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________________ २०४ लोक- प्रज्ञप्ति तियं लोक महाविदेह वर्ष : उ०- गोयमा ! कच्छे विजए वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, सीआए महावईए उत्तरेणं, गंगाए महाणईए पस्चस्विमेणं, सिए महाणईए पुि दाहिकविपस बहुमतासभाए एवं गं खेमा णामं रायहाणी पण्णत्ता । विणीआ रायहाणी सरिता भाणियव्वा । सत्य णं खेमाए रायहाणीए कच्छे णामं राधा समु पण | महयाहिमवंत जाय-सवयं भरहोजवणं भाणि यत्र । निक्खमणवज्जं सेसं सव्वं भाणियव्वं जावभुजए मास्सए हे। कच्छणामधेज्जे अ कच्छे इत्थ देवे महद्धीए-जावपलिओमट्टिए परिवह से एएम गं गोपमा ! एवं बुच्चद्द" बिजए कच्छे विजए जागिये। - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६३ सध्येसु विजएसु कच्छवत्तब्वया जाव अट्ठो, सरिसणामगा । रायाणो ते मार्म बिजए पम्पसे (२) सुकच विजयस्स अबटिठई पमाणं च२०२. १० वेदी महाविदेहे वासे मुच्छे उ०- गोयमा ! सीआए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, गाहावईए महाणईए पच्चत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ गं जंबूद्दवेदी महाविदेहे मासे सुकच्छे गाम विजए। उत्तरदाहिए जब ये विजए तहेव सुक विजए। वरं - खेमपुरा रायहाणी, सुकच्छे राया समुपज्जइ, तहेब सव्वं । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ (३) महारुद्र विजयरस अवई पमाणं च२८४. ५० - कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं वितए पण्णत्ते ? सूत्र २८२ २८४ उ०- गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीआए महानईए उत्तरेणं, पम्हकूडस्स वक्खारपव्व यस्स पच्चस्थिमेणं, गाहावईए महाणईए पुरस्थिमेणं उ०- गौतम ! कच्छ विजय वैताढ्य पर्वत से दक्षिण में, सीता महानदी से उत्तर में गंगा महानदी से पश्चिम में तथा सिन्धु महानदी से पूर्व में है । दक्षिणार्ध कच्छ बिजय के मध्य में क्षेमा नामक राजधानी कही गई है । इसका वर्णन विनीता राजधानी के समान समझ लेना चाहिए। कच्छविजय के अनुसार सब विजयों का कथन करना चाहिए - यावत् — विजयों के नाम का हेतु भी कहना चाहिए। राजाओं - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६५ के नाम विजयों के नामों के समान कहना चाहिए। (२) सुकच्छ विजय के अवस्थिति और प्रमाण२०३. प्र० भगवत् ! जम्बुद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष में सुकच्छ नामक विजय कहाँ कहा गया है ? क्षेमा राजधानी में कच्छ नामक राजा उत्पन्न होता है, वह महाहिमवन्त (पत के समान विमान है) - यावत्क्रमण (दीक्षा) को छोड़कर उसका सब वर्णन (भरत चक्रवर्ती के समान समझना चाहिए, तथा शेष सब वर्णन कहना चाहिए- यावत्वह मानवीय सुखों का उपभोग करता हुआ रहता है । यहाँ कच्छ में कच्छ नामक महद्धिक - यावत् - पल्योपम की स्थिति वाला देव रहता है । इस कारण गौतम ! कच्छ विजय को कच्छ विजय कहते हैं - यावत् - ( यह नाम ) नित्य है । उ०- गौतम ! सीता महानदी के उत्तर में नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, ग्राहावती महानदी के पश्चिम में एवं चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में मुच्छ नामक विजय कहा गया है। यह उत्तर-दक्षिण में लम्बा है, जैसा कच्छ विजय का वर्णन है, वैसा ही सुकच्छ विजय का है। विशेष यह है कि यहाँ की राजधानीमपुरा है, तथा यहाँ सुकच्छ नामक राजा उत्पन्न होता है, शेष सब उसी के ( कच्छ विजय ) के अनुसार है । (३) महाकच्छविजय के स्थान; अवस्थिति और प्रमाण२३. प्र० भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में महाकच्छ नामक विजय कहाँ कहा गया है ? उ०- गौतम ! नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, सीता महानदी के उत्तर में ब्रह्मकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं ग्राहावती महानदी के पूर्व में महाविदेह वर्ष में महाकच्छ नामक 1
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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