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सूत्र २७१-२७५
तिर्यक् लोक : महाविदेह वर्ष
गणितानुयोग
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उ.- गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते-जाव- उ०-गौतम ! इसकी भूमि बहुत सम और रमणीय कही कित्तिमेहि चैव अकित्तिमेहि चैव ।
गई है-यावत्-कृत्रिम और अकृत्रिम (मणियों तथा तृणों) से -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८५ (सुशोभित) है। महाविदेहवासस्स मणुआणं आयारभावो- महाविदेह के मनुष्यों का आकारभाव२७२. ५०-महाविदेहे णं भंते ! वासे मणुआणं केरिसए आयार- २७२. प्र०-महाविदेह वर्ष के मनुष्यों का आकारभाव (स्वरूप) भावपडोयारे पण्णत्ते ?
कसा कहा गया है? उ०-गोयमा! तेसि णं मणुआणं छबिहे संघयणे, छविहे. उ०-गौतम ! वहाँ के मनुष्य छह प्रकार के संहनन और
संठाणे, पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, जहणणं छह प्रकार के संस्थान वाले हैं. पाँच सौ धनुष की ऊँचाई वाले अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुथ्वकोडी आउअं पालेंति, हैं, वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट पूर्वकोटि की आयु भोगते हैं पालेत्ता अप्पेगइआ निरयगामी-जाव-अप्पेगइआ और भोगकर कोई-कोई नरक में जाते हैं -यावत-कोई-कोई सिझंति-जाव-अंतं करेंति ।
__सिद्ध होते हैं-यावत्-(सब प्रकार के दुःखों का) अन्त करते हैं ।
--जंबु० बक्ख० ४, सु० ७५ महाविदेहवासस्स णामहेऊ-.
महाविदेह वर्ष के नाम का हेतु२७३. ५०-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-महाविदेहे वासे २७३. प्र०-भगवन् ! महाविदेह वर्ष को महाविदेह वर्ष क्यों महाविदेहे वासे?
कहते हैं ? उ०-गोयमा ! महाविदेहे णं वासे भरहेरवय-हेमवय-हेरण्ण- उ०-गौतम ! महाविदेह वर्ष भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्य
वय-हरिवास-रम्मगवासेहितो आयाम-विक्खंभ-संठाण- वत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष से लम्बाई, चौड़ाई संस्थान परिणाहेणं वित्थिन्नतराए चेव, विपुलतराए चेव, (आकार) और परिधि में अधिक विस्तीर्ण है, अधिक विपुल है, महंततराए चेव, सुप्पमाणतराए चेव।
अधिक विशाल है और अधिक सुप्रमाण वाला है। महाविदेहा य इत्थ मणूसा परिवसति । महाविदेहे अ यहाँ महाविदेह अर्थात् बड़े ऊँचे शरीर वाले मनुष्य रहते हैं, इत्थ देवे महिड्ढिए-जाव-पलिओवमट्ठिइए परिवसइ। यहाँ महाविदेह नामक महधिक -यावत्-पल्योपम की स्थिति
वाला देव रहता है। से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ–“महाविदेहेवासे, इस हेतु से, गौतम ! यह महाविदेह वर्ष, महाविदेह वर्ष
महाविदेहे वासे।" -जंबु० वक्ख० ४, सु० ८५ कहलाता है । महाविदेहस्स सासयत्तं
महाविदेह की शाश्वतता२७४. अदुत्तरं च णं गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स सासए णाम- २७४. अथवा गौतम ! इसका यह नाम शाश्वत है, जो कभी नहीं
धेज्जे पण्णत्ते, ज ण कयाइ णासि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ था ऐसा नहीं है, कभी नहीं है-ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगाण भविस्सइ भुवि च भवइ अ भविस्सइ धुवे णिअए सासए ऐसा नहीं है, था, है, और होगा, यह महाविदेह वर्ष ध्रव है, अवखए अश्वए अवट्ठिए णिच्चे महाविदेहे वासे। नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और
-जंबु० वक्ख० ४, सु० ८५ नित्य है। बदीवे चोत्तीसं चक्कवटिट-विजया रायहाणीओ य- जम्बूद्वीप में चोतीस चक्रवर्ती विजय और राजधानियाँ२७५. ५०—(क) जंबुद्दीवे दीवे केवइया चक्कवट्टि-विजया ? २७५. प्र०—(क) (भगवन् !) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में कितने
चक्रवर्ती विजय है? (ख) केवइयाओ रायहाणीओ?
(ख) और उनकी राजधानियां कितनी हैं ? उ०-(क) गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे चोत्तीसं चक्कवट्टि-विजया, उ०-(क) गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीपों में चोतीस
चक्रवर्ती विजय है।