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________________ २०० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : ऐरावत क्षेत्र सूत्र २६५-२७१ भरहेरवयाणं जीवा-पमाणं भरत और ऐरवत की जीवा का प्रमाण२६५. भरहेर वयाओ णं जीवाओ चउद्दस चउद्दस जोयणसहस्साई २६५. भरत और ऐरवत (प्रत्येक) की जीवा का आयाम चौदह चत्तारि अ एगुत्तरे जोयणसए छच्च एगूणवीसे भागे जोयण- हजार चार सौ इकहत्तर एक योजन के उन्नीस भागों में से छः स्स आयामेणं पण्णता। -सम० १४, सु०६ भाग जितना कहा गया है। महाविदेहवासस्स अवट्टिई पमाणं च महाविदेहवर्ष का स्थान और प्रमाण२६६. प्र०- कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे णामं वासे २६६. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में महाविदेह नामक पण्णते ? वर्ष (क्षेत्र) कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, उ०-गौतम ! नीलवन्त वर्षधर पर्वत से दक्षिण में, निषध णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवण- वर्षधर पर्वत से उत्तर में, पूर्व लवणसमुद्र से पश्चिम में तथा समुहस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुर- पश्चिमी लवणसमुद्र से पूर्व में जम्बूद्वीप नामक द्वीप में महाविदेह त्थिमेणं, एत्थ णं जबुद्दीवे दीवे महाविदेहे णाम वासे नामक वर्ष कहा गया है। पण्णत्ते। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिन्ने, पलिअंक यह पूर्व और पश्चिम में लम्बा, उत्तर-दक्षिण में चौड़ा, पर्यक संठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्द पुट्ठ', पुरथिमिल्लाए (पलंग) के आकार का एवं दो ओर से लवणसमुद्र से स्पृष्ट है, कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द' पुट्ठ', पच्चथिमिल्लाए पूर्व की ओर पूर्वी लवणसमुद्र से है और पश्चिम की ओर पश्चिमी कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुद्द पुढे । तित्तीसं जोअणसहस्साई छच्च चुलसीए जोअणसए चत्तारि अ लवण समुद्र से स्पृष्ट है, यह ३३६८४ - योजन चौड़ा है। एगणवीस इभागे जोअणस्स विक्खभेणति'। २६७. तस्स बाहा पुरथिम-पच्चत्थिमेणं तेत्तीस जोअणसहस्साई २६७. इसकी बाहा पूर्व-पश्चिम की ओरसत्त य सत्तस? -जोअणसए सत्त य एगूणवीसइभाए ५ ३३७६७ - योजन लम्बी है। जोअणस्स आयामेणंति । २६८. तस्स जीवा बहुमज्झदेसभाए पाईण-पडीणायया दुहा लवण- २६८. इसकी जीवा मध्य में पूर्व-पश्चिम की ओर लम्बी है, एवं सबुद्द पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमल्लं लवणसमुद्द दोनों ओर से लवणसमुद्र से स्पृष्ट है, पूर्व की ओर पूर्वी लवणपुट्ठा पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्ल लवणसमुद्द समुद्र से स्पृष्ट है और पश्चिम की ओर पश्चिमी लवणसमुद्र से पुट्ठा । एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणंति । स्पृष्ट है, यह एक लाख योजन लम्बी है । २६६. तस्स धण उभयो पासि उत्तर-दाहिणणं एग जोयणसयसहस्सं २६६. इसका धनुःपृष्ठ दोनों ओर उत्तर-दक्षिण में अट्ठावण्णं जोअणसहस्साई एगं च तेरसुत्तरं जोअणसयं सालेस य एगूणवीसइभागे जोअणस्स किचिविसेसाहिए परिक्खेवेति । १५८११३- योजन से कुछ अधिक की परिधि वाला है। २७०. महाविदेहे णं वासे चउबिहे चउप्पडोआरे पण्णत्ते, तंजहा- २७०. महाविदेह वर्ष चार प्रकार का है और चार भागों में १ पुव्वविदेहे, २ अवरविदेहे, ३ देवकुरा, ४ उतरकुरा । विभक्त कहा गया है, यथा-(१) पूर्व महाविदेह, (२) अपर -जंबु० वक्ख० ४, सु०८ महाविदेह, (३) देवकुरु, और (४) उत्तरकुरु । महाविदेहवासस्स आयारभावो महाविदेह का आकार-भाव२७१. प्र०-महाविदेहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आयारभाव- २७१. प्र०-भगवन् ! महाविदेह वर्ष का आकारभाव (स्वरूप) पडोयारे पण्णते ? कैसा कहा गया है? १ सम० ३३, सु० ३ २ ठाणं, ४, उ० २, सु० ३०२
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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