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________________ सूत्र २७८-२८२ तिर्यक् लोक : महाविदेह वर्ष गणितानुयोग २०३ पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपब्वयस्स पुरथिमेणं वक्षस्कार पर्वत से पूर्व में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे, दाहिणड्ढकच्छे में दक्षिणार्ध कच्छ नामक विजय कहा गया है। णाम विजए पण्णत्ते । उत्तर-दाहिणायए, पाईण-पडीणविच्छिन्ने, अट्ठ जोअण- यह उत्तर-दक्षिण में लम्बा, पूर्व-पश्चिम में चौड़ा है, सहस्साई दोणि अ एगसुतरे जोअणसए एक्कं च एगूणवीसइभाग जोअणस्स आयामेणं, ८२७१, योजन लम्बा है । दो जोअणसहस्साई दोणि अ तेरसुत्तरे जोअणसए बावीस सौ तेरह योजन से कुछ कम चौड़ा है और पलंग के किचिविसेसूणे विक्खंभेणं, पलिअंकसंठाणसंठिए। आकार का है । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६३ दाहिणद्धकच्छविजयस्स आयारभावे दक्षिणार्ध कच्छविजय का आकार भाव२७६. प०-दाहिणद्धकच्छस्स णं भंते ! विजयस्स केरिसए आयार- २७६. प्र०-भगवन् ! दक्षिणार्धकच्छ विजय का आकारभाव भावपडोयारे पण्णते ? (स्वरूप) कैसा कहा गया हैं ? उ०-गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, तंजहा उ०--गौतम ! यह अत्यन्त सम एवं रमणीय भूभाग वाला -जाव-कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहि चेव । कहा गया है-यावत्-कृत्रिम तथा अकृत्रिम (मणि-तृणों) से -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६३ (सुशोभित) है। दाहिणद्धकच्छविजयरस मणुआणं आयारभावे- दक्षिणार्ध कच्छविजय के मनुष्यों का आकार भाव२८०.५०-दाहिणद्धकच्छे णं भंते ! विजए मणुआणं केरिसए २८०. प्र०-भगवन् ! दक्षिणार्ध कच्छ विजय के मनुष्यों का आयारभावपडोयारे पण्णते ? आकारभाव (स्वरूप) कैसा कहा गया है ? उ०-गोयमा ! तेसि णं महुआणं छविहे संघयणे-जाव- उ०-गौतम ! यहाँ के मनुष्य छह प्रकार के संहनन वाले सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । -यावत्-सर्व दुःखों का अन्त करने वाले हैं । - जंबु० वक्ख० ४, सु० ६३ उत्तरद्धकच्छविजयस्स अवट्टिई पमाणं च उत्तरार्ध कच्छविजय की अवस्थिति और प्रमाण२८१.५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरद्ध- २८१. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष कच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? में उत्तरार्धकच्छ नामक विजय कहाँ कहा गया है? उ०-गोयमा ! वेअडढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, णीलवंतस्स उ०-गौतम ! वैताढ्य पर्वत से उत्तर में, नीलवन्त वर्षधर वासहरपवयरस दाहिणणं, मालवंतस्स ववखारपब्व- पर्वत से दक्षिण में, माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत से पूर्व में एवं यस्स पुरथिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्च- चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत से पश्चिम में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के थिमेणं, एत्यं णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे महाविदेह वर्ष में उत्तरार्धकच्छ नामक विजय कहा गया हैउत्तरद्धकच्छे णाम विजय पण्णत्ते-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं यावत्-(वहाँ के कोई-कोई मनुष्य) सब दुःखों का अन्त करते हैं । करति । तहेव अव्वं सव्वं । इस प्रकार सब कथन पूर्ववत् जान लेना चाहिए । (१) कच्छविजयस्स णामहेउ (१) कच्छविजय के नाम का हेतु२८२.५०-से केणटुणं भते ! एवं वुच्चइ-"कच्छे विजए- २८२. प्र०. भगवन् ! कच्छविजय को कच्छविजय क्यों कहते हैं ? कच्छे विजए" ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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