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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : अकर्मभूमियाँ
सूत्र २४३-२४४
एवं पुक्खरवरदीवड्ढ-पुरथिमद्ध वि अकम्मभूमीओ, इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में भी (छह) अकर्म
भूमियां हैं। एवं पुक्खरवरदीवड्ढ-पच्चत्थिमद्धे वि अकम्मभूमीओ।' इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में भी (छह)
-ठाणं ३, उ०४, सु० १६७ अकर्मभूमियाँ हैं। छप्पण्ण अन्तरदीवा
छप्पन अन्तरद्वीप२४४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, चुल्लहिमवंतस्स २४४. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में, चुल्ल
वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु, तिन्नि २ जोयणसयाइं हिमवन्तवर्षधर पर्वत की चारों विदिशाओं में तीन-तीन सौ ओगाहित्ता एत्थ णं चत्तारि अन्तरदीवा पण्णत्ता, तं जहा- योजन आगे जाने पर चार अन्तरद्वीप कहे हैं, यथा-एकोषकद्वीप, एगूरूयदीवे, आभासियदीवे, वेसाणियदीवे, गंगोलियदीवे। आभाषिकद्वीप, वैषाणिकद्वीप और लांगुलिकद्वीप । __ तेसु णं दीवेसु चउन्विहा मणुस्सा परिवसंति, तंजहा- उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं, यथाएगूख्या, आभासिया, वेसाणिया, गंगोलिया।
एकोरुक, आभाषिक, वैषाणिक और लांगुलिक। तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्द चत्तारि २ इन द्वीपों में चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में चार-चार सौ जोयणसाइं ओगाहेत्ता एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, योजन आगे जाने पर वहाँ चार अन्तरद्वीप कहे हैं, यथा-हयकर्णतंजहा-हयकरणदीवे, गय कण्णदीवे, गोकण्णदीवे, संकुलि- द्वीप, गजकर्णद्वीप, गोकर्णद्वीप और शकुलिकर्णद्वीप । उन द्वीपों कण्णदीवे, तेसु णं दीवेसु चउरिवया मणुस्सा परिवसंति, में चार प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं, यथा-हयकर्ण, तं जहा-हयकन्ना, गयकन्ना, गोकन्ना, संकुलिकन्ना। गजकर्ण, गोकर्ण और शष्कुलिकर्ण ।
तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्द पंच २ इन द्वीपों के चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में पाँच-पाँच जोयणसयाई ओगाहित्ता एत्थ णं चत्तारि अंतरवीवा पण्णत्ता, सौ योजन आगे जाने पर वहाँ चार अन्तरद्वीप कहे हैं. यथातंजहा-आयंसमुहदीवे, मेंढमुहदीवे, अओमुहदीवे, गोमुहदीवे। आदर्शमुखद्वीप, मेंढमुखद्वीप अजामुखद्वीप और गोमुखद्वीप । तेसु णं दीवेसु चउब्विहा मणुस्सा भाणियब्वा ।
इन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य कहने चाहिए। तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्दछ छ जोयण- इन द्वीपों में चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में छह-छह सौ सयाई ओगाहेत्ता एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा- योजन आगे जाने पर वहाँ चार अन्तरद्वीप हैं, यथा-अश्वमखदीप आसमुहदीवे, हत्थिमुहदीवे, सोहमुहदीवे, वग्धमुहदीवे । हस्तिमुखद्वीप, सिंहमुखद्वीप और व्याघ्रमुखद्वीप। तेसु गं दीवेसु मणुस्सा भाणियस्वा ।
इन द्वीपों में (इन्हीं नामों वाले चार प्रकार के) मनुष्य कहने
चाहिए। तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्द सत्त-सत्त इन द्वीपों से चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में सात-सात जोयणसयाई ओगाहेत्ता एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पप्णत्ता, सौ योजन आगे जाने पर वहाँ चार अन्तरद्वीप हैं, यथा अश्व. तं जहा-आसकन्नदीवे, हथिकन्नदीवे, अकन्नदीवे, कन्नपाउरण- कर्णद्वीप, हस्तिकर्णद्वीप, अकर्णद्वीप और कर्णप्रावरणदीप । इन दीवे । तेसु णं दीवेसु मणुया भाणियव्वा ।
द्वीपों में (चार प्रकार के) मनुष्य कह लेने चाहिए। तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्द अट्ठट्ट जोयण- इन द्वीपों से चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में आठ-आठ सौ सयाई ओगाहेत्ता एत्थ णं चत्तारि अन्तरदीवा पण्णत्ता, योजन अवगाहन करने पर वहाँ चार अन्तरद्वीप हैं, यथात जहा-उक्कामुहदीवे, मेहमुहदीवे, विज्जुमुहदीवे, विज्जुदंत- उल्कामुखद्वीप, मंघमुखद्वीप, विद्युन्मुखद्वीप और विद्युदन्तद्वीप । दीवे । तेसु णं दीवेसु मणुस्सा भाणियत्वा ।'
इन द्वीपों में मनुष्यों का कथन कर लेना चाहिए । तेसि ण दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमु णव-णव इन द्वीपों से चारों विदिशाओं में नौ-नौ सौ योजन आगे जोयणसयाई ओगाहेत्ता एत्थ णं चत्तारि अन्तरवीवा पण्णत्ता, जाने पर वहाँ चार अन्तरद्वीप कहे हैं, यथा-घनदन्तद्वीप, लष्टदन्त
१ जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण एवं उत्तर में छह अकर्मभूमियाँ हैं-इसी प्रकार धातकीखण्ड के पूर्वार्ध-पश्चिमाधं में तथा
पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध-पश्चिमार्ध में मेरु पर्वत से दक्षिण-उत्तर में छह-छह अकर्मभूमियाँ हैं-इस प्रकार तीस अकर्मभूमियाँ हैं। २ ठा० ८, सूत्र ६३०, पृ० ४११ ।