________________
सूत्र २४४-२४५
तिर्यक् लोकः कर्मभूमियाँ
गणितानुयोग
१६५
शुद्धदन्त ।
सुद्धदंता।
तंजहा-घणदन्तदीवे, लट्ठदन्तदीवे, गूढदन्तदीवे, सुद्धदन्तदीवे। द्वीप गूढदन्तद्वीप और शुद्धदन्तद्वीप । इन द्वीपों में चार प्रकार के तेसु णं दीवेसु चउबिहा मणुस्सा परिवसंति, तंजहा-घण- मनुष्य निवास करते हैं, यथा-घनदन्त, लष्टदन्त, गूढदन्त और दन्ता, लट्ठदन्ता, गूढदन्ता, सुद्धदन्ता।' __जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरेणं सिहरिस्स वास- जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत से उत्तर में शिखरिवर्षधर पर्वत हरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुद्दतिन्नि-तिन्नि जोयण- की चारों विदिशाओं में, लवणसमुद्र में तीन-सौ योजन आगे जाने सयाई ओगाहेत्ता एत्थ णं चत्तारि अन्तरदीवा पण्णत्ता, पर वहाँ चार अन्तरद्वीप हैं, यथा-एकोरुकद्वीप (आदि पूर्ववत्) । तं जहा-एगूरुयदीवे, सेसं तहेव निरवसेसं भाणियव्व-जाव- शेष सब वक्तव्यता (उसी प्रकार) कह लेनी चाहिए-यावत्
-ठा० ४, उ० २, सु० ३०४ मनुष्य रहते हैं। जबुद्दीवे तओ कम्मभूमोओ
जम्बूद्वीप में तीन कर्मभूमियांजंबुद्दीवे भरहवासस्स अवटिठई पमाणं च
जम्बूद्वीप में भरतवर्ष की अवस्थिति और प्रमाण२४५. ५०-कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे णाम वासे पण्णते? २४५. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत नामक वर्ष
(क्षेत्र) कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, उ०—गौतम ! चुल्ल हिमवन्त नामक वर्षधर पर्वत के दक्षिण
दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं पुरथिमलवणसमुदस्स में, दक्षिणी लवणसमुद्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप नामक द्वीप में एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे णामं वासे पण्णत्ते। भरतनामक वर्ष (क्षेत्र) कहा गया हैं। खाणुबहुले, कंटकबहुले, विसमबहुले, दुग्गबहुले, पव्वय- यह क्षेत्र स्थाणु, कंटक, विषमभूमि, दुर्गप्रदेश, पर्वत, बहुले, पवायबहुले, उज्झरबहुले, णिज्झरबहुले, खड्डा- प्रपात, उर्झर, गडहे, गुफा, नदी, द्रह, वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बहुले, दरिबहुले, णईबहुले, दहबहुले, रुक्खबहुले, गुच्छ- वल्लरी, अटवी, श्वापद, (हिंस्र जन्तु), स्तेन, (चोर) तस्कर, बहले, गुम्मबहुले, लयाबहुले, बल्लीबहुले, अडवीबहुले, डिम्ब (स्वराजा का उपद्रव) डमर (परराजा का उपद्रव), दुभिक्ष, सावयबहुले, तेणबहुले, तक्करबहुले, डिम्बबहुले, उमर- दुष्काल, पाखण्ड, कृपण, बनीपक (भिखारी), ईति, मारी, कुवृष्टि, बहुले, दुब्भिक्खबहुले, दुक्कालबहुले, पासंडबहुले, राजा, रोग, संक्लेश, संक्षोभ, इत्यादि की बहुलता वाला है। किवणबहुले, वणीमगबहुले, ईतिबहुले, मारिबहुले, कुबुट्ठिबहुले, अणावुट्ठिबहुले, रायबहुले, रोगबहुले, संकिलेसबहुले, अभिक्खणं-अभिक्खण संखोहबहुले । पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिन्ने, उत्तरओ यह वर्ष क्षत्र-पूर्व-पश्चिम में लम्बा, उत्तर-दक्षिण में चौड़ा, पलिअंकसंठाणसंठिए, दाहिणओ धणुपिट्ठसंठिए तिधा उत्तर में पर्यक के आकार का, दक्षिण में धनुष की पीठ के आकार लवणसमुद्द पुट्ठ, गंगासिंधूहि महाणईहिं वेयड्ढेण य का तथा तीन तरफ लवण समुद्र से स्पृष्ट है। गंगा और सिंधु पव्वएण छब्भागपविभत्ते।
नामक महानदियों तथा वैताढ्य नामक पर्वत से यह छह भागों में
विभक्त है। जंबुद्दीवदीवणउयसयभागे पंचछवीसे जोयणसए छच्च जम्बूद्वीप नामक द्वीप के एक सौ नब्बे भाग करने पर एगूणवीससइभागे जोयणस्स विक्खभेण ।
-जम्बु० बक्ख० १, सु० १० ५२६ - योजन का (भरत क्षेत्र का) विष्कम्भ है।
१ ठा० ६ सूत्र ६६८, पृ० ४४४ । २ (क) जीवा, प्रति० २, सूत्र १०६-११२, पृ० १४४-१५६ ।
(ख) विवा० भाग ३, श०६ उ० ३-३०, पृ० १२७ । (ग) , श० १० उ०७-३४, पृ० २०५ । ।