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________________ २०२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : महाविदेह वर्ष सूत्र २७५-२७८ (ख) चोत्तीसं रायहाणीओ', (ख) और उनकी राजधानियाँ भी चोतीस हैं । -जंबु० वक्ख० ६, सु० १२५ २७६. जंबुद्दीवे णं दीवे चउत्तीसं चक्कवट्टि विजया पण्णत्ता । तं २७६. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में चोतीस चक्रवर्ती विजय कहे गये जहा-बत्तीसं महाविदेहे, दो भरहे एरवए। हैं, यथा-बत्तीस (चक्रवर्ती विजय) महाविदेह में हैं, और दो __ --सम० ३४, सु० २ (चक्रवर्ती विजय) भरत तथा ऐरवत में हैं । जंबुद्दीवस्स महाविदेहवासे बत्तीसं चवकवटि विजया जम्बूद्वीप महाविदेह में बत्तीस चक्रवर्ती विजय राजधानियाँ रायहाणीओ य कच्छविजयस्स ठाणं पमाणं च- कच्छविजय की अवस्थिति एवं प्रमाण२७७. ५०–कहि णं भंते ! जंबुद्दीबे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे २७७. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष णामं विजए पण्णते? में कच्छविजय कहाँ कहा गया है ? उ.-गोयमा ! सीआए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स उ०-हे गौतम ! सीता महानदी से उत्तर में, नीलवन्त वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपब्व- वर्षधर पर्वत से दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत से पश्चिम यस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स में, एवं माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत से पूर्व में जम्बूद्वीप नामक द्वीप परत्थिमेणं-एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे के महाविदेह वर्ष में कच्छ नामक विजय कहा गया है। कच्छे णाम विजए पण्णत्ते। 'उत्तर-दाहिणायए, पाईण पडीणवित्थिण्णे, पलिअंक यह उत्तर-दक्षिण में लम्बा, पूर्व-पश्चिम में चौड़ा एवं पलंग संठाणसंठिए....गंगा-सिंधूहि महाणईहिं वेयड्ढेण य के आकार का है। गंगा-सिन्धु महानदियों से तथा वैताड्य पर्वत पवएणं छन्भागपविभत्ते । से यह छह भागों में विभक्त हैं । 'सोलस जोयणसहस्साई पंच य बाणउए जोयणसए इसकी लम्बाई सोलह हजार पाँच सौ बानवे योजन १६५९२ बोणि अ एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं, और दो योजन के उन्नीस भाग जितनी है। 'दो जोयणसहस्साई दोणि अ तेरसुत्तरे जोयणसए इसकी चौड़ाई बावीस सौ तेरह २२१३ योजन से कुछ किंचि विसेसूणे विक्वंभेणं ति। कम है। 'कच्छस्स णं विजयस्स बहुमज्झदेसभाए-एत्थ णं कच्छविजय के ठीक मध्यभाग में वैताढ्यपर्वत कहा गया है, वेअडडे णामं पब्बए पणते। जेणं कच्छविजयं दुहा जो इसे दो भागों में विभक्त करता हआ स्थित है, यथा-(१) विभयमाणे विभयमाणे चिटुइ। तं जहा-दाहिणद्ध- दक्षिणार्धकच्छ और (२) उत्तरार्धकच्छ । कच्छं च उत्तरद्धकच्छं चेति । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ६३ दाहिणद्ध कच्छविजयस्स अवट्ठिई पमाणं च दक्षिणार्ध कच्छविजय की अवस्थिति और प्रमाण२७८. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणद्ध- २७८. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह वर्ष में कच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? दक्षिणार्ध कच्छ नामक विजय कहाँ कहा गया है ? उ.-गोयमा ! वेयड्ढस्स पब्वयस्स दाहिणणं, सीमाए उ०-गौतम ! वैताढ्य पर्वत से दक्षिण में सीता महानदी से महाणईए उत्तरेणं, चित्तकूडस्त वक्खाराम्बयस्त उतर में, चित्रकुट वक्षस्कार पर्वत से पश्चिम में, एवं माल्यवन्त अढाईद्वीप में एक सौ सत्तर १७० चकवर्ती विजय है --इनकी गणना इस प्रकार हैअढाईद्वीप में ५ भरत, ५ ऐरवत और ५ महाविदेह है । प्रत्येक भरत और प्रत्येक ऐरवत में एक-एक विजय है तथा प्रत्येक महाविदेह में बत्तीस विजय हैं, इस प्रकार पाँच महाविदेह में एक सौ साठ विजय हैं, पाँच भरत एवं ऐरबत के दस विजय हैं - इस प्रकार १७० चक्रवर्ती विजय है। प्रत्येक विजय में । क राजधानी है और प्रत्येक राजधानी का वर्णन भरत क्षेत्र की राजधानी विनीता (अयोध्या) के समान है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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