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________________ १९८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : भरत क्षेत्र सूत्र २५६-२५६ A दाहिणड्ढभरहवासस्स आयारभावो दक्षिणार्ध भरतवर्ष का आकारभाव२५६. दाहिणडढभरहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आयारभाव- २५६. प्र०-भगवन् ! दक्षिणार्ध-भरतवर्ष का आकारभाव पडोयारे पण्णत्ते? (स्वरूप) कैसा कहा गया है ? उ०-गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । उ०-गौतम ! इसका भुमिभाग बहुत सम और रमणीय से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा-जाव-णाणाविह- कहा गया है, वह मुरज नामक वाद्य पर मँढे हुए चर्म जैसा पंचण्णेवहि मणीहि तहिं उवसोभिए । तं जहा. समतल है--यावत् - नाना प्रकार की पंचवर्णमणियों से तथा कित्तिमेहि चेव, अकित्तिमेहि चेव । तृणों से सुशोभित है । यथा-(ये मणियाँ और तृण) कृत्रिम और -जम्बु० बक्ख० १, सु० ११ अकृत्रिम (दो तरह के) हैं। दहिणडढभरहवासस्स मणुआणं आयारभावो- दक्षिणार्ध-भरतवर्ष के मनुष्यों का आकारभाव२५७. प्र०-दाहिणद्धभरहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए २५७. भगवन् ! दक्षिणार्ध-भरतवर्ष के मनुष्यों का आकारभाव आयारभावपडोयारे पण्णते ? (स्वरूप) कैसा कहा गया है ? उ०-गोयमा ! ते णं मणुआ बहुसंघयणा, बहुसंठाणा, उ०-गौतम ! ये मनुष्य अनेक प्रकार के संहनन, अनेक बइउच्चत्तपज्जवा, बहुआउपज्जवा; बहूई वासाइं आउं प्रकार के संस्थान, अनेक प्रकार की ऊँचाई तथा अनेक प्रकार की पालैंति, पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया आयु वाले हैं । वे बहुत वर्षों की आयु भोगते हैं। और भोगकर तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया कोई-कोई नरक गति में जाते हैं, कोई-कोई तिर्यंचगति में जाते देवगामी, अप्पेगइया सिझंति बुझंति मुच्चंति हैं। कोई-कोई मनुष्यगति में जाते हैं और कोई-कोई देवगति में परिणिध्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जाते हैं, कोई-कोई सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिवृत्त होकर सब -जम्बु० बक्ख० १, सु० ११ दुःखों का अन्त करते हैं । उत्तरडढभरहवासस्स अवट्टिई-पमाणं च- उत्तरार्द्ध-भरतवर्ष की अवस्थिति और उसका प्रमाण :२५८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे णामं वासे २५८. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्तराद्ध-भरत पण्णते ? नामक वर्ष (क्षेत्र) कहाँ कहा गया ? उ०-गोयमा ! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, उ०-गौतम ! चुल्लहिमवन्त नामक वर्षधर पर्वत के दक्षिण वेअड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं पुरथिमलवणसमुद्दस्स में, वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्तरार्द्ध एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे णामं वासे भरत नामक वर्ष कहा गया है । पण्णत्ते । पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिन्ने, पलिअंक- वह पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है। संठाणसंठिए, दुहा लवणसमुद्दपुढे, पुरच्छिमिल्लाए इसका आकार पर्यक (पलंग) के समान है। यह दो ओर से कोडीए पुरच्छिमिल्ल लवणसमुई पुढे, पच्चत्थि- लवणसमुद्र से स्पृष्ट है। पूर्व की ओर पूर्वी लवणसमुद्र से स्पृष्ट मिल्लाए को डीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुह पुट्ठ, है और पश्चिम की ओर पश्चिमी लवणसमुद्र से स्पृष्ट है। गंगा गंगा-सिंधूहि महाणईहिं तिभागपविभत्ते, दोण्णि और सिन्धु नामक महानदियाँ इसे तीन भागों में विभक्त करती अद्वतीसे जोअणसए तिण्णि अ एगूणवीसइभागे जोअणस्स विक्खंभेणं । है। इसकी चौड़ाई २३८२ योजन है। पण्णत्त । २५६. तस्स बाहा पुरच्छिम-पच्चच्छिमेणं अट्ठारस बाणउए २५६. पूर्व-पश्चिम में इसकी बाहु जोअणसए सत य एगूणवीसइभागे जोअणस्स अद्धभागं च आयामेणं । १८६२ + १ योजन लम्बी है। १६ २
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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