) कच्छगावतीविजय की अवस्थिति और प्रमाण२८५. ५०-कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे कच्छगावती णाम २८४. प्र०-भगवन् महाविदेह वर्ष में कच्छगावती नामक विजय विजए पण्णते ? कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! णीलवंतस्स दाहिणेणं, सीआए महाणईए उ०-गौतम ! नीलवन्त (पर्वत) के दक्षिण में, सीता महा उत्तरेणं, दहावतीए महाणईए पच्चत्थिमेणं, पम्हकूडरस नदी के उत्तर में, द्रहावती महानदी के पश्चिम में एवं ब्रह्मकट पुरथिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे कच्छगावती णाम (पर्वत) के पूर्व में महाविदेह वर्ष में कच्छगावती नामक विजय विजए पण्णत्ते। कहा गया है। उत्तर-दाहिणायए, पाईण-पडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा यह उत्तर-दक्षिण में लम्बा और पूर्व-पश्चिम में चौड़ा है। कच्छस्स विजयस्स-जाव-कच्छगावई अ इत्थ देवे शेष वर्णन कच्छ विजय के समान है-यावत्-यहाँ कच्छगावती महिड्ढीए-जाव-पलिओवमट्टिइए परिवसइ। नामक महद्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थितिवाला देव रहता है । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ (५) आवत्तविजयस्स अवटिठई पमाणं च- (५) आवर्तविजय की अवस्थिति और प्रमाण२८६. ५०-कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे आवत्ते णाम विजए २८६. प्र०-भगवन् ! महाविदेह वर्ष में आवर्त नामक विजय पण्णते? कहाँ कहा गया है ? उ.-गोयमा ! णीलवंतस्स गसहरपब्वयस्स दाहिणेण, उ०—गौतम ! नीलवन्त वर्षधर पर्वत से दक्षिण मे, सीता सीआए महाणईए उत्तरेणं, णलिणकूडस वक्खार- महानदी से उत्तर में, नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत से पश्चिम में पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, वहावतीए महाणईए पुरथिमेणं तथा दहावती महानदी से पूर्व में, महाविदेह वर्ष में आवर्त नामक एस्थ णं महाविदेहे वासे आवत्ते णामं विजए पण्णत्ते। विजय कहा गया है। सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स इति । शेष कथन कच्छविजय के समान है। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ (६) मंगलावत्तविजयस्स अवठिई पमाणं च-- (६) मंगलावर्तविजय की अवस्थिति और प्रमाण२८७. ५०–कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे मंगलावत्ते णाम विजए २८७. प्र०-भगवन् ! महाविदेह वर्ष में मंगलावर्त नामक विजय पण्णते? कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीआए महाणईए उ०-गौतम ! नीलवन्त से दक्षिण में, सीता महानदी से उत्तरेणं, गलिणकूउस्स पुरथिमेण, पंकावईए पच्च- उत्तर में, नलिनकूट से पूर्व में और पंकावती से पश्चिम में मंगलात्थिमेणं, एत्थ णं मंगलावत्ते णाम विजए पण्णत्ते। वर्त नामक विजय कहा गया है, कच्छबिजय की भांति इसका जहा कच्छरस विजए तहा एसो भाणिअब्बो-जाव- भी वर्णन जान लेना चाहिए यावत्-यहाँ मंगलावर्त नामक मंगलावत्ते अ इत्थ देवे महिड्ढीए-जाव-पलिओवम- महद्धिक-यावत् –पल्योपम की स्थिति बाला देव रहता है । ढिईए परिवसइ। से एएण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ मंगलावते विजए, इस कारण गौतम ! इसका नाम मंगलावर्तविजय है। मंगलावत्ते विजए। -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ (७) पुक्खलावतविजयस्स अवट्ठिई पमाणं च- (७) पुष्कलावर्तविजय को अवस्थिति और प्रमाण२८८. ५०-कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पुक्खलावत्ते णाम विजए २८८, प्र०-भगवन् ! महाविदेह वर्ष में पुष्कलावर्त नामक विजय पण्णते ? कहाँ कहा गया है?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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