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________________ सूत्र २६०-२६४ २६०. तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण-पडीणायया, दुहा लवणसमुद्द पुद्रा बजाय बोस जोगस हस्ताई चत्तारि अ एक्सरे ( एगुत्तरे) जोयणसए छच्च य एगूणवीसइभाए जोयणस्स fafa वसे आयामेणं पण्णत्ते' । २६१. सीध दाहिणं बोसजोअणसहस्साई पंच agratसे जोअणसए एक्कारस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खवेणं । तिक लोक ऐरावत क्षेत्र : उत्तरट्टमरहवासस्स आधारभावे १ - जंबु० वक्ख० १, सु० १६ २६२. प्र० - उत्तरढभरहस्स णं भंते ! वासस्स रिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? उ०- गोवमा ! बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण से जहागामए आलिंगपुरे वा जाय-फिलिमेहिं वेब अकितिहि चै ००१०१६ उत्तरढमरयासरत मणु आणं आयारभावो२६३. प्र०— उत्तरड्ढभरहे णं भंते ! वासे मणुआणं केरिसए आधारभाव पडोयारे प उ०- गोमाते मा बहुसंपणा-जाव अगा सिति जापखाणमसं करेति । - जंबु० वक्ख० १, सु० १६ एरवयवासस्स अवट्टिई पमाण यते जं २६४० पण्णत्ते ? उ०- गोयमा ! सिहरिस्स उत्तरेणं, उत्तरलवण समुद्दस्स दक्षिणं पुरस्थलचणसमुदस्य पञ्चरियमेणं परव विमलवणसमुदसपुरस्थिमेणं एत्य होवे क्षेत्रे एरावए णामं वासे पण ते । सम० १४, सु० ६ 'खाणुबहुले, कंटकबहुले, एवं जच्चैव भरहस्स वत्तव्वया सच्चैव सव्वा णिरवसेसा यव्वा सओअवणा सणिक्ख मणा सपरिणिव्त्राणा । नवरं - एरावओ चक्कवट्टी, एरावओ देवो । से तेज गोधना ! एवं इस्वर एराए वाले एरावए वासे" । -जबु० वक्ख० ४, सु० १११ गणितानुयोग १६६ २६०. उसकी जीवा उत्तर में पूर्व-पश्चिम की ओर लम्बी है तथा दोनों ओर से लवगसमुद्र से स्पृष्ट है यह उसी प्रकार पावत् ६ १४४७१ योजन से कुछ कम लम्बी कही गई है । १६ २६१. उसका धनुषपृष्ठ दक्षिण में १४५२८ योजन की परिधि वाला है । १६ ११ उत्तरार्ध भरतवर्ष का आकारभाव २६२. प्र० - भगवन् ! उत्तरार्ध भरतवर्ष का आकारभाव (स्वरूप) कैसा कहा गया हैं ? उ०- गौतम ! इसका भूमिभाग अति सम एवं रमणीय कहा गया है। यह मुरज नामक बाद पर मेटे हुए चर्म जैसा समतल है - यावत् - कृत्रिम तथा अकृत्रिम (मणियों और तृणों से सुशोभित है। ऐरवत वर्ष की अवस्थिति और प्रमाण ! दीये एराबए नामं वासे २६४. प्र०-हे भगवन् जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में ऐरावत नाम का वर्ष कहाँ कहा गया है ? उत्तरार्ध - भरतवर्ष के मनुष्यों का आकारभाव २६३. प्र० - भगवन् ! उत्तरार्ध - भरतवर्ष (क्षेत्र) के मनुष्यों का आकारभाव (स्वरूप) कैसा कहा गया है ? उ०- गौतम ! यहाँ के मनुष्य अनेक प्रकार के संहनन वाले हैं- यावत् - कोई-कोई सिद्ध होते हैं- यावत् — सब दुःखों का अन्त करते हैं । उ०- गौतम ! शिखरी पर्वत के उत्तर में उत्तरी लवणसमुद्र के दक्षिण में पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में और पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में ऐरावत नाम का वर्ष कहा गया है। वह स्थाणु (ठूंठ) बहुल है, कंटक बहुल है, इस प्रकार जो कथन भरतवर्ष का है वही समग्र सम्पूर्ण इसका जान लेना चाहिए, यह पखण्ड की साधना सहित निकमसहित और निर्वाण सहित है। विशेष यहाँ ऐरावत पवर्ती और ऐरावत देव है। इसलिए हे गौतम! इसका नाम ऐरावतवर्ष है, ऐरावत वर्ष है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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